शुक्र की 12वें भाव में स्थिति डालती है जीवन पर असर
लखनऊ। ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को भौतिक वस्तुओं का संकेतक ग्रह माना गया है। धन, वैभव, संगती, जीवन साथी आदि का सुख शुक्र ग्रह के बलावन होने से प्राप्त होता है। वैसे तो शुक्र का कुण्डली में हर भाव में बैठना अलग-अलग फलदायक रहता है। किन्तु आज हम बात कर रहे है बारहवें भाव में शुक्र की स्थिति क्या कहती है।
भोगात्मक ग्रह
शुक्र ग्रह चूंकि एक भोगात्मक ग्रह है, इस कारण इसका भोगात्मक बारहवें भाव से विशेष सम्बन्ध तथा लगाव है। जितना अधिक शुक्र बारहवें भाव तथा उसके स्वामी पर प्रभाव डालेगा उतना ही अधिक वह शुक्र जातक के लिए भोगों की सृष्टि करेगा। अतः स्पष्ट है कि जब द्वादशेश तथा शुक्र दोनों एक साथ द्वादश स्थान में स्थित हों तो मनुष्य बहुत धन तथा भोगों को भोगने वाला होगा।
होराशतक में कहा गया है कि...
कथितैर्नियमैरेव
द्वादशस्थानगो
भृगुः।
अन्त्यपेन
च
संयुक्तो
विशेषेण
धनदायकः।।
अर्थात
कथित
नियमों
को
दृष्टि
में
रखते
हुये
हम
कह
सकते
है
कि
जब
शुक्र
द्वादशाधिपति
के
साथ
होकर
द्वादश
स्थान
में
स्थित
हो
तो
विशेष
धन
देने
वाला
होता
है।
भावार्थ रत्नाकर
माषे
जातस्य
धनपो
व्ययस्थोपि
कविः
शुभः।
इतर
ऋक्षे
तु
जातस्य
व्ययस्थो
धनपोशुभः।।
केवल मेष लग्न वालों का शुक्र यदि द्वादश स्थान में हो तो शुभ फल मिलता है अर्थात धन देने वाला है। अन्य कोई लग्न हो और ग्रह द्वितीयेश होकर द्वादश में हो तो शुभदायक नहीं होता है।
'उत्तरकालामृत'
स्वोच्चेस्वर्क्षसुरेज्यभस्थरविजो,लग्नस्थितोपीष्टकृत
शुक्रो
द्वादशसंस्थितोपि
शुभदो
मन्दांशराशी
बिना।।
अर्थात शनि यदि अपनी उच्च अथवा निज राशि में अथवा गुरू की राशि में, लग्न में स्थित हो तो शुभ फल मिलता है और शुक्र द्वादश भाव मेें भी यदि शनि की राशि अथवा नवांश के बिना स्थित हो शुभ फल देता है।
‘षष्ठस्थः शुभकृत्कविः'
उत्तराकालामृतकार का कहना है कि ‘‘षष्ठस्थः शुभकृत्कविः'' अर्थात छठे स्थान में स्थित शुक्र शुभकारी होता है।
भावार्थरत्नाकार
ने
भी
छठें
शुक्र
के
बारें
में
यही
विचार
किया
है-
शुक्रस्य
षठसंस्थानं
योगदं
भवति
ध्रुवम्।
व्ययस्थितस्य
शुक्रस्य
यथायोगं
वदन्ति
हि।।
अर्थात
शुक्र
का
छठें
भाव
में
होना
योग
अर्थात
शुभता
की
अवश्य
सृष्टि
करता
है,
जैसी
शुभता
उसके
द्वादश
भाव
मेें
स्थित
होने
से
उत्पन्न
होती
है।
कर्क लग्न वालों के लिए भी शुक्र की द्वादश स्थिति को योगप्रद
कर्के
जातस्य
शुक्रस्तु
धनगोपि
वा।
योगप्रदस्तु
भवति
हि
अन्यत्र
न
हि
योगदः।।
अर्थात
कर्क
लग्न
में
जन्म
लेने
वालों
के
लिए
शुक्र
का
व्यय
अथवा
धन
स्थान
में
स्थित
होना
योग
अर्थात
शुभ
फल
देने
वाला
होता
है।
निष्कर्ष-शुक्र
का
बारहवें
भाव
से
सम्बन्ध
होना
अनुकूल
स्थिति
पाकर
एंव
प्रबलता
को
प्राप्त
कर
शुभ
फल
देता
है।
शुक्र
की
द्वादश
स्थिति
में
शुक्र
को
बल
मिलता
है
और
शुक्र
स्त्री
कारक
ग्रह
है।
अतः
जिन
कुण्डलियों
में
शुक्र
द्वादश
स्थान
में
स्थित
होता
है
उनकी
स्त्री
प्रायः
दीर्घजीवी
होती
है।
साधारण
नियम
यह
है
कि
जो
ग्रह
द्वादश
भाव
में
बैठा
होता
है,
वह
निर्बल
हो
जाता
है
किन्तु
शुक्र
द्वादश
में
होकर
बलवान
रहता
है।