हर साल केवल 5 घण्टे के लिए खुलता है निरई माता का मंदिर, सिर्फ पुरुष कर सकते हैं पूजा !
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गरियाबंद, 30 मार्च। भारत एक ऐसा देश है, जहां कई मंदिर अपने भीतर अनसुलझे रहस्यों को समेटे हुए हैं। अपनी इन्ही खूबियों की वजह से ऐसे मंदिर दुनियाभर में विख्यात हैं। ऐसे ही देवी मंदिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसके गर्भ में ना जाने कितने रहस्य समाये हुए हैं। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में स्थित निरई माता के मंदिर में दरवाजे साल में केवल 5 घंटे के लिए ही खुलते हैं, इन्ही चंद घंटों में हजारों लोग माता के दर्शन का लाभ ले पाते हैं।
चैत्र नवरात्रि के पहले रविवार को ही संभव है माता के दर्शन
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में कई देव स्थान हैं। घने जंगलों से पटे इस पूरे इलाके में कई ऐसी जगह हैं, जहां सालभर दूर-दूर से पर्यटक पहुंचते हैं, लेकिन यहां एक ऐसी जगह भी है जहां स्थानीय लोग भी साल में केवल 1 बार ही जाते हैं। गरियाबंद शहर से 12 किलोमीटर दूर हरी भरी पहाड़ियों पर निरई माता का मंदिर है। यह मंदिर हर साल चैत्र नवरात्रि के पहले रविवार को सुबह 4 बजे से 9 बजे तक खोला जाता है। इन पांच घंटों के दौरान हजारों देवी भक्त माता के दर्शन करने पहुंचते हैं। पूजा करने के बाद गांव के पुरोहित मंदिर के कपाट को फिर एक साल के लिए बंद कर देते हैं। इसलिए साल के बाकि दिनों यहां आना प्रतिबंधित माना गया है।
चढ़ती है बकरे की बलि
नवरात्रि के दौरान तमाम देवी मंदिरों में सिंदूर, सुहाग समेत श्रृंगार चढ़ाया जाता है, लेकिन निरई माता के मंदिर में भक्त केवल नारियल और अगरबत्ती लेकर ही जाते हैं क्योंकि माता इतने में ही प्रसन्न हो जाती हैं। मान्यता है कि निराई माता के दरबार में भक्त के भय, पीड़ा का नाश होता है। यही कारण है कि हर साल 5 घंटे के लिए खुलने वाले इस मंदिर में दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं।
चैत्र नवरात्रि में खुलने वाले निराई माता के मंदिर में बकरों की बलि भी चढ़ाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि देवी को बकरे की बलि चढ़ाने से वह प्रसन्न होकर अपने भक्त की मनोकामना जरूर पूरी करती हैं। क्योंकि मंदिर साल में एक बार ही खुलता है इसलिए मन्नत लेकर माता के दरबार में पहुंचे कुछ भक्त बकरों की बलि देकर माता को प्रसन्न करते हैं, तो वहीं कई अन्य मुराद पूरी हो जाने के बाद बकरे की बलि चढ़ाते हैं।
अपने आप जल उठती है ज्योति
गरियाबंद की पहाड़ी पर विराजमान निराई माता के प्रति लोगों में अपार श्रद्धा है। इस मंदिर के गर्भ में कई रहस्य छुपे हुए हैं। निरई माता मंदिर में चैत्र नवरात्र के दौरान हर वर्ष अपने आप ही ज्योति जल उठती है, ज्योति कैसे जलती है, कौन इसे जलाता है, इस सवाल का जवाब कोई नहीं जानता। मंदिर में अपने आप ज्योति प्रवज्जव्लित होने का चमत्कार कैसे होता है? यह अबूझ पहेली ही बना हुआ है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर के पट साल भर बंद रहते हैं, चैत्र नवरात्रि में ही पट खोला जाता है, इस दौरान भक्तों को ज्योति के भी दर्शन होते हैं। ग्रामीण मानते हैं कि निरई माता के चमत्कार से मंदिर में बिना तेल के नौ दिनों तक ज्योति जलती रहती है।
शराब पीकर मंदिर ना जाना, मधुमक्खी कर देंगी हमला
इस मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्र के पहले रविवार यानि उसी दिन जब मंदिर खुलता है, इस दौरान आयोजित होने वाले जात्रा कार्यक्रम में भी भक्त बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। मान्यता है कि निराई माता के दर्शन मात्र से ही भक्तों की पीड़ा दूर हो जाती है। यहां पूरे भक्ति भाव और पवित्र मन से ही पहुंचा जाता है। अगर कोई व्यक्ति मांस, मदिरा का सेवन करके मंदिर आने का प्रयास भी करता है, तो जंगलों में रहने वाली मधुमक्खियां उस पर कोप बनाकर टूट पड़ती हैं।
केवल पुरुष कर सकते है देवी दर्शन, महिलाओं के लिए है प्रवेश वर्जित !
वैसे तो देवी मंदिरों में सभी भक्तों को प्रवेश दिया जाता है, लेकिन निरई माता के मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रखा गया है। इस मंदिर में केवल पुरुष ही माता की पूजा अर्चना कर पाते हैं। इतना ही नहीं नियम इतने सख्त हैं कि इस मंदिर में देवी को चढ़ा प्रसाद भी महिलाएं नहीं खा सकती हैं। माना जाता है कि अगर किसी महिला ने गलती से माता को चढ़ा प्रसाद ग्रहण कर लिया तो अनहोनी घट सकती है।