पेट भरने के लिए मजदूरी करने वाला बनारसी चलाता है पाठशाला
पटना, 12 नवंबर (आईएएनएस)। यह जानकर ताज्जुब होगा कि पेट की आग बुझाने के लिए दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करने वाले बनारसी मुसहर गत 40 वर्षो से बच्चों को शिक्षित करने में लगे हैं। यह बात बिहार के कैमूर जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर कोछी गांव की है।
पहले रिक्शा चलाकर पेट भरने वाले बनारसी आजकल एक ईंट भट्ठी में मजदूरी करते हैं। एक तरफ वह गरीबी से लड़ रहे हैं। दूसरी तरफ शिक्षा का जुनून लिए गांव में पाठशाला चलाते हैं।
बनारसी ने आईएएनएस को बताया, "मैं वर्ष 1968 से ही बच्चों को साक्षर करने में लगा हूं। बचपन से ही शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करने की इच्छा थी परंतु गरीबी के कारण कुछ बड़ा योगदान नहीं दे सका। हालांकि मुझे इस बात का सुकून है कि मेरी कोशिश से अब तक सैकड़ों छात्र 10 वीं की परीक्षा पास कर चुके हैं।"
गांव में प्रतिदिन शाम को एक से दो घंटे की पाठशाला चलाने वाले बनारसी के यहां पहली से सातवीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है। बनारसी ने बताया कि अभी उनकी पाठशाला में 50 से 55 बच्चे पढ़ने आते हैं।
बनारसी की पाठशाला में छठी कक्षा में पढ़ने वाला छात्र रिंकु मुसहर ने बताया, "बनारसी गुरुजी की पढ़ाई आसानी से मेरे समझ में आती है। सारा दिन बकरी चराने के बाद शाम को हम लोग यहां पढ़ने आते हैं।"
इंटरमीडिएट के छात्र संजय कुमार ने कहा, "फिलहाल मैं जहां हूं वह बनारसी गुरुजी की कृपा और उनके द्वारा दी गई शिक्षा का फल है।"
उधर, बनारसी का कहना है कि इस काम के लिए उसने न किसी से सहायता मांगी है और न ही किसी ने आगे बढ़कर उनकी सहायता की है। हालांकि गांव के लोग इस पाठशाला के लिए कुछ आवश्यक चीजें जुटा देते हैं।
कुल मिलाकर, बनारसी को अब तक कोई सहयोग नहीं मिला है, परंतु वह शिक्षा दान के क्षेत्र में लोगों के लिए मिसाल बन चुके हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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