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कभी राष्ट्रीय राजनीति के दबंग रहे शरद यादव अब लालू-नीतीश के बीच बन गये हैं पेंडुलम

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क्या शरद यादव अब लालू-नीतीश के बीच बन गये हैं पेंडुलम!

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शरद यादव कभी राष्ट्रीय राजनीति के सुपर स्टार’ थे। लेकिन अब उनकी हालत लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच पेंडुलम की तरह हो गयी। कभी यहां कभी वहां। 2017 में जब नीतीश ने भाजपा के साथ दोबारा गठबंधन किया तो शरद यादव ने विद्रोह कर दिया था। 2018 में उन्होंने लोकतांत्रिक जनता दल के नाम से नयी पार्टी बनायी। लालू यादव से दोस्ती गांठने कोशिश की, लेकिन जमी नहीं। मजबूर शरद को 2019 का लोकसभा चुनाव राजद के सिम्बल पर लड़ना पड़ा। हार ने हाशिये पर ढकेल दिया। अब जब बिहार विधानसभा चुनाव सिर पर है तो उनकी जदयू में वापसी की अटकलें तेज हैं। जिस शख्स ने कभी राजनीति की महाशक्तिशाली इंदिरा गांधी को हराने का फार्मूला दिया था अब वही अपने राजनीति भविष्य के लिए दर –दर की ठोकरें खा रहा है।

राजनीति में आने की पृष्ठभूमि

राजनीति में आने की पृष्ठभूमि

निरंकुश इंदिरा गांधी के पतन की पटकथा का पहला अध्याय शरद यादव ने ही लिखा था। 1974 में जबलपुर के सांसद सेठ गोविंद दास का निधन हो गया था। वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, चर्चित साहित्यकार और प्रसिद्ध व्यवसायी थे। वे 1957 से लगातार जबलपुर के सांसद थे। उनके निधन के बाद उपचुनाव की घोषणा हुई। 1974 में छात्र आंदोलन शुरू हो चुका। जयप्रकाश नारायण छात्र आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे। उस समय इंदिरा गांधी देश की सबसे शक्तिशाली नेता थीं और उन्हें अपराजेय माना जा रहा था। जयप्रकाश नारायण ने जबलपुर लोकसभा उपचुनाव को अपनी राजनीति की प्रयोगशाला बनाया। उन्होंने सभी गैरकांग्रेसी दलों को एक सम्मिलत उम्मीदवार उतारने के लिए राजी कर लिया। शरद यादव तब जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष थे और छात्र आंदोलन में शामिल थे। शरद यादव को विपक्ष का साझा प्रत्याशी बनाया गया जिसे जनता उम्मीदवार का नाम दिया गया।

शरद का राजनीति में स्टार बनना

शरद का राजनीति में स्टार बनना

जबलपुर उपचुनाव का प्रयोग ही बाद में जनता पार्टी के गठन के लिए प्रेरणा बना। शरद यादव ने हलधर किसान चुनाव चिह्न पर इलेक्शन लड़ा था। बाद में यही हलधर किसान चिह्न जनता पार्टी का सिम्बल बना। कांग्रस ने यहां से सेठ गोविंद दास के पुत्र रविमोहन दास को उम्मीदवार बनाया। इस सीट को सेठ गोविंद दास का किला माना जाता था। कांग्रेस को उम्मीद थी कि रविमोहन सहानुभूति लहर में आसानी से जीत जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शरद यादव ने रविमोहन को हरा कर भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी। शरद यादव की जीत से ही यह फार्मूला निकला कि अगर सभी विपक्षी दल एक हो कर चुनाव लड़ें तो इंदिरा गांदी को हराया जा सकता है। 1977 में ऐसा ही हुआ और केन्द्र में पहली बार किसी गैरकांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। शरद यादव 1977 में जबलपुर से फिर जीते थे। इसके बाद वे भारतीय राजनीति का नया सितारा बन गये।

जबलपुर से बिहार कैसे आये ?

जबलपुर से बिहार कैसे आये ?

1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो शरद यादव चरण सिंह के नजदीक आये। चरण सिंह ने युवा शरद यादव को राजनीति में आगे बढ़ाया। शरद 1980 का लोकसभा चुनाव हार गये थे। लेकिन जब संजय गांधी की हादसे में अचानक मौत हो गयी तो 1981 में अमेठी उपचुनाव हुआ। इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी को राजनीति में उतार कर अमेठी से उम्मीदवार बना दिया। चरण सिंह ने शऱद यादव को मैदान में उतारा। विपक्षी दलों के साझा उम्मीदवार शरद इस बार कोई करिश्मा नहीं कर सके। उनकी बुरी तरह हार हुई। वे राजीव गांधी को चुनौती भी नहीं दे पाये। उन्हें करीब 21 हजार ही वोट मिले थे। शरद गैरकांग्रेस राजनीति का बड़ा चेहरा तो बन चुके थे लेकिन उनकी चुनावी राजनीति परवान नहीं चढ़ पा रही थी। 1986 में वे राज्यसभा में भेजे गये। 1989 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो शरद यादव जबलपुर से उत्तर प्रदेश के बदायूं आ गये। तीसरी बार लोकसभा के लिए चुने गये। वीपी सिंह की सरकार में कपड़ा मंत्री बने। 1989 में लालू यादव भी सांसद थे। छात्र आंदोलन के समय से ही शरद यादव की लालू यादव से जान पहचान थी। 1990 में लालू यादव बिहार का मुख्यमंत्री बनने के लिए जोड़तोड़ कर रहे थे। उस समय प्रधानमंत्री वीपी सिंह और देवीलाल में झगड़ा चरम पर था। लालू को देवीलाल का आशीर्वाद प्राप्त था। इस जोड़तोड़ की लड़ाई में तब शरद यादव ने लालू का साथ दिया था। लालू बिहार का सीएम बन गये। शरद यादव और लालू यादव में गहरी दोस्ती हो गयी। 1991 में जब लोकसभा का चुनाव आया तो लालू ने शरद यादव के मधेपुरा से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया। शरद जबलपुर से बिहार आ गये।

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शरद का लालू से कैसे हुआ झगड़ा ?

शरद का लालू से कैसे हुआ झगड़ा ?

मधेपुरा यादवों का गढ़ माना जाता है। लालू ने शरद को सबसे सेफ सीट दी। 1991 में शरद मधेपुरा से जीते। 1996 में भी यहां से जीते। 1995 में शरद यादव को जनता दल का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। 1996 में लालू यादव को चारा घोटला का आरोपी बनाया गया। उस समय वे बिहार के मुख्यमंत्री थे। जुलाई 1997 में चारा घोटाला जांच की आंच लालू यादव तक पहुंच गयी थी। उन पर गिरफ्तारी की तलवार लड़की हुई थी। लालू यादव तब मुख्यमंत्री तो थे ही जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे। इस स्थिति को देख कर जनता दल के वरिष्ठ नेताओं ने लालू को मुख्यमंत्री पद और राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ने की सलाह दी। लेकिन लालू तैयार नहीं थे। जब लालू जनता दल अध्यक्ष का पद छोड़ने में आनाकानी करने लगे तो चुनाव कराने का फैसला लिया गया। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष शरद यादव को लालू के खिलाफ उम्मीदवार बनाया गया। 6 जुलाई को एक कन्वेंशन के जरिये अध्यक्ष पद के चुनाव की घोषणा हो गयी। लालू को आशंका थी कि अगर चुनाव हुआ तो वे हार जाएंगे। चारा घोटला के कारण उनके अपने लोगों ने भी मुंह फेर लिया था। तब लालू ने चुनाव से एक दिन पहले ही यानी 5 जुलाई 1997 को जनता दल तोड़ दिया और राष्ट्रीय जनता दल के नाम से नयी पार्टी बना ली। लालू शरद यादव पर इस बात के लिए नाराज हो गये कि वे उनके खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए कैसे तैयार हो गये। इसके बाद लालू ने शरद को जवाब देने की ठान ली।

नीतीश से मेल और फिर तकरार

नीतीश से मेल और फिर तकरार

1998 के लोकसभा चुनाव में लालू ने शरद यादव से हिसाब चुकता करने के लिए खुद मधेपुरा से चुनाव लड़ा। शरद यादव की हार हुई। हालांकि 1999 में शरद यादव ने मधेपुरा में लालू को हरा कर बदला ले लिया। 2003 में शरद यादव के जनता दल और नीतीश की समता पार्टी के मेल से जनता दल यूनाइटेड बना। शरद यादव जदयू के अध्यक्ष बनाये गये। इसके बाद शरद यादव का चुनावी भविष्य नीतीश पर निर्भर हो गया। 2009 में शरद ने नीतीश के दम पर मधेपुरा का चुनाव जीता। 2014 में जब शरद यादव मधेपुरा में पप्पू यादव से हार गये तो नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा में भेज दिया। 2016 में नीतीश ने फिर शरद यादव को राज्यसभा का सदस्य बनाया। जुलाई 2017 में जब नीतीश ने राजद से नाता तोड़ कर भाजपा के साथ सरकार बनायी तो शरद यादव बागी हो गये। उन्होंने नीतीश के फैसले का खुल्मखुल्ला विरोध किया। उन्होंने कहा कि नीतीश भले घुटना दें लेकिन वे साम्प्रदायिकता से कभी समझौता नहीं करेंगे। शरद के बागी रवैये से नाराज जदयू ने उनकी राज्यसभा सदस्यता रद्द कराने के लिए अर्जी डाल दी। राज्यसभा के सभापति वैंकैया नायडू ने दिसम्बर 2017 में शरद यादव की राज्यसभा सदस्यता रद्द् कर दी थी। इन सारी बातों को भुला अगर शरद यादव फिर जदयू में आते हैं तो क्या सहज महसूस करेंगे ?

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English summary
Bihar assembly elections 2020: Sharad Yadav, now a pendulum between Lalu yadav Nitish kumar
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