क्या है नार्को, पोलीग्राफ, और ब्रेन-मैपिंग टेस्ट!
जांच एजेंसियों द्वारा जांच में मदद के लिए किए जाने वाले ये सभी टेस्ट एक-दूसरे से अलग हैं लेकिन इन सभी का इस्तेमाल महत्वपूर्ण जानकारियां इकट्ठी करने के लिए किया जाता है।
नार्को-परीक्षण में संदिग्ध से महत्वपूर्ण जानकारियां निकलवाने के लिए उसकी शिराओं के भीतर कृत्रिम निद्रावस्था की दवाएं (ट्रुथ ड्रग्स) दी जाती हैं।
पोलीग्राफ को लाई डिटेक्ट टेस्ट या झूठ पकड़ने वाले परीक्षण के रूप में जाना जाता है। इसमें संदिग्ध से प्रश्नों की एक श्रृंखला पूछे जाने के दौरान उसमें होने वाले दैहिक परिवर्तनों जैसे रक्तचाप, नाड़ी, श्वसन और त्वचा संबंधी बदलावों पर नजर रखी जाती है।
जब संदिग्ध प्रश्नों के भ्रामक या गलत जवाब देता है तो उसकी इन शारीरिक गतिविधियों में जो बदलाव देखे जाते हैं, वे सही जवाब देते समय होने वाले बदलावों से अलग होते हैं।
ब्रेन-मैपिंग में मस्तिष्क में उठने वाली विभिन्न आवृत्तियों की तरंगों का अध्ययन किया जाता है। परीक्षण में अपराध शाखा के विशेषज्ञ तंत्रिका विज्ञान की विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। अपराध के दृश्यों को पहचानने वाले संदिग्ध के मस्तिष्क की तरंगों में जो परिवर्तन देखे जाते हैं वे निर्दोष व्यक्ति के मस्तिष्क की तरंगों से अलग होते हैं।
ब्रेन-मैपिंग में व्यक्ति के सिर से सेंसर्स को जोड़ दिया जाता है और उसे एक कंप्यूटर के सामने बिठा दिया जाता है। इसके बाद संदिग्ध को अपराध से जुड़ी तस्वीरें दिखाई जाती हैं या उससे जुड़ी ध्वनियां सुनाई जाती हैं।
सिर से जुड़े सेंसर तस्वीरों को देखते समय या ध्वनियां सुनते समय मस्तिष्क में उठने वाली तरंगों को दर्ज कर लेते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।