महाजनी प्रथा के खिलाफ महिलाओं का अनोखा 'बैंक'
रांची, 8 मार्च (आईएएनएस)। कल तक बेरोजगारी का दंश झेल रही कमला देवी आज एक दुकान चलाकर न केवल अपने बच्चों को पालन-पोषण रही हैं बल्कि उन्हें अच्छी शिक्षा देने के सपने भी देख रही है। इसी तरह बालो देवी भी एक अंडा दुकान चला रही हैं। यह कहानी झारखण्ड की सिर्फ दो महिलाओं की नहीं है बल्कि ऐसी कई महिलाएं और समूह हैं जो 'इथिका वित्त अभिक्रम' नामक बैंक के सहारे सुविधा संपन्न जीवन के सपने देख रही हैं।
झारखण्ड के गिरीडीह जिले के बेंगाबाद प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत करमजोरा गांव में जनजातीय महिलाएं खुद एक बैंक चला रही है। महाजनी प्रथा का अंत करने के लिए प्रारंभ किए गए इस बैंक ने अब स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के नाम पर बिना किसी ब्याज के महिलाओं को ऋण देना आरंभ किया। इस बैंक में कोई भी महिला खाता खोल सकती है। खाता खोलने के लिए निश्चित रकम निर्धारित नहीं की गई है।
बैंक में प्रबंधक का पद संभाल रही पुष्पा ने आईएएनएस को बताया कि वर्ष 2001 में महिलाओं के लिए प्रारंभ किए गए इस बैंक में वर्तमान समय में 475 खाताधारी हैं, जबकि इस बैंक में 4़ 58 लाख से ज्यादा रुपए जमा हैं। वह बताती हैं कि अब तक इस बैंक से कई महिलाओं के अलावा 26 स्वयं सहायता समूह को पांच लाख से ज्यादा रुपये बतौर ऋण दिया गया है।
गिरीडीह जिला मुख्यालय से लगभाग 22 किलोमीटर दूर महिलाओं के इस बैंक में खजांची की भूमिका में कार्य कर रही सुशांति कुमारी बताती हैं कि नौ महिलाओं की समिति है जिसपर बैंक के देखरेख का दायित्व है। यह समिति ही बैंक में ऋण के आवेदन आने पर उस पर विचार कर ऋण देती हैं।
सुशांति ने कहा कि गांव में महाजनी प्रथा का अंत करने के लिए इस बैंक की स्थापना की गई थी। उन्होंने बताया कि महाजन लोगों को कर्ज अवश्य देते हैं परंतु उनके ब्याज की राशि देते-देते लोग परेशान हो जाते थे। उन्होंने कहा कि यह बैंक उन्हीं महिलाओं को ऋण देता है जिसका इस बैंक में खाता रहता है। बैंक में कार्य कर रही महिलाएं यहां बिना किसी पारिश्रमिक के काम कर रही हैं। यह बैंक ग्रामीण महिलाओं के लिए 24 घंटे खुला रहता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।