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जानिए राहु और केतु के बारे में कुछ रोचक बातें..

राहु और केतु की भी दृष्टि होती है एंव इनकी दृष्टियों का बहुत अधिक महत्व है।

By पं. अनुज के शुक्ल
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लखनऊ। ज्योतिष में नौं ग्रहों के बारे में उल्लेख किया गया है। सूर्य, चन्द्र, मंगल, गुरू, शुक्र, शनि, राहु और केतु। किन्तु मुख्यतः सात ग्रह ही होते है। राहु और केतु सिर्फ छाया ग्रह है, इनका अपना कोई अस्तित्व नहीं है। ये जिस ग्रह के साथ बैठ जाते है उसके अनुसार फल देने लगते है।

आईये आज हम आपको राहु व केतु की दृष्टियों के बारें कुछ रोचक जानकारी देने का प्रयास कर रहें है...

राहु और केतु की भी दृष्टि होती है एंव इनकी दृष्टियों का बहुत अधिक महत्व है। यदि इन छाया ग्रहों का ध्यान जन्म कुण्डली की परीक्षा के समय न रहे तो जन्मपत्री की कई एक दशाओं में फल वास्तविकता से काफी अधिक दूर निकल जाता है। राहु और केतु जिस भाव में बैठते है उससे पंचम तथा नवम भाव को पूर्णि दृष्टि से देखते है। इनकी जॅहा पर पूर्ण दृष्टि पड़ती है वहॉ पर इनका सबसे अधिक प्रभाव रहता है। राहु का प्रभाव शनि ग्रह के अनुसार रहता है एंव केतु का फल मंगल की भॉति प्राप्त मिलता है।

राहु और केतु किसी ग्रह के प्रभाव में नहीं होते

उपर्युक्त प्रभाव तब होता है जब राहु और केतु किसी ग्रह के प्रभाव में नहीं होते है। किन्तु यदि युति अथवा दृष्टि द्वारा इन छायात्मक ग्रहों पर जब कोई प्रभाव रहता है तो विशेषतया अशुभ प्रभाव हो तो ये ग्रह अपनी दृष्टि में इन ग्रहों का प्रभाव भी रखते है और जहॉ पर इनकी दृष्टि हो वहॉ पर उस प्रभाव को डालते है। जैसे-राहु एंव मंगल दशम भाव में स्थित है तो उनकी पंचम दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ेगी एंव नवम दृष्टि छठें भाव पर रहेगी। इसी प्रकार से इसी स्थिति में केतु तथा मंगल का प्रभाव केतु से पंचम तथा नवम अर्थात अष्टम एंव द्वादश भावों पर रहेगा।

अधिष्ठित राशि के स्वामी का प्रभाव

राहु एंव केतु से अधिष्ठित राशि के स्वामी का प्रभाव, युति अथवा दृष्टि द्वारा जहां भी पड़ रहा हो, उस प्रभाव में राहु अथवा केतु का क्रमशः असर रहेगा। अर्थात राहु अधिष्ठित राशि का स्वामी शनि की भांति रोग, पृथक्ता, विलम्ब, अड़चन, समस्याये आदि उत्पन्न करेगा और केतु अधिष्ठित राशि का स्वामी मंगल का प्रतिनिधित्व करता हुआ, अग्निकाण्ड, चोट, आपरेशन, चोरी, मृत्युतुल्य कष्ट आदि घटनाओं को घटित करेगा, चाहे इन छाया ग्रहों द्वारा अधिष्ठित राशियों के स्वामी नैसर्गिक शुभ ग्रह, शुक्र व गुरू आदि ही क्यों न हो।

गुरू आदि शुभ ग्रहों की दृष्टि पर विचार

अतः गुरू आदि शुभ ग्रहों की दृष्टि पर विचार करते समय इस बात पर भी विचार कर लेना चाहिए कि कहीं ये शुभ ग्रह राहु अथवा केतु से अधिष्ठित राशियों के स्वामी तो नहीं है।

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English summary
Rahu and Ketu denote the two points of intersection of the paths of the Sun and the Moon as they move around the celestial sphere.
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