भाजपा के राजनीतिक प्रस्ताव में परमाणु करार की समीक्षा का जिक्र नहीं (लीड-1)
बेंगलुरू, 13 सितम्बर (आईएएनएस)। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के लिए केंद्र की कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को खरी-खरी सुनाते हुए उस पर लगभग साढ़े चार वर्षो के अपने शासनकाल में राष्ट्र हितों को पूरी तरह ताक पर रखने का आरोप लगाया है। हालांकि पार्टी ने इस विषय पर चुप्पी साध ली कि यदि केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार बनती है तो वह इस करार को करेगी या नहीं।
देश के हाई-टेक शहरों में शुमार किए जाने वाले बेंगलुरू में चल रही भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दूसरे दिन पारित राजनीतिक प्रस्ताव के जरिए परमाणु समझौते, जम्मू कश्मीर, सिमी और आतंकवाद के मुद्दे पर संप्रग सरकार की तीखी आलोचना की गई। पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने यह राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया, जिस पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ही बोले। बाद में इसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया।
परमाणु करार के मौजूदा स्वरूप को गैर बराबरी वाला बताते हुए भाजपा ने कहा है कि वर्तमान स्वरूप में यह करार भारत की सामरिक संप्रभुता और परमाणु परीक्षण के अधिकार को गहरे खतरे में डालता है। भारत के परमाणु परीक्षण के अधिकार पर किसी भी तरह की सौदेबाजी को भाजपा स्वीकार नहीं करेगी।
प्रस्ताव में कहा गया है कि इस पूरे करार के जरिए और अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के वक्तव्यों से यह स्पष्ट है कि संप्रग सरकार ने संसद और देश की जनता के साथ धोखा किया है। संसद को दिए गए सारे आश्वासन बेमानी हो गए हैं।
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह से परमाणु व्यापार संबंधी मिली छूट को भारत के लिए नुकसानदेह बताते हुए पार्टी ने कहा है कि इसमें सुरक्षा के गंभीर अर्थ निहित है। देश ने 'क्रेडिबल मिनिमम न्यूक्लियर डेटरेंस' विकसित करने का अधिकार खो दिया है। परमाणु ऊर्जा के बारे में प्रस्ताव में कहा गया है कि करार से यह स्पष्ट नहीं है कि देश को किस कीमत पर परमाणु ऊर्जा मिलेगी।
परमाणु करार को पार्टी ने अपने राजनीतिक प्रस्ताव में प्रमुखता से सामने रखा है लेकिन प्रस्ताव में कहीं भी यह जिक्र नहीं है कि भाजपा यदि सत्ता में आती है तो वह यह करार करेगी या नहीं। उल्लेखनीय है कि पार्टी ने पिछले कई मौकों पर कहा है कि यदि वह सत्ता में आई तो नए सिरे से इस करार को करेगी क्योंकि वह वामपंथियों की तरह अमेरिका विरोधी नहीं है।
प्रस्ताव में जम्मू कश्मीर की हालिया घटनाओं के बारे में कहा गया है कि संप्रग सरकार की घोर उदासीनता ने राज्य में अलगाववादी राजनीति को भड़काने में मुख्य भूमिका निभाई है। अमरनाथ भूमि विवाद मामले में सरकार ने अलगाववादियों के सामने घुटने टेक दिए हैं। लेकिन राष्ट्रवादी शक्तियों के व्यापक जनांदोलन ने सरकार को अपने आदेश वापस लेने के लिए विवश कर दिया। भाजपा ने घाटी में अलगाववादी तत्वों से कठोरतापूर्वक निपटने की मांग की है।
आतंकवाद के खिलाफ नरम रवैया अपनाने का केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए पार्टी ने सिमी और हूजी जैसे आतंकवादी संगठनों पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग की है। पार्टी ने आतंकवाद पर काबू पाने के लिए सीमाओं पर चौकसी मजबूत करने के साथ-साथ पाकिस्तान पर राजनयिक दबाव बनाने की भी मांग की। पार्टी ने एक बार फिर संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी पर लटकाने की मांग की।
उड़ीसा की हाल की घटनाओं का जिक्र करते हुए प्रस्ताव में धर्मातरण को देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बताया गया है।
लोकसभा में विश्वास मत के दौरान हुए 'वोट के बदले नोट' प्रकरण को इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना करार देते हुए पार्टी ने कहा कि इस पूरे प्रकरण का सबसे दुखद पहलू यह है कि प्रधानमंत्री की राजनीतिक ईमानदारी पर गंभीर प्रश्नचिह्न् लग गया है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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