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चौदह साल का दीपक पाल रहा है परिवार

By Staff
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वाराणसी, 25 मई (आईएएनएस)। कहते हैं कि यदि किसी को ऐसा काम मिल जाए जिसमें न हरे लगे न फिटकरी और रंग चोखा हो, तो उसे भला कौन नहीं करना चाहेगा। वाराणसी के रामनगर का रहने वाला चौदह साल का दीपक पांडेय भी अपनी छोटी सी उम्र में ऐसा ही कुछ कर रहा है।

दीपक पर परिवार पालने की जिम्मेदारी पड़ी तो उसने चंदन का टीका लगाने में ही माहिरी हासिल कर ली। आज वह तेरह प्रकार से चंदन का टीका लगाता है जिसमें सूर्य, चन्द्र, स्वास्तिक, त्रिपुंड, गुजराती, मद्रासी, महाराष्ट्री सहित बदरीनाथ केदारनाथ मार्का भी टीका वह लगाता है। आज दीपक टीका लगाने में इतना चर्चित हो गया है कि उसे लोग बड़ी-बड़ी पार्टियों में सिर्फ बनारसी टीका लगाने के लिए ही लोग न सिर्फ बुलाते हैं, बल्कि बदले में उसे मोटी रकम भी श्रद्धा से देते हैं।

उसने अपने परिवार का पेट पालने के लिए न सिर्फ पुश्तैनी धंधा चुना है बल्कि इसमें थोड़ा सा निवेश करके मोटी कमाई भी कर रहा है।

दीपक पांडेय अपने खेलने खाने की उम्र में लोगों को चंदन का टीका लगाकर न सिर्फ अपने छह लोगों के परिवार का पेट पालता है बल्कि एक अच्छे व्यवसायी की तरह जीवन भी गुजार रहा है। दीपक की कमाई प्रतिदिन की 500 से 600 रुपये की है, लेकिन इसके लिए दीपक को दिन भर 20 से 25 किलोमीटर तक पैदल भी चलना पड़ता है। दीपक रामनगर से पैदल डोचली में चंदन, रोली और गंगा जल प्रसाद के रूप में देता है। बदले में उसे लोग एक रुपये या दो रुपये स्वेच्छा से दे देते हैं। इस तरह दीपक प्रतिदिन लगभग हजार लोगों से मिलता है। वह बताता है कि कहीं-कहीं उसे लोग जलील भी करते हैं और कहीं-कहीं हमारी मेहनत को सराहना भी मिलती है।

चंदन का टीका लगाने के व्यवसाय में दीपक अकेला नहीं है बल्कि उसके एक भाई और दो बहनें भी उसके इस काम में हाथ बंटाते हैं। दीपक बताता है कि प्रतिदिन 70 रुपये का सामान जिसमें चंदन, रोली, अष्टगंध, तुली और महावीरी लगता है जिसे घर के लोग घिस कर तैयार करते हैं और मैं उसे लेकर पूरे शहर में घूमता हूं। चंदन लगाने के बाद किसी से मैं कुछ मांगता नहीं हूं, बल्कि लोग अपने से एक रुपये, दो रुपये दे देते हैं। दीपक बताता है कि चूंकि पिता जी अब चल नहीं पाते हैं और दोनों बहनों की शादी और भाई के पढ़ाई की जिम्मेदारी मेरे ऊपर ही है, इसलिए मुझे ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है।

दीपक के पिता विंध्याचल पांडेय अपने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि भले ही इस समय लोगों में श्रद्धा की कमी आई है, लेकिन हम लोगों की आमदनी में वृद्धि हुई है। वे बताते हें कि मैं भी लगभग इतनी ही मेहनत करता था, लेकिन पूरे परिवार का गुजारा बमुश्किल ही हो पाता था। आज वही काम मेरा बेटा करता है और हमारा पूरा परिवार ठाट से रहता है।

यह पूछने पर कि सबसे ज्यादा कमाई किस सीजन में होती है, तो पांडेय बताते हैं कि जब रामनगर की रामलीला होती है, तो उस समय हम लोगों की चांदी रहती है। वे बताते हैं कि पूरे रामनगर में हमारा परिवार टीका वाले पंडित के नाम से ही जाना जाता है। यहां के लोग भले ही इस पर हंसते हैं, लेकिन बेरोजगारी के इस दौर में नौकरी कहां मिलती है, दर दर भटकने से अच्छा है कि अपना पुश्तैनी धंधा करें।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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