अदालत के फैसले का वकीलों, कार्यकर्ताओं ने किया स्वागत
नक्सली नेता कोबद गांधी के वकील रेबेक्का एम. जॉन सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से बेहद खुश हुए। उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "अदालत के इस फैसले से मैं बहुत खुश हूं। मेरा मानना है कि काफी पहले ही यह निर्णय आ जाना चाहिए था। नार्को परीक्षण असंवैधानिक है और सर्वोच्च न्यायालय ने इसे बरकरार रखा है।"
दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने गांधी का नार्को परीक्षण कराए जाने की अनुमति दी थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस फैसले पर रोक लगा दी थी।
उन्होंने कहा, "नार्को परीक्षण कानून का उल्लंघन है। वैज्ञानिक परीक्षण के नाम पर यह जादू टोना है।"
जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने भी अदालत के इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, "नार्को परीक्षण अपूर्ण, अनिश्चित और मुश्किल प्रक्रिया है। इस सत्य से इतर यह गलत जानकारी भी देता है।"
वरिष्ठ वकील माजिद मेनन ने इसे महत्वपूर्ण फैसला करार दिया। उन्होंने कहा, "किसी भी व्यक्ति को स्वयं के खिलाफ गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। उन्हें चुप रहने का अधिकार है। देश में कई मौकों पर गरीबों और निर्दोष लोगों को स्वयं के खिलाफ बोलने को मजबूर किया जाता है। इस लिहाज से यह अहम फैसला है।"
अधिकार कार्यकर्ता श्रावणी शर्मा ने मेनन की बात से सहमति जताई और कहा, "निश्चित तौर पर यह एक स्वागत योग्य फैसला है। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि गरीब व असहाय लोगों को झूठे मामलों में फंसाया जाता है और उन्हें इन परीक्षणों से गुजरने को मजबूर किया जाता है।"
सरकारी वकील उज्जवल निकम ने कहा, "नार्को परीक्षण का सिर्फ जांच की एक कड़ी के रूप में इस्तेमाल होता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद बगैर सहमति के इन परीक्षणों को नहीं किया जा सकता।"
उन्होंने कहा, "अजमल कसाब के मामले में हमने कभी नार्को परीक्षण नहीं किया।" उल्लेखनीय है कि कसाब को मुंबई हमलों का दोषी ठहराया गया है।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के प्रवक्ता हर्ष बहल ने इस पर प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।