दिग्गजों को किनारे कर रीता पर कमल खिलाने की जिम्मेदारी, इस सीट पर पिता की थी धाक
प्रयागराज। लंबे इंतजार, विचार विमर्श और दर्जनों दावेदारों के आवेदन को नकार कर भारतीय जनता पार्टी ने इलाहाबाद लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। योगी सरकार की कैबिनेट मंत्री रीता जोशी को भाजपा ने इलाहाबाद से अपना प्रत्याशी बनाया है। रीता जोशी को प्रत्याशी बनाये जाने के पीछे कई कारण रहे हैं। जिनमें मौजूदा सवर्ण वोट बैंक प्रमुखता पर रहा है। जबकि इस सीट पर रीता जोशी के पिता भूतपूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की कभी धाक रही थी और लोग उन्हें विकास पुरूष के नाम से जानते थे। 1971 के चुनाव में उनके पिता हेमवती नंदन बहुगुणा ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में इलाहाबाद संसदीय सीट से जीत हासिल की थी। उन्हें कुल 250213 मतों में 142886 (58.84 प्रतिशत) मत हासिल हुए थे। उनकी विरासत को संभालने के लिए रीता जोशी से बेहतर विकल्प भाजपा के सामने नहीं था। जबकि अपनी लोकप्रियता, कुंभ आयोजन की सफलता में नाम, स्थानीय विरोध ना होना व हर तबके से वोट निकालने की क्षमता ने ही रीता जोशी को दर्जनों दिग्गज पर वरीयता दी और अब वह लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद सीट पर कमल खिलाने के लिए तैयार हैं।
इससे पहले हारी थी रीता
इलाहाबाद संसदीय सीट से रीता जोशी कांग्रेस के टिकट पर पहले भी चुनाव लड़ चुकी हैं और तब भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी ने उन्हें हराया था। हालांकि उसके बाद रीता जोशी इलाहाबाद की राजनीति में सीधे तौर पर सक्रिय नहीं रही, लेकिन उनका कद राजनैतिक रूप से लगातार बढ़ता रहा। कांग्रेस से नाराजगी के बाद वह भाजपा में शामिल हो गयी थी और मौजूदा समय में वह योगी कैबिनेट में पर्यटन मंत्री भी हैं। फिलहाल रीता जोशी पर अब इलाहाबाद में खिले कमल को मुरझाने से बचाने की बड़ी जिम्मेदारी हैं। क्योंकि मौजूदा बीजेपी के सांसद श्यामा चरण टिकट कटने के बाद सपा का दामन थाम चुके हैं और बांदा चुनाव लड़ने चले गये हैं। ऐसे में श्यामा चरण गुट रीता के लिए सिर दर्द भी बन सकता है।
सवर्ण वोटों को साधेंगी रीता
इलाहाबाद संसदीय सीट पर सवर्ण बिरादरी के वोटों की संख्या काफी अधिक है, उनमें भी कायस्थ वर्ग हर बार जीत हार में अहम भूमिका अदा करता है। जिन्हें साधने में रीता जोशी बेहद प्रभावशाली साबित होंगी। चूंकि रीता जोशी इलाहाबाद से हमेशा जमीनी तौर पर जुड़ी रही हैं और इलाहाबाद विश्वविद्वालय में प्रोफेसर रहने के साथ-साथ समाज के हर वर्ग पर उनकी पकड़ उनकी लोकप्रियता को बढ़ाती रही है। शिक्षकों के लिए कई आंदोलन में हिस्सा लेने वाली रीता जोशी ने छात्र वर्ग के लिये भी जमकर आवाज उठायी और कई मौके पर मजदूर यूनियन के लिये खुलकर संघर्ष किया था।
इन्हें मिला झटका
रीता जोशी को टिकट दिये जाने के साथ चला कयासों का दौर भी खत्म हो गया। रीता की दावेदारी भले ही सामने से नहीं थी, लेकिन अंदरखाने में कद्दावर मंत्री को टिकट दिये जाने की संभावना बनी हुई थी। हालांकि इस दावेदारी में सबसे पहले नाम कैबिनेट मंत्री नंदी की पत्नी अभिलाषा गुप्ता का था। जबकि सिद्धार्थ नाथ सिंह के भाई भी इसी कडी में अपनी दावेदारी कर रहे थे। इसके अलावा इलाहाबाद की राजनीति को सीधे प्रभावित करने वाले करवरिया परिवार ने भी अपनी दावेदारी पेश की थी और विधायक नीलम करवरिया पूरी सिद्दत से पति उदय भान हेतु टिकट के लिये दौड रही थी। जबकि हर्ष वर्धन वाजपेयी के पिता लगातार दिल्ली में डेरा जमाये हुये थे, लेकिन उन्हें भी जोर का झटका धीरे से दिया गया और भाजपा को जीतने की जिम्मेदारी सभी दावेदारों को दी गयी है।
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