सोमनाथ की तरह पार्टी में अलग थलग पड़े जोशी
नई दिल्ली। संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी अपनी ही पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में ठीक उसी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं जैसे पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी परमाणु करार के मुद्दे पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) में पड़ गए थे। यह दीगर बात है कि इसके लिए चटर्जी को बाद में माकपा से निष्कासित कर दिया गया था।
2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में हुए घोटाले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराने की मांग को लेकर भाजपा ने संसद का शीतकालीन सत्र नहीं चलने दिया। संसद का सत्र खत्म होने के बाद पार्टी इस मसले पर सड़कों पर उतर गई लेकिन सरकार इसकी जांच जेपीसी से कराने को तैयार नहीं हुई। सरकार की दलील है कि पीएसी इस मामले की जांच में सक्षम है इसलिए जेपीसी की कोई आवश्यकता नहीं है। यहां तक कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वत: ही इस मामले में पीएसी के समक्ष पेश होने की बात कर विपक्षी दलों की बोलती बंद करने की कोशिश की।
बतौर पीएसी अध्यक्ष जोशी ने भी यह कहकर कि पीएसी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट से आगे तक भी जांच कर सकती है, भाजपा के आक्रमण की धार कुंद कर दी है।
बहरहाल, भाजपा अपने ही नेता (जोशी) की बात से सहमत नहीं है। भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने कहा, "प्रधानमंत्री ने अपने एक अप्रत्याशित पेशकश में कहा है कि वह पीएसी के समक्ष प्रस्तुत होंगे। हम नहीं चाहते कि प्रधानमंत्री कोई परंपरा तोड़ें। हमने ऐसी मांग नहीं की और हम इसके पक्ष में भी नहीं हैं।"
उन्होंने कहा कि पीएसी का दायरा सीमित है और सिर्फ खाताबही का ही काम कर सकती है जबकि शासकीय और जवाबदेही से सम्बंधित मामले में वह दखल नहीं दे सकती है।
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने सोशल नेटवर्किं ग वेबसाइट ट्विटर पर टिप्पणी में लिखा, "पीएसी का दायरा जेपीसी से बिल्कुल अलग है। जहां पीएसी खातों से निपटती है, वहीं जेपीसी जवाबदेही और प्रशासन के साथ।"
पूर्व केंद्रीय मंत्री राम नाइक भी मुरली मनोहर जोशी के दावे से असहमत दिखे। नाइक ने कहा, "मैं पीएसी का अध्यक्ष रह चुका हूं। सीएजी की रिपोर्ट के आधार पर ही पीएसी जांच कर सकती है, बाकी के विषयों में विचार का उसे अधिकार नहीं है।"
बहरहाल, मुरली मनोहर जोशी जहां यह साबित करने पर अड़े हैं कि पीएसी 2जी स्पेक्ट्रम मामले की गहराई से जांच करने में सक्षम है वहीं भाजपा इसे नाकाफी करार देते हुए जेपीसी मांग पर अड़ी है। जेपीसी और पीएसी के इस चक्कर में जोशी पूरी तरह पार्टी में अलग-थलग पड़ गए हैं। ठीक उसी तरह जिस तरह परमाणु करार के मुद्दे पर सोमनाथ चटर्जी पड़ गए थे। पार्टी के विरोध के बावजूद चटर्जी ने परमाणु करार पर मतदान के लिए लोकसभा की कार्यवाही का संचालन किया था।
सोमनाथ
को
बाद
में
इसका
खामियाजा
भी
भुगतना
पड़ा
था
और
उन्हें
पार्टी
से
निष्कासित
कर
दिया
गया
था
लेकिन
जोशी
के
मामले
में
ऐसा
सम्भव
नहीं
दिखता।
क्योंकि
उनका
चेहरा
पार्टी
में
संघ
का
चेहरा
माना
जाता
है।