अपने स्थापना दिवस पर 9 दिसंबर को हुड्डा के गढ़ झज्जर में जन सरोकार रैली से दम दिखाएगी जजपा
झज्जर। हरियाणा की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सहयोगी जन नायक जनता पार्टी (JJP) ने अपने तीसरे स्थापना दिवस को मनाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के गढ़ झज्जर को चुना है। 9 दिसंबर की रैली को लेकर JJP ने तैयारी शुरू कर दी है। JJP के नेता कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान के बाद अब पूरी तरह फील्ड में उतर चुके हैं। हालांकि अभी अहीरवाल में ही दौरे किए जा रहे हैं। जल्द ही जाट बेल्ट में भी प्रचार करेंगे।
बता दें कि झज्जर, रोहतक, सोनीपत को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का गढ़ माना जाता है। इन तीनों जिलों में पूर्व सीएम का अच्छा खासा प्रभाव है। कुछ दिन पहले भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने जेजेपी के गढ़ कहे जाने वाले जींद में विपक्ष आपके द्वार कार्यक्रम के जरिए भीड़ जुटाकर भाजपा के साथ-साथ जेजेपी को भी जमकर कोसा था। JJP अब पूर्व सीएम हुड्डा को इसका जवाब उनके गढ़ झज्जर में पार्टी के स्थापना दिवस पर भीड़ जुटाकर देने की तैयारी में है। रैली को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. अजय चौटाला के अलावा डिप्टी CM दुष्यंत चौटाला संबोधित करेंगे। रैली के जरिए जजपा सत्ता में गठबंधन के सहयोगी के तौर पर अब तक किए गए कार्यों को भुनाने की कोशिश करेगी।
खोये
जनाधार
को
वापस
पाने
की
कोशिश
वर्ष
2019
के
विधानसभा
चुनाव
में
रोहतक,
सोनीपत
और
झज्जर
तीनों
जिलों
की
एक
विधानसभा
सीट
को
छोड़कर
अधिकांश
सीटों
पर
पूर्व
सीएम
भूपेन्द्र
सिंह
हुड्डा
समर्थित
कांग्रेस
के
विधायकों
ने
जीत
दर्ज
की
थी।
इसमें
कोई
संदेह
नहीं
कि
भूपेन्द्र
सिंह
हुड्डा
प्रदेशभर
के
बड़े
जनाधार
वाले
नेताओं
में
शुमार
है।
जाट
बाहुल्य
इस
इलाके
में
कभी
पूर्व
उपप्रधानमंत्री
चौधरी
देवीलाल
का
भी
काफी
अच्छा
प्रभाव
रहा
है,
लेकिन
10
साल
हरियाणा
के
मुख्यमंत्री
की
कुर्सी
पर
रहने
के
बाद
हुड्डा
परिवार
ने
यहां
अपनी
सबसे
मजबूत
पकड़
बना
ली
है।
झज्जर
में
जजपा
द्वारा
रैली
करना
कहीं
ना
कहीं
खोये
जनाधार
को
मजबूत
करने
की
कोशिश
है,
क्योंकि
इनेलो
के
दो
फाड़
होने
से
पहले
तक
यहां
चौटाला
परिवार
की
अच्छी
पकड़
थी।
रैली
इसलिए
भी
अहम
है,
क्योंकि
गठबंधन
की
सरकार
बनने
के
बाद
से
पूर्व
सीएम
हुड्डा
के
निशाने
पर
सबसे
ज्यादा
जजपा
ही
रही
है।
आंदोलन
के
बीच
राह
मुश्किल
भले
ही
3
नए
खेती
कानूनों
की
वापसी
की
घोषणा
के
साथ
केन्द्रीय
कैबिनेट
की
मोहर
भी
लग
चुकी
है,
लेकिन
किसान
आंदोलन
अभी
खत्म
नहीं
हुआ
है।
किसान
आंदोलन
का
झज्जर
जिले
में
पूरा
प्रभाव
है।
यहां
टीकरी
बॉर्डर
पर
पिछले
एक
साल
से
बड़ी
संख्या
में
किसान
बैठे
हुए
है।
अगर
जल्द
आंदोलन
खत्म
नहीं
हुआ
तो
रैली
पर
भी
इसका
असर
पड़
सकता
है।
आंदोलन
की
शुरूआत
से
ही
किसान
भाजपा
और
जजपा
दोनों
ही
पार्टियों
के
नेताओं
और
मंत्रियों
का
किसान
विरोध
करते
आ
रहे
है।
खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल और डिप्टी चीफ मिनिस्टर दुष्यंत चौटाला कई बार विरोध का सामना कर चुके है। कृषि कानूनों की वापसी के बाद जजपा को बड़ी आस जगी है, क्योंकि किसानों की पहली मांग कानून वापसी ही रही है और आंदोलन के बीच कई बार जजपा पर भाजपा से समर्थन वापसी का दबाव भी बना। इन सब विरोध के बावजूद गठबंधन बना हुआ है। जजपा की कोशिश है कि इसी रैली के जरिए वह अपने सत्ता में 2 साल के कार्यकाल की योजनाओं को जनता के बीच रख विरोध को कम कर सके।
राव
भी
झज्जर
में
कर
चुके
शक्ति
प्रदर्शन
इससे
पहले
अहीरवाल
के
दिग्गज
नेता
एवं
केन्द्रीय
मंत्री
राव
इन्द्रजीत
सिंह
भी
पूर्व
सीएम
हुड्डा
के
गढ़
यानि
झज्जर
के
पाटौदा
में
23
सितंबर
को
शहीदी
दिवस
के
मौके
पर
भीड़
जुटाकर
शक्ति
प्रदर्शन
कर
चुके
है।
हालांकि
राव
की
रैली
में
हुड्डा
से
ज्यादा
उनकी
खुद
की
पार्टी
ही
निशाने
पर
रही
थी।
जाटलैंड
में
हर
नेता
अपनी
पेठ
जमाने
की
पूरी
कोशिश
में
है।
राव
झज्जर
की
रैली
में
अहीरवाल
यानि
नसीबपुर
से
निकलकर
पानीपत
तक
की
लड़ाई
लड़ने
की
बात
कर
चुके
है।