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Bihar Elections 2020: क्या भाजपा ने नीतीश को 101 सीटों पर लड़ने का अल्टीमेटम दे दिया ?

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क्या BJP ने नीतीश को 101 सीटों पर लड़ने का अल्टीमेटम दे दिया

बिहार के चुनाव के पहले भाजपा की एक अदा काबिले जिक्र है। नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की मुनादी करने वाली भाजपा ने अचानक एक नयी बात कह दी है। उसने नीतीश की तारीफ ऐसे की है जिससे चेतावनी की प्रतिध्वनि निकल रही है। भाजपा ने दोस्ती ऐसे जतायी है जैसे कि वह धमकी दे रही है। केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने कहा है कि वैसे तो हम बिहार में अकेले भी सरकार बना सकते हैं लेकिन इसके लिए 1996 की दोस्ती नहीं तोड़ सकते। जदयू से हमारी पुरानी साझेदारी है। हम अपने दोस्तों को नहीं छोड़ते। हमारी फितरत है। लोकसभा चुनाव ने भाजपा और पीएम मोदी के आधार मतों को स्पष्ट कर दिया है। इसलिए विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारा का आधार भी यही होना चाहिए। यानी भाजपा ने एक तरह से नीतीश कुमार को अगाह कर दिया है कि विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारा लोकसभा चुनाव की तर्ज पर होना चाहिए। फिर आर के सिंह ने यह भी जोड़ दिया कि भाजपा और जदयू के बीच सीट बंटवारे को लेकर कोई विवाद नहीं है और यह बिल्कुल आसानी से हो जाएगा। सब कुछ ठीक कहने का ये अंदाज जाहिर है जदयू को नागवार गुजरेगा।

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क्या भाजपा ने 101 सीटों के लिए नीतीश को अगाह किया ?

क्या भाजपा ने 101 सीटों के लिए नीतीश को अगाह किया ?

2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू ने 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ा था। भाजपा ने जदयू के लिए जीती हुई सीटें भी छोड़ दी थी। 2015 में जब नीतीश लालू यादव के साथ थे तो राजद और जदयू ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था। यानी नीतीश कुमार पिछले दो चुनाव अपने मुख्य सहयोगी के साथ बराबर सीटों पर लड़े हैं। 2020 के लिए जदयू और भाजपा ने अपने पत्ते नहीं खेले हैं। इस बीच आरके सिंह ने नीतीश कुमार को संदेश दे दिया है सीट बंटवारा लोकसभा चुनाव की तर्ज पर होगा। अगर सीट शेयरिंग में लोकसभा चुनाव के पैटर्न को अपनाया जाएगा तो मांझी का मामला फंस जाएगा। 2019 में मांझी एनडीए का नहीं बल्कि महागठबंधन का हिस्सा थे। उनके आने से सीटों बंटवारा उलझ गया है। मांझी को सीट देने के लिए अब भाजपा, जदयू और लोजपा तीनों को बलिदान देना होगा। चौथे हिस्सेदार के लिए सीट तभी निकलेगी जब कोई अपना हिस्सा कम करेगा। लेकिन आर के सिंह ने जो कहा है उससे तो यही मतलब निकलता है कि भाजपा 101 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने हिस्से की सभी 17 सीटें जीती थीं। अगर एक लोकसभा क्षेत्र में औसतन छह विधानसभा सीट मानें तो यह आंकड़ा 102 पर पहुंचता है। यानी भाजपा ने संकेत दे दिया है कि उसे 101 सीटों से कम मंजूर नहीं।

क्या होगा नीतीश पर असर?

क्या होगा नीतीश पर असर?

2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू 141 सीटों पर लड़ा था तो भाजपा के हिस्से में 102 सीटें आयीं थीं। दो ही हिस्सेदार थे इसलिए भरपूर सीटें मिलीं। जदयू बड़े भाई की भूमिका में था। जदयू को 141 में से 115 सीट पर जीत मिली तो भाजपा ने 102 में 91 सीटें जीती। 2020 में चार हिस्सेदार हो चुके हैं। अब सीटों का हिसाब ठीक से नहीं बैठ पा रहा है। खबरों के मुताबिक नीतीश को चुनावी चेहरा मान कर जदयू 101 से अधिक सीटों के बारे में सोच रहा था। वह अपने लिए 110 से 115 सीटें चाह रहा था। लेकिन इस बीच आर के सिंह ने नया पासा फेंक कर मामला उलझा दिया है। नीतीश के सामने सबसे बड़ी चुनौती जीतन राम मांझी को सीट दिलाना है। मांझी को अगर 10 सीटें भी दी जाती हैं तो किसके हिस्से में से कटौती होगी ? लोजपा ने साफ कर दिया है कि जीतन राम मांझी को सीट देना जदयू की समस्या है, उसके हिस्से में कोई कटौती नहीं होनी चाहिए। 2015 के चुनाव में लोजपा को 43 सीटें मिली थीं। सीटों को लेकर चिराग ने पहले ही टकराव का रास्ता अपना रखा है। अगर लोजपा की पहले वाली सीटों में कटौती होगी तो क्या एनडीए सलामत रह पाएगा ? 110 सीटों पर चुनाव लड़ने के बारे में सोच रहे नीतीश कुमार क्या सौ से कम सीटें मंजूर होंगी ?

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क्या एनडीए में है गुटबाजी ?

क्या एनडीए में है गुटबाजी ?

नीतीश कुमार ने 2005, 2010 और 2015 के विधानसभा चुनाव स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ लड़ा। एक बार जब चीजें तय हो गयीं तो कोई समस्या नहीं रही। लेकिन 2020 के चुनाव के पहले नीतीश और चिराग पासवान की लड़ाई से एनडीए के चुनावी माहौल में कड़वाहट घुल गयी है। इससे घटक दलों में गुटबंदी की स्थिति बन रही है। नीतीश, मांझी के करीब दिख रहे हैं तो लोजपा, भाजपा के करीब। जीतन राम मांझी भाजपा विरोधी रहे हैं। वे एनडीए में रह कर भी भाजपा के लिए असुविधा पैदा कर सकते हैं। मांझी की तुलना में चिराग भाजपा के लिए ज्यादा मुफीद माने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी चिराग पासवान की ऐसी प्रशंसा कर चुके हैं कि वे आजतक उनके कद्रदान हैं। चिराग ने नीतीश पर लगातार हमला बोला है लेकिन भाजपा के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। जब कि बिहार सरकार में भाजपा भी शामिल है। यानी लोजपा भी भाजपा को अपने नजदीक मानती है। लेकिन इस गुटबंदी से नीतीश के मिशन 2020 पर असर पड़ सकता है। नीतीश कुमार अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए चुनाव मैदान में उतरेंगे। इसलिए परिस्थितियों के समायोजन की जवाबदेही उन्हीं के कंधे पर है।

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English summary
Bihar assembly Elections 2020: Did BJP give Nitish kumar an ultimatum to contest 101 seats?
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