Bihar elections 2020: Tej Pratap Yadav महुआ से हसनपुर क्यों पलायन करना चाहते हैं?
तेज प्रताप यादव क्या सेफ सीट समझ कर हसनपुर जा रहे हैं ? समस्तीपुर जिले के हसनपुर विधानसभा क्षेत्र को यादव बहुल माना जाता है। जातीय समीकरण के हिसाब से ही हसनपुर को तेजप्रताप के लिए सुरक्षित सीट समझा जा रहा है। लेकिन यहां यह भी देखना लाजिमी होगा कि क्या हसनपुर के यादव वोटर राजद के कट्टर समर्थक हैं ? चुनावी नतीजे तो इस सवाल का जवाब ना में देते हैं। अभी इस सीट पर जदयू का कब्जा है। जदयू के विधायक राज कुमार राय भी यादव जाति से आते हैं। पिछलो दो चुनावों में उनकी जीत हुई है। हां, ये सच है कि इस सीट पर 1967 से लेकर 2015 तक यादव उम्मीदवारों की ही जीत हुई है। लेकिन उनकी जीत के लिए यादव फैक्टर ही सब कुछ नहीं है। अलग-अलग विचारधारा और अलग-अलग परिस्थितियों के कारण उन्हें जीत मिली। इसलिए यहां तेज प्रताप को कई चुनौतियों से जूझना होगा। आखिर तेजप्रताप अपनी मौजूदा सीट महुआ से क्यों नहीं चुनाव लड़ना चाहते ? क्या ऐश्वर्या फैक्टर के कारण उन्हें हारने का डर है ?
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क्या तेज को महुआ में हार का डर है ?
महुआ पहले अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र था। 2010 में यह सामान्य हुआ तो इस सीट पर जदयू के रवीन्द्र राय ने जीत हासिल की। 2015 में तेजप्रताप को इस सीट से जिताने के लिए लालू यादव ने कई एडजस्टमेंट किये थे। लालू ने इस इलाके के प्रभावशाली यादव नेता और तत्कालीन एमएलसी राजेन्द्र राय की बहू को मोहिउद्दीन नगर से टिकट दे कर खुश कर दिया ताकि वे यादव वोट को एकजुट कर सकें। अनुसूचित जाति के शिवचंद्र राम 2005 में महुआ से जीते थे। 2015 में लालू ने उन्हें बगल की सीट राजापाकर से उम्मीदवार बना कर एससी वोट को गोलबंद करने की जिम्मेवारी दी थी। लालू ने इसी इलाके के रहने वाले आलोक मेहता को उजियारपुर से इसी वायदे के साथ टिकट दिया था कि वे तेज प्रताप के लिए कोइरी मतों का ध्रुवीकरण करेंगे। नीतीश साथ थे इसलिए अतिपिछड़ों के वोट भी तेज प्रताप को मिले। लालू यादव के इतने इंतजाम के बाद तेजप्रताप को 66 हजार 927 वोट मिले थे। महुआ से सीटिंग विधायक रवीन्द्र राय ने नीतीश का साथ छोड़ कर जीतन राम मांझी की पार्टी से चुनाव लड़ा था। तेज प्रताप ने रवीन्द्र राय को करीब 28 हजार वोटों से हरा दिया था। 2020 में तेजप्रताप के लिए परिस्थियां बदल गयी हैं। उनके तारणहार लालू यादव जेल में हैं। नीतीश अब खिलाफ हैं। तलाक विवाद के बाद पत्नी ऐश्वर्या राय के चुनाव लड़ने की अटकलों से तेजप्रताप की चिंता बढ़ गयी है। और सबसे बड़ी बात यह कि ये सीट यादव बहुल नहीं है। इसलिए तेजप्रताप को लगता है कि बदली हुई परिस्थितियों में वे यहां चुनाव हार सकते हैं।
1967 से 1985 तक हसनपुर में वोटिंग पैटर्न
हसनपुर विधानसभा सीट समस्तीपुर जिले का हिस्सा है लेकिन इसका लोकसभा क्षेत्र खगड़िया है। इस सीट को कभी चर्चित समाजवादी नेता गजेन्द्र प्रसाद हिमांशु का गढ़ माना जाता था। गजेन्द्र प्रसाद हिमांशु यादव जाति के तो थे लेकिन उनकी छवि एक समर्पित लोहियावादी नेता की थी। जाति की बजाय उनकी पहचान एक समाजवादी के रूप में थी। 1967 में केवल 26 साल की उम्र में वे विधायक बन गये थे। उम्र भले कम थी लेकिन सिद्धांतों के पक्के थे। 1967 में जब बीपी मंडल ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी तोड़ कर कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने अपने स्वजातीय गजेन्द्र प्रसाद हिमांशु को साथ आने के लिए डिप्टी सीएम पद का ऑफर दिया था। लेकिन हिमांशु ने इस ऑफर को ठुकरा दिया था। 1967 से 1980 तक वे यहां से लगातार पांच बार विधायक बने। 1985 में इस सीट पर फिर यादव उम्मीदवार तो जीते लेकिन वे कांग्रेस के थे। राजेन्द्र प्रसाद यादव ने समाजवादियों के किले पर पहली बार कांग्रेस का झंडा लहराया था। यानी यहां के यादवों का मन बदला तो उन्होंने कांग्रेस को भी समर्थन दिया।
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1990 के बाद का हसनपुर
1990 में गजेन्द्र प्रसाद हिमांशु संसोपा और जनता पार्टी के बदले स्वरूप जनता दल का हिस्सा थे। 1990 में वे छठी बार जीते। 1995 में लालू यादव ने गजेन्द्र प्रसाद हिमांशु का टिकट काट कर एक अन्य यादव नेता सुनील कुमार पुष्पम को यहां से उम्मीदवार बनाया था। सुनील पुष्पम जीते। इस सीट पर पहली बार लालू का असर दिखा लेकिन अगले ही चुनाव में हिमांशु ने इस हार का बदला ले लिया। 2000 के चुनाव में हिमांशु जदयू के टिकट पर जीते। फरवरी 2005 और अक्टूबर 2005 के चुनाव में राजद के सुनील पुष्पम फिर जीते लेकिन इसके बाद इस सीट से राजद का पत्ता साफ हो गया। 2010 और 2015 में फिर एक यादव उम्मीदवार जीते लेकिन इसबार नीतीश कुमार की पार्टी से। हसनपुर के मौजूदा विधायक राज कुमार राय जदयू के टिकट पर यहां से लगातार दो चुनाव जीत चुके हैं। अब अगर 2020 में तेजप्रताप यादव यहां से चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें जदयू के यादव उम्मीदवार राजकुमार राय से मुकाबला करना होगा। पिछले दो चुनावों के नतीजे बताते हैं कि हसनपुर सीट अब नीतीश कुमार के प्रभाव में है। यह यादव बहुल सीट है तो क्या, यहां के वोटर नीतीश के साथ हैं। तेजप्रताप के लिए ये सीट तभी सेफ होगी जब यहां के सियासी हालात बिल्कुल बदल जाएं।