Bamboo Farming : बांस की खेती में मोटा मुनाफा, इंटरनेशनल मार्केट में बैम्बू प्रोडक्ट की भारी डिमांड
बांस की खेती (bamboo farming) किसानों के लिए मुनाफा कमाने का शानदार जरिया है। बांस को ग्रीन गोल्ड भी कहा जाता है। जानिए कैसे कम लागत में कमाएं मोटा मुनाफा
नई दिल्ली, 26 मई : खेती किसानी को घाटे का सौदा मानने वाले लोगों के लिए बांस की खेती (bamboo farming) कम लागत में मुनाफे का विकल्प हो सकती है। मध्य प्रदेश में सरकार बांस की खेती के लिए 50 फीसद की सब्सिडी देती है। राजस्थान में सूखे भू-क्षेत्र पर बांस मरु-उद्यान- (Bamboo Oasis on Lands in Drought- BOLD) नाम की स्कीम चलाई जा रही है। ग्रीन गोल्ड कहे जाने वाले बांस की खेती (bamboo green gold cultivation) कर मोटा मुनाफा कमाया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में बांस से बना उत्पादों की भारी डिमांड है। सरकार की ओर से बांस की खेती पर 50 फीसद आर्थिक मदद दी जाती है।
कई
राज्यों
में
विशेष
पहल
बांस
की
खेती
में
सब्सिडी
के
अलावा
हाल
ही
में
केंद्र
सरकार
ने
बांस
उद्योग
से
जुड़े
अहम
फैसले
में
बांस
के
चारकोल
पर
से
'निर्यात
प्रतिबंध'
हटाने
का
ऐलान
किया
है।
इससे
किसानों
को
आर्थिक
लाभ
मिलेगा।
अरुणाचल
प्रदेश
और
असम
में
बांस
औद्योगिक
पार्क
की
स्थापना
के
अलावा
मणिपुर
में
भी
बांस
रोपण
केंद्र
बनाए
गए
हैं।
वनइंडिया
हिंदी
की
इस
स्पेशल
रिपोर्ट
में
जानिए,
भारत
में
बांस
की
खेती
से
जुड़ी
संभावनाएं-
राष्ट्रीय बांस मिशन : 9 राज्यों में 22 क्लस्टर
बैम्बू यानी बांस, ग्रामीण भारत के किसान और आधुनिक इंडस्ट्री दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार राष्ट्रीय बांस मिशन (एनबीएम) चला रही है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक 9 राज्यों (मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक, नागालैंड, त्रिपुरा, ओडिशा, गुजरात, उत्तराखंड व महाराष्ट्र) के 22 बांस क्लस्टर बनाए गए हैं। बकौल तोमर, सरकार बांस के उत्पादों का निर्यात बढ़ाने के प्रति प्रतिबद्ध है।
'ग्रीन गोल्ड' को बढ़ावा, खेती मुनाफे का सौदा
सरकार ने राष्ट्रीय बांस मिशन (एनबीएम) का जो लोगो बनाया है इसमें बांस की छवि भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में होने वाली बांस की खेती को दिखाती है। लोगो के चारों ओर औद्योगिक पहिया बनाया गया है। इशसे बांस क्षेत्र के औद्योगीकरण के महत्व दिखाने का प्रयास किया गया है। लोगो में सुनहरे पीले व हरे रंग का इस्तेमाल किया गया है। इससे बांस को 'हरा सोना' यानी 'ग्रीन गोल्ड' के बराबर माना गया है। लोगो के बाहरी किनारे पर आधा औद्योगिक पहिया और आधा किसान सर्कल अन्नदाताओं और इंडस्ट्री में बांस के महत्व को दिखाता है। सरकारी योजनाओं के कारण इसकी खेती कम खर्च में होती है और मुनाफे का सौदा है।
बांस के चारकोल पर से 'निर्यात प्रतिबंध' हटा
मई, 2022 के अहम फैसले में केंद्र सरकार ने बांस के चारकोल पर से 'निर्यात प्रतिबंध' हटा लिया है। इस फैसले के बाद कच्चे बांस का अधिकतम उपयोग किया जा सकेगा। भारतीय बांस उद्योग को इससे उच्च आर्थिक लाभ भी मिलने की संभावना है। इस संबंध में विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) की अधिसूचना में कहा गया है, 'वैध स्रोतों से हासिल बांस से बने सभी बांस के चारकोल के निर्यात को अनुमति दी जाती है।' अधिसूचना में स्पष्ट किया गया है कि बांस का चारकोल एक्सपोर्ट करने के लिए बांस के स्त्रोत संबंधी उपयुक्त उचित दस्तावेज / मूल प्रमाण पत्र दिखाने होंगे। इनसे यह प्रमाणित होना चाहिए कि चारकोल बनाने के लिए उपयोग में लाया गया बांस वैध स्रोतों से लिया गया है।
अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बांस के चारकोल की डिमांड
अंतरराष्ट्रीय बाजार में बांस के चारकोल की भारी मांग है। ऐसे में बैम्बू चारकोल के एक्सपोर्ट से बांस के कचरे का पूरा उपयोग किया जा सकेगा। ऐसे में बांस के कारोबार से और आर्थिक लाभ मिल सकेगा। मांस भूनने की सींक (बारबेक्यू), मिट्टी के पोषण और सक्रियकृत चारकोल के निर्माण के लिए कच्चे माल के रूप में बांस के चारकोल का इस्तेमाल होता है। अमेरिका, जापान, कोरिया, बेल्जियम, जर्मनी, इटली, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बांस के चारकोल को लेकर काफी संभावनाएं हैं।
तीन-चार साल में फसल तैयार
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बांस की कुल 136 किस्में हैं। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक एक बार बांस की फसल लगाने के बाद इससे कई वर्षों तक उपज होती रहती है। मौसम का भी बांस पर बहुत प्रभाव नहीं होता। तीन साल में एक पौधे की लागत लगभग 240 रुपये पड़ती है। एक हेक्टेयर जमीन पर 625 पौधे लगाए जा सकते हैं। बांस की नर्सरी से पौधे खरीदे जा सकते हैं।
कब
करें
बांस
की
रोपाई
जुलाई
का
महीना
बांस
की
रोपाई
के
लिए
सबसे
बेहतर
माना
जाता
है।
तीन
महीनों
में
बांस
का
पौधा
विकसित
होना
शुरू
हो
जाता
है।
मामूली
छंटाई
के
बाद
बांस
का
पौधा
विकसित
होता
रहता
है।
तीन-चार
साल
में
पूरी
फसल
तैयार
हो
जाती
है।
आम
तौर
से
अक्टूबर
से
दिसंबर
के
दौरान
बांस
के
पौधे
की
कटाई
की
जाती
है।
बांस
से
जुड़े
आर्थिक
पहलू
को
भांपते
हुए
केंद्र
सरकार
ने
साल
2006-07
में
राष्ट्रीय
बांस
मिशन
की
शुरुआत
की
थी।
बैम्बू प्रोडक्ट एक्सपोर्ट का प्रयास
बांस से बने उत्पादों का एक्सपोर्ट बढ़ाने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। सरकार के सपोर्ट से पुरानी पद्धतियों को ही नई तकनीक से विकसित किया जा रहा है। राज्य भी बैम्बू प्रोडक्ट एक्सपोर्ट बढ़ाने के लिए केंद्र के बांस मिशन को गंभीरता से ले रहे हैं। बांस से बने फर्निचर, बोतल और अन्य आकर्षक उत्पाद तैयार करने के मामले में भारत के कारीगर कुशल हैं। ऐसे में बांस से बने उत्पादों को वैश्विक बाजार में पहचान दिलाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। मार्केट डिमांड के मुताबिक बांस के उत्पाद बनाने पर उत्पादों का निर्यात बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ने के प्रयास जारी हैं।
मणिपुर में बांस नर्सरी जैसी पहल
बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए पूर्वोत्तर विकास मंत्रालय (Ministry of DoNER) भी सक्रिय है। DoNER के अंतर्गत पूर्वोत्तर बेंत और बांस विकास परिषद (NECBDC) ने प्रतिभा स्काउटिंग, प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकी सोर्सिंग और बाजार से जुड़ाव में अपनी रचनात्मकता और संसाधनों को शामिल किया है। तेजी से बदल रहे वैश्विक बाजार को ध्यान में रखते हुए, बांस और बांस से बने उत्पादों के पारंपरिक प्रस्तुतिकरण के प्रयास किए जा रहे हैं। मणिपुर में लिरिकखुल और पश्चिम इंफाल जिले में बांस नर्सरी स्थल और मणिपुर के कांगपोपकपी जिले के कोन्शाक खुल में बांस रोपण केंद्रों (Bamboo Plantation Site) की स्थापना की गई है।
2017 में बदला कानून, बांस से जुड़ा बिजनेस आसान
बांस के महत्व को देखते हुए सरकार ने 'पेड़' की परिभाषा से बांस को हटा दिया है। भारतीय वन अधिनियम-1972 का वर्ष 2017 में संशोधन किया गया था। कानून में हुए इस अहम संशोधन से किसान भाई बांस और बांस आधारित उत्पादों को आसानी से ट्रांस्पोर्ट कर पाते हैं। आज सभी लोग बांस की खेती और इसके उत्पादों का बिजनेस करने के लिए स्वतंत्र है।
पूर्वोत्तर भारत में बांस के लिए इंडस्ट्रियल पार्क
देश में जमीन का बड़ा हिस्सा ऐसा है जहां फसलों की खेती नहीं हो सकती। हालांकि, ऐसी मिट्टी में बांस उत्पादन किया जा सकता है। खेतों की मेढ़ पर भी बांस उगाए जा सकते हैं। किसान अपनी खाली जमीनों पर बांस की खेती कर अतिरिक्त पैसे कमा सकते हैं। दशकों पहले लोग बांस का उपयोग अपने घरों के निर्माण में भी करते थे। ऐसे में केंद्र सरकार ने संभावनाओं को पहचानते हुए पूर्वोत्तर भारत में बांस के लिए इंडस्ट्रियल पार्क लगाने की पहल की है। असम के दीमा हसाओ जिले में पहले बांस औद्योगिक पार्क की स्थापना 50 करोड़ रुपये की लागत से 75 हेक्टेयर क्षेत्र में की गई है। अरूणाचल प्रदेश के ईटानगर में भी बांस पार्क परियोजना प्रस्तावित है।
गोल बांस की छड़ियों के लिए बांस की लागत
सरकार का मानना है कि भारत में बांस का पर्याप्त उपयोग नहीं हो पा रहा। इस कारण बांस उद्योग अत्यधिक उच्च लागत की समस्या से जूझ रहा है। भारत में, बांस का ज्यादातर उपयोग अगरबत्ती निर्माण में होता है। अगरबत्ती निर्माण के दौरान अधिकतम 16 प्रतिशत बांस का उपयोग बांस की छड़ें बनाने में होता है। 84 प्रतिशत बांस पूरी तरह से बेकार हो जाते हैं। 84 फीसद बांस बेकार होने के कारण गोल बांस की छड़ियों के लिए बांस की लागत 25,000 रुपये से लेकर 40,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन के बीच है। इसके उलट बांस की औसत लागत 4,000 रुपये से लेकर 5,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन है।
त्रिपुरा में बनी बांस की बोतल
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में बांस का कुल क्षेत्रफल 15.69 मिलियन हेक्टेयर है। फरवरी, 2018 में जारी इस आंकड़े के मुताबिक पिछले आकलन के बाद 1.73 मिलियन हेक्टेयर का इजाफा हुआ है, यानी इतनी अधिक जमीन पर बांस की खेती की गई है। 189 मिलयन टन बांस का उत्पादन।
बांस
से
बने
उत्पादों
को
लोकप्रिय
बनाने
की
कोशिश
बैम्बू
प्रोडक्ट
यानी
बांस
के
उत्पादों
को
लोकप्रिय
बनाने
की
दिशा
में
केंद्र
सरकार
लगातार
प्रयास
कर
रही
है।
केंद्रीय
मंत्री
नितिन
गडकरी
ने
बांस
से
बनी
700
एमएल
और
900
एमएल
की
क्षमता
वाली
बोतल
लॉन्च
की
थी।
यह
बोतल
पूर्वोत्तर
भारतीय
राज्य
त्रिपुरा
के
एक
संगठन
द्वारा
तैयार
की
गई
है।
बांस
की
इस
बोतल
को
प्लास्टिक
की
बोतलों
का
सटीक
विकल्प
माना
जा
रहा
है।
बैम्बू
बॉटल
प्राकृतिक,
किफायती,
आकर्षक
और
सर्वाधिक
पर्यावरण
अनुकूल
भी
है।
बांस की खेती के लिए स्पेशल पहल- BOLD
जुलाई, 2021 में केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME) की ओर से राजस्थान में जनजातियों की आय और बांस आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए स्पेशल स्कीम शुरू की गई थी। सूखे भू-क्षेत्र पर बांस मरु-उद्यान नाम (Bamboo Oasis on Lands in Drought- BOLD) नाम की इस स्कीम के तहत खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) हरित पट्टियां विकसित कर रही है।
बांस
पानी
के
संरक्षण
में
भी
मददगार
!
ग्रीन
फील्ड
विकसित
करने
के
लिए
ऐसे
बांस
की
किस्में
चुनी
गई
हैं
जो
बहुत
तेजी
से
बढ़ते
हैं
और
लगभग
तीन
साल
की
अवधि
में
उन्हें
काटा
जा
सकता
है।
बांस
को
पानी
के
संरक्षण
और
भूमि
की
सतह
से
पानी
के
वाष्पीकरण
को
कम
करने
के
लिए
भी
जाना
जाता
है,
जो
शुष्क
और
सूखाग्रस्त
क्षेत्रों
में
एक
महत्वपूर्ण
विशेषता
है।
एक
ही
दिन
में
रिकॉर्ड
पौधे
लगाए
गए
राजस्थान
में
विशेष
रूप
से
असम
से
लाई
गई
बांस
की
विशेष
प्रजातियों-
बंबुसा
टुल्डा
और
बंबुसा
पॉलीमोर्फा
के
5,000
पौधों
को
लगभग
16
एकड़
खाली
शुष्क
जमीन
पर
लगाया
गया।
केवीआईसी
ने
एक
जगह
पर
एक
ही
दिन
में
बांस
के
पौधे
लगाने
का
विश्व
रिकॉर्ड
भी
बनाया।
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