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हरियाणा में आसान नहीं ममता दीदी की राह

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Mamata Banerjee
जींद। असमान विकास, भ्रष्टाचार,नई व्यवस्था और नए लोगों को नेतृत्व के अवसर जैसे मुद्दे को लेकर हरियाणा की राजनीति में ममता दीदी की तृणमूल कांग्रेस ने केवल एक महीने पहले पदार्पण किया है। राजनीति में पार्टी का धमाकेदार आगमन हुआ। मुख्यमंत्री के दो मीडिया कॉरडिनेटर अपने दलबल सहित टीएमसी में शामिल हुए तो राजनैतिक गलियारे में चर्चा चलना स्वभाविक था ही। परन्तु केवल एक सप्ताह में बाद अम्बाला से मीडिया कॉरडिनेटर रहें दिलीप चावला ने गृह वापिसी कर ली। कहते हैं कि मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने उसको अपने चंडीगढ़ आवास पर बुलाया और जब चावला बाहर आए तो उसने बताया कि मुख्यमंत्री और उनके बीच गलतफहमी पैदा हो गई थी, जो दूर हो गई है।

उन्होने मुख्यमंत्री को अपना बड़ा भाई बताते हुए कांग्रेस का फिर से दामन थाम लिया। पर उनके जाते ही मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार सुन्दरपाल सिंह ने पद त्याग कर ममता दीदी को अपना नेता मान लिया। अभी चर्चा पर चर्चा चल ही रही थी कि पिछड़ा वर्ग एकता मंच ने तृणमूल कांग्रेस में विलय कर लिया। पांच राज्यों के पार्टी प्रभारी केडी सिंह ने सदस्यता अभियान चलाने और छह माह बाद बड़ी रैली करने का ऐलान कर दिया। हरियाणा में टीएमसी का पूरा घटनाक्रम इस प्रकार रहा। अब एक यक्ष प्रश्र आता है कि हरियाणा में तृणमूल कांग्रेस का क्या भविष्य है या कहे कि क्या हो सकता है? यहां यह बताना भी प्रासांगिक हो कि पार्टी प्रभारी के पास धन की कोई कमी नहीं है।

अगर चर्चाओं पर विश्वास करें तो वे पार्टी में आने वालों को चुनाव के लिए पूरा धन देने का भी आश्वासन देते रहे हैं। कहा यह भी जा रहा है कि प्रदेश प्रभारी सिंह ने कहा है कि धन कोई प्रश्र नहीं है, उनको हरियाणा में रिजल्ट चाहिए। इस तरह टीएमसी का पहला आधार स्तम्भ ही धन पर खड़ा किया गया है। ऐसे में भविष्य पर तो स्वत: ही प्रश्र चिन्ह लग जाता है। दूसरे टीएमसी नेता यह कहते नहीं थकते कि उनके सम्पर्क में हरियाणा के वर्तमान और भूतपूर्व विधायक एवं मंत्री हैं, जो समय आने पर पार्टी में शामिल होने की घोषणा करेंगे। परन्तु पार्टी को खड़ा करने के लिए प्रारम्भिक दौर में बड़े नामों की और जनाधार वाले नेताओं की जरूरत होती है। परंतु पार्टी के पास अभी तक कोई प्रभावी नाम नहीं है। जो लोग पार्टी में अभी तक शामिल हुए हैं, वे अपने क्षेत्र तक ही सीमित हैं।

मुख्यमंत्री के निवर्तमान मीडिया सलाहकार सुन्दरपाल सिंह राजनैतिक पद पर अवश्य थे पर उन्होंने अपने सात साल के कार्यकाल में कोई बड़ा जनाधार खड़ा नहीं किया। वे न तो अपने क्षेत्र में नाम कर सके और न ही वे मीडिया में कमाल दिखा पाएं। पिछड़ा वर्ग एकता मंच के जो कार्यकर्ता और पदाधिकारी अनिल सैनी के नेतृत्व में टीएमसी में शामिल होने चंडीगढ़ पहुंचे थे,उनको यही नहीं पता था कि वे किस पार्टी में जा रहे हैं। अब रही बात तृणमूल कांग्रेस के हरियाणा में मुद्दों का प्रश्र तो पिछले चार सालों से इन्ही मुद्दों पर समस्त भारतीय पार्टी काम कर रही है।

समस्त भारतीय पार्टी भी भ्रष्टाचार, नया नेतृत्व और व्यवस्था परिवर्तन को लेकर मैदान में है। पर पार्टी इस समय में पांच जिलों से आगे नहीं निकल पाई है। जबकि साधनों की सभापा के पास भी कोई कमी नहीं है। पार्टी अपने साधनों के बल पर काम कर रही है। जहां तक नेतृत्व की बात है तो ममता दीदी का हरियाणा में कोई बड़ा प्रभाव नहीं है। केंद्र में अपने ही घटकों से उलझ कर जब ममता दीदी चर्चाओं में आई तो हरियाणा के मतदाताओं का ध्यान उनकी ओर गया। टीएमसी द्वारा जहां तक गैर-जाट वोटों को भी प्रभावित करने का सवाल है तो चर्चाकारों का कहना है कि पार्टी गैर-जाट वोटों को भी प्रभावित नहीं कर पायेगी। क्योंकि अभी पार्टी हजकां और भाजपा की समान रेस में भी नहीं हैै।

मतदाताओं का विश्वास हासिल करने व उन तक पहुंचने के लिए पार्टी के पास कोई ठोस मुद्दा भी नहीं है। प्रदेश के लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए सरकार के खिलाफ भी कोई बड़ा आंदोलन खड़ा करने की पार्टी में क्षमता और मुद्दा भी अभी दिखाई नहीं देता। अगर हजकां से इसकी तुलना की जाए तो जब पार्टी का गठन किया गया, उस समय पार्टी अध्यक्ष कुलदीप बिश्रोई खुद सांसद थे और उनके साथ उनके पिता भजनलाल का बड़ा नाम था। भजनलाल से जुड़े कांग्रेसी नेता हजकां के साथ आ गए थे। उसके साथ ही कुलदीप बिश्रोई ने कांग्रेस में रह कर नेतृत्व पर सवाल खड़े करने का दम दिखाया था। लेकिन टीएमसी के साथ ऐसा कोई नेता भी अभी तक नहीं है। कहा यह जा रहा है कि टीएमसी उन मुद्दों को स्थापित करने का काम अवश्य करेगी, जिनको लेकर समस्त भारतीय पार्टी मैदान में है। यह अलग बात है कि सभापा इसका कितना लाभ उठा पाती है।

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English summary
As Mamata Banerjee camped in Delhi pulling the strings of the presidential election show, two of her lieutenants pitched the tent in Chandigarh to base the Trinamool Congress’s ambitious charge deep into north India.
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