आपदाओं से निपटने के लिए हिमाचल में कोई तैयारी नहीं
विशाल गुलाटी
विशाल गुलाटी
नैना देवी (हिमाचल प्रदेश), 4 अगस्त (आईएएनएस)। नैना देवी मंदिर में मची भगदड़ में 145 व्यक्तियों की मौत ने प्राकृतिक और मानवीय आपदाओं से निपटने में हिमाचल प्रदेश के अधिकारियों की अक्षमता एक बार फिर उजागर कर दी है। भगदड़ के समय यहां स्ट्रेचर ,एंबुलेंस और वरिष्ठ अधिकारी नदारद थे।
विशेषज्ञों के अनुसार राज्य के अधिकांश जिलों के प्राकृतिक रूप से संवेदनशील होने और भूकंपों,भूस्खलन और बादलों के फटने की कई घटनाओं के होने के बावजूद सरकारी तंत्र के पास अभी तक एक प्रभावी आपदा प्रबंधन नीति का अभाव है।
रविवार को नैना देवी मंदिर में हुई भगदड़ ने एक बार फिर अधिकारियों के ऐसे हादसों से निपटने में सक्षम होने के दावे की पोल खोल दी।
सुबह हुई भगदड़ के बाद अधिकारी शाम तक मृतकों की संख्या के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ कहने में असमर्थ थे।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार दुर्घटना के घंटों बाद पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे। यहां तक कि बिलासपुर के उपायुक्त पी.सी.वर्मा और पुलिस अधीक्षक के.के इंदौरिया त्रासदी के चार घंटे बाद वहां पहुंचे।
एक प्रत्यक्षदर्शी नरेश सिंह ने कहा कि घटना के बाद घायलों को उठाने के लिए कोई स्ट्रेचर नहीं था। अधिकांश घायलों को हाथों से ही उठाकर अस्पताल ले जाया गया।
उसने बताया कि जब वह दो बच्चों को लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचा तो वहां केवल एक डाक्टर घायलों की भारी संख्या को देखने के लिए उपलब्ध था।
विधायक राजेंद्र शर्मा ने बताया कि स्थानीय अस्पताल में कोई एंबुलेंस नहीं थी इसलिए उन्होंने स्वंयसेवकों से मदद मांगी। उन्होंने कहा कि मंदिर जाने वाली सड़क खचाखच भरी थी इसलिए बचाव कार्य में बाधा आई।
चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान के पूर्व अध्यक्ष रविंदर कुमार ने कहा कि मंदिर को जाने वाली सड़क का क्षेत्र भूस्खलन की संभावना वाला क्षेत्र है । इसके बावजूद सरकार ने कोई सुरक्षात्मक उपाय नहीं किए।
एक स्थानीय दुकानदार राजकुमार मारिया ने कहा कि सरकार ने पहले हुए दो हादसों से कोई सबक नहीं सीखा।
1981 में जब मंदिर में जाने और आने के लिए केवल एक ही दरवाजा था, उस समय मची भगदड़ में 53 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद 6 अगस्त, 2001 को भारी भीड़ के कारण एक रेलिंग के ढहने से एक महिला की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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