हरियाणा में मिले हड़प्पा कालीन सभ्यता से जुड़े अवशेष
करनाल जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित बोहला खालसा गांव का अपना एक ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व है। ग्रामीणों के अनुसार यह गांव लगभग सैंकड़ों वर्ष पहले बसा था, वर्तमान में गांव की आबादी करीब तीन हजार है। यहां के लोगों का रहन-सहन अच्छा है, गांव में खुशहाली व समृद्धि है। लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती-बाडी है। गरीब लोग भी खेती-बाडी पर निर्भर हैं और खेतों में मजदूरी करके अपना जीवन यापन कर रहे हैं। गांव की गलियां पक्की तथा अन्य मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध है।
गांव में एक ऐतिहासिक एवं पौराणिक टीला है। इस प्राचीन टीले की खुदाई का कार्य पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग भारत सरकार की अनुमति से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि अरूण कुमार पाण्डेय के नेतृत्व में विगत 28 मार्च से चल रहा है और यह कार्य आगामी 16 अप्रैल तक जारी रहेगा। टीले की इस खुदाई में मिले अवशेषों से शोधकर्ताओं की उत्सुकता और बढ़ गई है।
लगातर मिल रहे अवशेषों को देखने के लिए ग्रामीणों का टीले पर तांता लगा रहता है। गांव के लोग भी इस इतिहास के साक्ष्यों को जानने में उत्सुकता दिखा रहे हैं। इन अवशेषों को देखकर ग्रामीणों के चेहरों पर खुशी की लहर नजर आती है। उनका विश्वास है कि टीले की खुदाई से जो अवशेष मिल रहे हैं वे प्राचीन सभ्यताओं से जुड़े हुए हैं और अब उनके गांव का राष्ट्रीय स्तर पर ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जाना जायेगा।
बोहला खालसा निवासी 65 वर्षीय रघुबीर सिंह के अनुसार टीडा बड टीला सदियों पुराना टीला है। यह गांव से लगभग 3 किलोमीटर दूर है। उनका कहना है कि हमारे पूर्वज इस टीले को पीढी दर पीढी देखते आ रहे हैं। इस टीले का इतिहास लगभग 5 हजार वर्ष पुराना है। इसका संबंध हडप्पा कालीन सभ्यता से माना जाता है। उन्होंने बताया कि दंत कथा है कि प्राचीन कालीन सभ्यता में यहां पर शीशा बाजार हुआ करता था और वे किसी प्राकृतिक आपदा के कारण जमीन में गरक गया था और इस स्थान पर जंगल बन गया था।
जैसे ही सैंकड़ों वर्ष पहले बोहला खालसा गांव आबाद हुआ, यहां के लोगों ने इस जंगल को काटना शुरू किया और अपने रहने के लिए और खेती बाडी की जमीन तैयार की। जंगल की कटाई के दौरान ग्रामीणों को एक टीले के रूप में भूखंड मिला। वर्तमान में इस टीले के साथ बरसाती पानी की निकासी के लिए निसिंग ड्रेन नाम की एक ड्रेन भी गुजरती है।
इसी गांव के 48 वर्षीय रामकिशन का कहना है कि इस टीले पर टीडा बड नाम का एक प्राचीन वृक्ष है जो वर्तमान में भी है। इसी प्राचीन वृक्ष बड़ के नाम से इस टीले को टीडा बड़ टीला के नाम से जाना जाता है। इस टीले पर अकेला व्यक्ति आने में भय महसूस करता है। उन्होंने बताया कि इस टीले की इस प्रकार की खुदाई का कार्य पहले कभी नहीं हुआ है। उन्होंन इस बात की प्रसन्नता व्यक्त की कि पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा अब इस टीले की खुदाई का कार्य करवाया जा रहा है, जो पूरे गांववासियों के लिए फक्र की बात है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि अरूण कुमार पाण्डेय के अनुसार बोहला खालसा टीले की खुदाई में चित्रित-भूषित-मृदु- बाण्ड काल (पैंटिड ग्रेव वीयरर) व लेट हडप्पा काल से जुड़े दोनों कालो के साक्ष्यों में मिटटी के मनके, कांच व मिटटी के बर्तन, अनाज का कोषागार (कुठला), मिटटी की दीवार तथा कलाकृति से अंकित लाल रंग की मिटटी के बर्तन शामिल है। उन्होंने बताया कि इस खुदाई का उददेश्य चित्रित-भूषित-मृदु- बाण्ड काल (पी.जी.डब्ल्यू.) व लेट हडप्पा काल के बीच के अन्तर का पता लगाना है।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के पुरातात्विक विभाग के छात्रों द्वारा देश के प्राचीन एवं ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए निरन्तर शोध किए जाते हैं। एक प्रश्र के उत्तर में उन्होंने बताया कि बोहला खालसा प्राचीन टीले का सर्वे सन 1975 में पुरातत्व विभाग हरियाणा की ओर से प्रोफेसर सूरजभान के नेतृत्व में टीम द्वारा किया गया था। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग भारत सरकार की ओर से इस टीले के बारे में जानकारी हासिल की और अनुमति प्राप्त होने के बाद ही यह खुदाई का कार्य शुरू किया गया है। उन्होंने बताया कि इसकी सूचना राज्य सरकार व जिला स्तर पर उपायुक्त तथा पुलिस अधीक्षक को भी दी जा चुकी है।
अरूण कुमार पाण्डेय के अनुसार खनन अथवा इस प्रकार की ऐतिहासिक टीलो की खुदाई करवाने के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय लंदन के बीच हुए समझौते के चलते बोहला खालसा गांव के टीले की खुदाई का कार्य संयुक्त रूप से किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पुरातात्विक विभाग के निदेशक प्रोफेसर रविन्द्रनाथ आगामी 12 व 13 अप्रैल को बोहला खालसा में चल रही खुदाई के कार्य का निरीक्षण करेंगे। इंग्लैंड से आए इतिहासकार पैट्रिक ने बताया कि खुदाई के दौरान पूरी सावधानी बरती जा रही है ताकि अवशेषों को किसी प्रकार की क्षति न हो । उन्होंने बताया कि भारतीय इतिहास का विश्व में अलग ही महत्व है।