दक्षिण एशिया के नेता विकास की चुनौती को स्वीकार करें : मनमोहन (लीड-2)
थिंपू, 28 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दक्षेस के 25 वर्षो के समय को आधा भरा गिलास बताते हुए दक्षिण एशिया के नेताओं से विकास की चुनौती को स्वीकार करने को कहा है। वहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी से उनकी मुलाकात पर जारी अटकलें भी खत्म हो गईं हैं।
थिंपू में आयोजित 16वें दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) की शिखर बैठक से इतर गुरुवार को मनमोहन सिंह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी से द्विपक्षीय मुलाकात करेंगे।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने कहा कि दोनों प्रधानमंत्री गुरुवार को भूटान की राजधानी थिंपू में मिलेंगे। दोनों पक्ष राजनयिक माध्यमों से बातचीत करने को राजी हो गए हैं।
दोनों नेताओं के बीच बैठक कब और कहां होगी, इस बारे में अभी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं मिल पाई है। लेकिन पाकिस्तानी विदेश विभाग के सूत्रों ने आईएएनएस को बताया है कि दोनों नेता गुरुवार को अपराह्न् 6.30 बजे मिलेंगे।
जुलाई 2009 में शर्म अल-शेख में हुई बातचीत के बाद दोनों नेताओं के बीच यह पहली मुलाकात है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को दक्षेस के 25 वर्षो के समय को आधा भरा गिलास बताते हुए दक्षिण एशिया के नेताओं को चेतावनी दी कि बेहतर संचार और सशक्तिकरण नहीं होने पर दुनिया की एक चौथाई आबादी के सामने हाशिए पर जाने और ठहराव का खतरा पैदा हो सकता है।
दक्षेस के 16वें शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा, "दक्षेस के ढाई दशक के समय को देखते हुए हम दावा कर सकते हैं कि गिलास आधा भरा हुआ है और खुद को बधाई दे सकते हैं या हम स्वीकार कर सकते हैं कि गिलास आधा खाली है और हमारे सामने चुनौतियां हैं।"
उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि हमें क्षेत्रीय सहयोग, क्षेत्रीय विकास और क्षेत्रीय एकता के गिलास को आधा खाली स्वीकार कर अपने सामने चुनौती रखनी चाहिए।"
बेहतर क्षेत्रीय सहयोग की वकालत करते हुए सिंह ने 'संपूर्ण दक्षिण एशिया के विकास के बारे में अपने दृष्टिकोण' के बारे में चर्चा की।
सिंह ने कहा, "क्षेत्र में लोगों, वस्तुओं, सेवाओं और विचारों की मुक्त आवाजाही होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो हमें हाशिए पर जाने और ठहराव के खतरे का सामना करना होगा।"
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनिया के मंचों पर दक्षिण एशिया के लोगों की आवाज जितनी मजबूत होनी चाहिए उतनी है नहीं।
सिंह ने कहा कि क्षेत्र के बीच व्यापार और परिवहन तथा दूरसंचार संपर्क बढ़ रहा है लेकिन पूर्वी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया की तुलना में दक्षेस देशों के बीच व्यापार और निवेश प्रवाह कम है। यह क्षमता से भी कम है।
सिंह ने कहा, "हमने क्षेत्रीय सहयोग के लिए संस्थाएं स्थापित की लेकिन उनको अभी तक अधिक सक्रिय भूमिका निभाने लायक क्षमतावान नहीं बनाया।"
इस अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को याद करते हुए सिंह ने कहा कि वर्ष 1985 में ढाका में आयोजित पहले दक्षेस शिखर सम्मेलन में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री ने दक्षेस की स्थापना को 'एक भरोसे का कार्य' बताया था।
मनमोहन ने कहा, "अब तक के अनुभव के आधार पर हम कह सकते हैं कि यह अत्यधिक दूरदर्शिता और राजनीतिक बुद्धिमत्ता का कार्य भी है।"
प्रधानमंत्री ने कहा कि सहयोग का अर्थ शिखर सम्मेलन की घोषणाएं और अधिकारी स्तर की बैठकें नहीं हैं। क्षेत्रीय सहयोग में लोगों, वस्तुओं, सेवाओं और विचारों की मुक्त आवाजाही होनी चाहिए। यह हमारी साझा विरासत की फिर से खोज और समान भविष्य में मददगार होना चाहिए।
सिंह ने जोर दिया कि दक्षिण एशिया के एकजुट हुए बिना 21वीं सदी एशिया की सदी नहीं हो सकती।
प्रधानमंत्री ने कहा, "हम अपने सपनों के दक्षिण एशिया को पुनर्जीवित करने की प्रतिज्ञा करें जो एक बार फिर नए विचारों, नए ज्ञान और नई संभावनाओं का स्रोत हो।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।