यूपी में फर्जी मुठभेड़ में तीन पुलिसकर्मियों को फांसी
लखनऊ। आखिरकार लंबे अर्से बाद ही सही गोंडा जिले के फर्जी मुठभेड मामले में दोषियों को सजा मिल ही गई। गोण्डा जिले के बहुचर्चित माधवपुर फर्जी मुठभेड़ कांड के दोषी आठ पुलिसकर्मियों को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की स्पेशल कोर्ट ने शुक्रवार को सजा सुना दी। विशेष अदालत ने शुक्रवार को तीन दोषियों को फांसी की सजा और पांच को उम्रकैद की सजा सुनाई है। गौरतलब है कि माधवपुर कांड के पीड़ित परिजनों ने दोषी पुलिसकर्मियों को फांसी दिए जाने की मांग करते हुए गुरुवार को विधान भवन के सामने प्रदर्शन किया।
इस दौरान पीड़ितों ने कहा है कि दोषियों को अगर फांसी नहीं हुई तो उनका कानून पर से विश्वास उठ जाएगां 12 मार्च 1982 की रात गोण्डा पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में निर्दोष गांववालों की गोली मारकर हत्या कर दी थी और इस मुठभेड़ में तत्कालीन सदर डीएसपी के.पी. सिंह की भी मौत हो गई थी। 12 मार्च की रात को तीन बजे 12 लोगों को घरों से निकालकर पुलिसकर्मियों ने उनके हाथ बांधकर दौड़ा-दौड़ा कर गोली मारी थी।
घटना से गुस्साए इलाहाबाद के समाजसेवी चितरंजन सिंह और मारे गए डीएसपी के.पी. सिंह की विधवा स्वर्गीय विभा सिंह की अलग-अलग याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण की जांच का आदेश सीबीआई को दिया था। सीबीआई ने 1984 में इस घटना की जांच शुरू की थी. इस काण्ड के लिए 19 पुलिस अधिकारियों, कर्मचारियों को दोषी ठहराते हुए सीबीआई ने स्पेशल कोर्ट में आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया।
31 साल तक चली सुनवाई के बाद 29 मार्च 2013 को सीबीआई कोर्ट ने साक्ष्य के आभाव में प्रेम सिंह को बरी कर दिया और 18 पुलिसकर्मियों को आरोपी ठहराया। जिसमें आठ पुलिसकर्मी ही जीवित हैं। माधवपुर काण्ड में मारे गए 12 गांववालों की जीवित विधवाओं और परिजनों ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि फर्जी मुठभेड़ में पुलिस द्वारा मारे गए पीड़ित परिवारों को मुआवजे के रूप में 25-25 लाख रुपये और पेंशन दी जाए. के.पी. सिंह के नाम पर ग्राम सभा माधवपुर में इण्टर कालेज बनवाया जाए और सभी पीड़ित परिवारों के एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए।