क्या राहुल गांधी की जगह प्रियंका होंगी कांग्रेस में पीएम पद की दावेदार?
नई दिल्ली, 25 जनवरी: क्या कांग्रेस पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में कोई बड़ा धमाका करने जा रही है? क्या राहुल गांधी की जगह प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) प्रधानमंत्री पद की चुनौती नरेन्द्र मोदी ( Narendra Modi) को देंगी? जिस तरह की कांग्रेस पार्टी (Congress) में तैयारी चल रही है, इस पर सहज विश्वास नहीं हो रहा है. क्योंकि कांग्रेस पार्टी की सारी ताकत अभी इसी बात में लगी हुई है कि चाहे जो भी हो जाए, प्रस्तावित विपक्ष भी भले ना एक हो सके, पर राहुल गांधी के नाम पर पार्टी समझौता नहीं करेगी.
संडे को एक टेलीविज़न चैनल पर कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी ने एक इंटरव्यू में प्रियंका गांधी द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर पहले दावेदारी पेश करना और फिर गुलाटी मारने पर कहा कि प्रियंका गांधी मुख्यमंत्री पद की नहीं बल्कि प्रधानमंत्री पद की दावेदार हैं. संभव है कि उनकी जुबान फिसल गयी होगी, यह भी हो सकता है कि प्रियंका गांधी को खुश करने के लिए उन्होंने बिना सोचे समझे यह बात कह दी हो. पर जब यह बात अल्वी ने कांग्रेस के प्रवक्ता के रूप में कही तो इसे गंभीरता से लेना ही पड़ेगा. इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि हो सकता है जल्दीबाजी में अल्वी ने समय से पहले ही इस राज का खुलासा कर दिया हो. अगर यह सच है तो मृतप्राय कांग्रेस पार्टी में एक नयी जान आ सकती है.
कांग्रेस
का
पतन
कांग्रेस
पार्टी
राहुल
गांधी
के
नाम
पर
दो
बार
चुनाव
लड़
चुकी
है
और
दोनों
बार
मतदाताओं
ने
उनके
नेतृत्व
को
नकार
दिया
और
कांग्रेस
पार्टी
को
शर्मनाक
हार
का
सामना
करना
पड़ा.
2014
में
अभी
तक
के
इतिहास
में
कांग्रेस
पार्टी
लोकसभा
चुनाव
में
206
सीटों
से
लुढ़क
कर
सबसे
कम
44
सीटों
पर
आ
गयी.
2014
में
नरेन्द्र
मोदी
की
ऐसी
लहर
चली
थी
कि
30
वर्षों
और
सात
चुनावों
के
बाद
किसी
पार्टी
को
अपने
दम
पर
बहुमत
मिली
थी.
यह
माना
जाने
लगा
था
कि
मिली
जुली
सरकार
ही
देश
में
अनंत
काल
तक
चलती
रहेगी.
राज्यों
में
क्षेत्रीय
दलों
के
बढ़ते
प्रभाव
से
राष्ट्रीय
दल
कमजोर
होते
जा
रहे
थे.राष्ट्रीय
दलों
के
नाम
पर
कांग्रेस
ही
एकमात्र
पार्टी
होती
थी
जिसका
दबदबा
पूरे
देश
में
था.
भारतीय
जनता
पार्टी
का
प्रभाव
क्षेत्र
कुछ
ही
राज्यों
तक
सीमित
था.
कर्नाटक
को
छोड़
कर
पूरे
दक्षिण
भारत
और
पूर्वोत्तर
के
राज्यों
में
बीजेपी
का
कहीं
नामोनिशान
नहीं
था
और
अन्य
राष्ट्रीय
दल
सिर्फ
नाममात्र
के
ही
राष्ट्रीय
दल
थे.
केंद्र
में
पिछले
10
वर्षों
से
कांग्रेस
पार्टी
के
नेतृत्व
में
यूपीए
सरकार
थी
जिस
पर
भ्रष्टाचार
का
गंभीर
आरोप
लगता
रहा
था.
लिहाजा
2014
में
राहुल
गांधी
को
इस
संदेह
का
फायदा
मिला
कि
कांग्रेस
पार्टी
को
लोगों
ने
नकारा
था
ना
कि
राहुल
गांधी
के
नेतृत्व
को.
पर
2019
के
चुनाव
में
नहीं.
राहुल गांधी 2017 में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बन चुके थे, उससे पहले भी वह पार्टी के उपाध्यक्ष थे और पार्टी चला रहे थे, पिछले 10 वर्षों से सांसद थे और उन्हें पर्याप्त समय मिला था कि वह कांग्रेस पार्टी की दिशा और दशा में परिवर्तन कर सके. पर 2019 में अविश्वसनीय घटना घटित हुयी, राहुल गांधी परिवार के गढ़ अमेठी से चुनाव हार गए और कांग्रेस पार्टी 44 से आगे बढ़ी पर सिर्फ 52 सीटों तक ही. पिछले दो चुनावों में कांग्रेस पार्टी इतना सीट भी नहीं जीत पायी कि लोकसभा में उसे नेता प्रतिपक्ष का पद भी मिल सके.
अब उसी नेता के नेतृत्व में और उसके नाम पर ही जिसे जनता ने दो बार नकार दिया हो एक बार फिर से चुनाव लड़ना और यह सोचना कि तीसरे प्रयास में वह सफल हो जाएंगे किसी जुआ से कम नहीं हो सकता है. 2014 के बाद कांग्रेस पार्टी की हालत बाद से बदतर होती गई है और बीजेपी की शक्ति इतनी बढ़ गई है कि कुछ राज्यों से आगे बढ़ कर वह सही मायने में एक राष्टीय पार्टी बन चुकी है, जिसका प्रभाव क्षेत्र लगातार बढ़ता ही जा रहा है.
कांग्रेस
के
अंदर
बगावत
की
शुरुआत
हो
चुकी
है
पिछले
सात-आठ
महीनों
से
बीजेपी
के
खिलाफ
2024
के
चुनाव
के
मद्देनजर
विपक्षी
एकता
की
बात
चल
रही
है.
विपक्षी
दलों
में
कांग्रेस
पार्टी
और
खासकर
राहुल
गांधी
के
नेतृत्व
क्षमता
पर
भरोसा
नहीं
है
और
कांग्रेस
पार्टी
पीछे
हटने
को
तैयार
नहीं
है.
वही
नहीं,
कांग्रेस
पार्टी
के
अन्दर
भी
गांधी
परिवार
के
खिलाफ
बगावत
की
शुरुआत
हो
गयी
है
और
गांधी
परिवार
किसी
और
को
पार्टी
अध्यक्ष
या
प्रधानमंत्री
पद
का
दावेदार
बनाने
की
सोच
ही
नहीं
सकती.
ऐसे
में
संभव
है
कि
गांधी
परिवार
ने
फैसला
कर
लिया
हो
कि
जिम्मेदारियों
का
बंटवारा
परिवार
के
जायदाद
की
तरह
कर
दिया
जाए
-
राहुल
गांधी
कांग्रेस
अध्यक्ष
पद
संभाले
और
प्रधानमंत्री
पद
की
दावेदारी
प्रियंका
गांधी
को
सौंप
दी
जाए.
हालांकि 2019 में विधिवत रूप से सक्रिय राजनीति में आने के बाद प्रियंका गांधी ने अभी तक निराश ही किया है, उनसे कांग्रेसजनों की जो अपेक्षा थी, उस पर वह खड़ी नहीं उतर पायी हैं. उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी पार्टी के महासचिव के रूप में प्रियंका के पास है और चुनावी सर्वेक्षणों के अनुसार कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश चुनाव में दहाई का आंकड़ा भी शायद पार ना कर पाए. फिर भी इस में दो राय नहीं हो सकती कि राहुल गांधी के मुकाबले प्रियंका में ज्यादा क्षमता है और बेहतर वक्ता हैं. उत्तर प्रदेश चुनाव में भले ही कांग्रेस पार्टी को इस बार आशातीत सफलता ना मिले, पर प्रियंका गांधी ने मृत पड़ी पार्टी में एक बार फिर से नयी जान जरूर फूंक दी है.
जिला और ब्लाक स्तर तक पार्टी को खड़ा कर दिया है. प्रियंका गांधी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने से इतना तो होगा ही कि वह नेता जो नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे हैं अलग थलग पड़ जाएंगे. और सबसे बड़ी बात है कि अगर सरकार बनाने का मौका मिल जाए तो सत्ता फिर भी परिवार के पास ही रहेगी. शायद यही कारण रहा होगा कि पहले प्रियंका गांधी ने अपने आप को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में घोषित किया और फिर उस बात पर यह कह कर कि उन्होंने यह बात मजाक में कही थी, पलटा मार दी.
अगले कुछ महीनों का इंतजार करना पड़ेगा कि क्या वाकई में राहुल गांधी से सोनिया गांधी का मोहभंग हो गया है. माना जाता है कि इस डर से कि कहीं प्रियंका अपने बड़े भाई राहुल गांधी पर ही ना भारी पड़ जाए, सोनिया गांधी ने प्रियंका को पहले राजनीति में आने से रोक रखा था. संभव है कि सोनिया गांधी का यह डर सच साबित हो जाए.