पुरी में संपन्न हुई महाप्रभु श्री जगन्नाथ की स्नान यात्रा, जानिए क्या है इसका महत्व
पवित्र ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन आज पुरी में महाप्रभु श्री जगन्नाथ की स्नान यात्रा का आयोजन किया गया।
भुवनेश्वर, 14 जून: पवित्र ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन आज पुरी में महाप्रभु श्री जगन्नाथ की स्नान यात्रा का आयोजन किया गया। साल भर में भगवान जगन्नाथ की आयोजित द्वादशी यात्रा में स्नान यात्रा को प्रथम यात्रा माना जाता है। कोरोना काल में दो साल से प्रत्यक्ष स्नान यात्रा में शामिल होने से वंचित भक्तों के लिए इस बार स्नान यात्रा में शामिल होने का सौभाग्य मिला है। महाप्रभु श्री जगन्नाथ की स्नान यात्रा देखने लाखों की संख्या में भक्त पुरी पहुंचे। बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं के श्रृंखलित दर्शन को लेकर प्रशासन ने बेहद संजीदा व्यवस्था की है।
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सुबह 3.30 बजे डोर लागी नीति के बाद 3.40 बजे पहण्डी बिजे आरंभ हुई। सुबह 7.15 बजे तक तीनों विग्रहों को स्नान मंडप पर बिराजमान कराया गया। 7.30 मंगला आरती अवकाश, द्वारपाल पूजा के बाद 12 बजे स्वर्ण कूप ( सोने का कुआं ) से जल संग्रहित कर स्नान मंडप पर लाया गया। स्नान यात्रा में महाप्रभु को स्नान से पहले व्योमरागिणी जिसे स्थानीय भाषा में बोइआणी यानी मेघ वर्ण वस्त्र धारण कराया गया । जिसका अर्थ यह है कि स्वयं जगत के स्वामी जगन्नाथ जी का मेघ से बरसने वाले जल से प्रत्यक्ष स्नान संपन्न हो सके। महाप्रभु श्री जगन्नाथ को 35 घड़े, बलदेव जी को 33, देवी सुभद्रा को 22, एवं सुदर्शन जी को 18 इस तरह कुल 108 घड़े जल से विग्रहों को स्नान कराया गया।
स्वर्ण
कूप
से
किया
जाता
है
जल
संग्रहित
स्नान
यात्रा
वर्ष
में
पहली
घटना
होती
है
जब
महाप्रभु
श्री
जगन्नाथ
मंदिर
से
बाहर
निकलकर
भक्तों
को
दर्शन
देते
हैं
मंदिर
के
परकोटे
में
बने
स्नान
मंडप
पर
महाप्रभु
की
चतुर्धा
मूर्ति
को
पहण्डी
बिजे
करवा
कर
लाया
जाता
है।
गराबडु
सेवकों
द्वारा
स्वर्ण
कूप
(
सोने
का
कुआं)
से
जल
संग्रहित
कर
स्नान
मंडप
पर
लाया
जाता
है
और
जल
का
संस्कार
सहित
विधिवत
पूजा
अर्चना
करने
के
बाद
महाप्रभु
को
आपादमस्तक
स्नान
कराया
जाता
है।
साल
भर
में
केवल
यही
एक
मौका
होता
है
जब
महाप्रभु
का
प्रत्यक्ष
स्नान
कराया
जाता
है
अन्यथा
उन्हें
हरदिन
प्रतीक
स्नान
अर्थात
बिम्ब
स्नान
कराया
जाता
है।
स्नान यात्रा में शीतला मंदिर के समीप स्थित स्वर्ण कूप से जल संग्रहित कर सेवकों द्वारा स्नान मंडप पर लाया जाता है। यह कूप साल भर बंद रखा जाता है। स्नान पूर्णिमा के पहले चतुर्दशी तिथि में कूप को साफ कराया जाता है। इस स्थिर एवं अव्यवहृत शीतल जल से स्नान करने के कारण महाप्रभु बीमार पड़ते हैं। जल में चन्दन और केसर मिलाकर षोडस उपचार विधि से जल संशोधन किया जाता है।
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