मुझे तो लूट लिया मिलकर अशोक-राजा-कलमाड़ी ने .....
कभी उसके शागिर्द 'आदर्श घोटाला' करते हैं तो कभी खेल के नाम पर अपनी कोठियां बनवा डालते है। कुछ 'राजा' जैसे महान होते है जो कर डालते हैं देश का सबसे बड़ा घोटाला। और हमारी कांग्रेस सरकार बड़े प्यार से अपने इन प्यारे सपूतों से इस्तीफे मांग लेती है और कहती है कि उन्हें मेरा पूरा-पूरा ख्याल है, इसलिए वो भ्रष्ट्र नेताओं से मुझे छुटकारा दिला रही है।
अब कोई उनसे पूछे कि जब ये घोटाले होते हैं तब उसे मेरा ख्याल क्यों नहीं आता, तब उसका प्यार कहां चला जाता है? वो इन सारे नेताओं से इस्तीफे क्यों मांगती है अगर उसे मेरा वाकई ख्याल है तो वो उनसे उन पैसों का हिसाब क्यों नहीं मांगती है जो मेरी गाढ़ी कमाई का हिस्सा है।
2g स्पैक्ट्रम घोटाले से उजागर हुए राजा कल तक यही चिल्लाते रहे कि कुछ भी हो जाये इस्तीफा नहीं दूंगा, फिर अचानक उनका इस्तीफा सामने आ गया क्योंकि शायद उनसे यही कहा गया कि सिर्फ इस्तीफा ही तो मांग रहे हैं, पैसे तो नहीं मांग रहे, हिसाब तो नहीं मांग रहे, औऱ राजा साहब मुस्कुराते हुए बोले ठीक है 'करूणानिधि जी दे देता हूँ मैं इस्तीफा, जैसा आप कहें' और भाई साहब मंत्रालय को बॉय-बॉय कहते हुए निकल गये।
क्यों मैने कुछ गलत कहा क्या? यही तो हुआ है, सदियों से यही होता आया और आगे भी यही होता रहेगा, खुदा और इतिहास गवाह है, जब भी कोई घोटाला होता है, विपक्ष चिल्लाता है, सत्ता पक्ष सफाई देती है, जब उससे काम नहीं चलता है तो इस्तीफे ले लेती है, कभी-कभी कमेटी बन जाती है, जांच कमेटी बैठती है, जब ज्यादा शोर मचता है तो रिपोर्ट जल्दी आ जाती है।
लेकिन कभी नहीं होता कि पैसों का हिसाब हो, कभी किसी नेता की पॉकेट से पैसे नहीं लिये जाते हैं जबकि सबको पता है कि इन भ्रष्ट्र नेताओं ने ही बिना डकार के मेरे पैसे खाये है, सरकार अपने इन फर्जी नुमाइदों को उनकी पोस्ट से हटाकर चिल्लाती है कि उसे मेरा ख्याल आ गया है लेकिन क्या उसके कोरे वादों से मेरे वो पैसे वापस आ जायेंगे जो मेरे बच्चों के निवाले से काट कर उसके नुमांइदों की तिजोरियां भरते आयें हैं।
अब आप को बड़ी उत्सुकता हो रही होगी कि मैं कौन हूँ। तो जनाब मैं आप ही का दोस्त, भाई या बहन जो कह लो वो हूँ, मेरा नाम आम आदमी है, जो 24 घंटे में से 14 घंटे अपना पसीना बहाकर कुछ पैसे जुटाता है, ताकि उसका परिवार की जीविका अच्छे से चले, उसी जी-तोड़ पसीने की कमाई से कमाये कुछ पैसे सरकार के नाम पर आंख बंद कर के दे देता हुँ, ताकि सरकार हमारा ख्याल रखेगी लेकिन सरकार बहुत ज्यादा मेहरबान होकर मुझे घोटालों का तोहफा दे देती है जिसके तकाजे पर हमें मिलते हैं चव्हाण, कलमाड़ी और राजा के इस्तीफे।
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जिनसे केवल सरकार खुश और विपक्ष शांत हो जाता है लेकिन मेरा क्या जो सत्ता के भरे चौराहे पर लुट चुका है और पूरी तरह से राजनीति का कोपभाजन बन चुका है, अब आप बताइये की क्या इस्तीफों की तथाकथित मलहम से मेरा दर्द कम हो सकता है?