कुंभ: एक विमान हादसे के बाद सेना के विंग कमांडर कैसे बन गए पायलट बाबा, पढ़ें पूरी कहानी
Prayagraj news, प्रयागराज। मनुष्य के जीवन में कभी न कभी कोई ऐसी घटना होती है जो उसके पूरे अस्तित्व को ही बदल देती है। कुछ ऐसा ही एक वाक्या कुंभ के सबसे चर्चित संतो में से एक महायोगी पायलट बाबा के साथ हुआ। वह कभी सेना में विंग कमांडर थे और देश के लिए अपनी सेवाएं दे रहे थे। लेकिन, एक विमान हादसे ने उनका पूरा जीवन ही बदल दिया और वह फाइटर प्लेन पायलट से पायलट बाबा बन गए। कैसे वह आध्यात्मिक जीवन में आए और कैसे इतने हाई प्रोफाइल बाबा बन गए आइए जानते हैं उनकी पूरी कहानी।
सेना में थे विंग कमांडर
संगम की रेती पर बसे तंबुओं के शहर में सेक्टर 14 वह जगह है जहां महायोगी पायलट बाबा का शिविर लगा हुआ है। शिविर में विदेशी शिष्यों की भारी संख्या से यह स्पष्ट होने में देर नहीं लगती कि यहां के बाबा बेहद ही चर्चित और लाइम लाइट में रहने वाले हैं। पायलट बाबा का असली नाम कपिल सिंह राजपूत है। इनका जन्म बिहार के रोहतास जिले के सासाराम में हुआ था। बाबा ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद यह सेना में भर्ती हो गए। बाबा बताते हैं कि वह सेना में विंग कमांडर थे और 1962 में चीन, 1965 पाकिस्तान और 1971 की लड़ाइयों में वह शामिल हुए थे हैं, जिसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है।
कैसे बन गये पायलट बाबा
मीडिया से बातचीत के दौरान कपिल सिंह राजपूत उर्फ पायलट बाबा खुद के आध्यात्मिक जीवन में आने की बड़ी ही दिलचस्प कहानी सुनाते हैं। बाबा के अनुसार, सन 1996 में वह मिग विमान उड़ा रहे थे। यह एक सामान्य रूटीन था और विमान उड़ाते हुए वाह भारत के पूर्वोत्तर आकाश में थे और वापस बेसिक पर लौटने की तैयारी कर रहे थे। तभी विमान में तकनीकी खराबी आई और अचानक उनका विमान से नियंत्रण खो गया। काफी कोशिश के बाद भी हालात नहीं सुधरे और लगभग यह तय था कि वह विमान हादसे का शिकार होते हैं और उनका बचना लगभग नामुमकिन था। तभी वह एक आवाज पर पीछे पलटे तो कॉकपिट में उनके गुरु हरि बाबा खड़े थे। अचानक से चमत्कार शुरू हो गया और हरि बाबा की शक्तियों के सहारे उन्होंने विमान को सुरक्षित बेस कैंप पर उतार लिया। यही वह क्षण था जिसके बाद उन्होंने तय किया कि अब वह सेना की लड़ाई से दूर शांति और आध्यात्म का जीवन बिताएंगे और पूरी दुनिया को शांति के मार्ग पर ले जाएंगे।
हिमालय पर की तपस्या
पायलट बाबा बताते हैं कि सेना कि नौकरी छोड़ने के बाद अपने गुरु के निर्देश पर व हिमालय चले गए और हिमालय की नंदा देवी घाटी में 16 साल तक तपस्या, ध्यान व योग किया। वहीं पर उन्होंने सत्य की खोज की और फिर दुनिया को आध्यात्म से जोड़ने के लिए वापस लौटे। पायलट बाबा के अनुसार, वह अब तक 100 से भी अधिक बार समाधि ले चुके हैं। इसमें सबसे लम्बी समाधि 30 दिनों की थी। जबकि 9 दिन तक जल समाधि और एक दिन तक बिना ऑक्सीजन वाले कमरे में रहे हैं।
क्या कहते हैं पायलट बाबा
केसरिया चादर और चमकीली सुनहरी रंग की शॉल, सिर पर विशेष टोपी लगा कर अपने भक्तों के बीच रहने वाले पायलट बाबा का अंदाज बेहद ही अलग है। कभी यह अपने शिष्यों के संग क्रिकेट खेलते हुए नजर आ जाएंगे तो कभी कैंप के बाहर कुर्सी लगाकर भक्तों को विशेष आशीर्वाद देते नजर आते हैं।
पायलट बाबा कहते हैं कि वह लड़ाई झगड़े से बहुत दूर हो चुके हैं और सिर्फ प्रेम भक्ति ही उनके अंदर वास करती है वह अधिक से अधिक जन कल्याण के लिए संकल्प बंद है। बाबा के अनुसार ध्यान से बड़ी साधना इस दुनिया में कुछ नहीं है। ध्यान आपको खुद के अंदर छिपी तमाम शक्तियों से रूबरू कराता है, ध्यान सत्य से आपका साक्षात्कार करवाता है।
विदेशी भक्तों की है फौज
पायलट बाबा बेहद ही चर्चित व हाइलाइटेड ग्लैमर वाले बाबा माने जाते हैं। यह अपने भक्तों के बीच महायोगी के तौर पर चर्चित है। इनके पास विदेशी भक्तों की एक बड़ी फौज है। अमूमन दो से ढाई हजार विदेशी भक्त इनके शिविर में पहुंचते हैं। मौजूदा प्रयागराज के कुंभ में भी पायलट बाबा का दावा है कि 2000 विदेशी शिष्य उनके शिविर में पहुंचेंगे। अभी भी 250 से अधिक विदेशी शिष्य इनके शिविर में पहुंच चुके हैं। जिसमें जापान, यूरोप और अमरीका के श्रद्धालू भी शामिल हैं।
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