Kamada Ekadashi 2021: कामनाओं की पूर्ति करती है कामदा एकादशी, जानिए कथा
नई दिल्ली, 23 अप्रैल। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। यह नव संवत्सर की पहली एकादशी है। मान्यता है कि कामदा एकादशी का व्रत करने से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है और यह प्रेत योनि तक से मुक्ति दिला देती है। इस एकादशी का व्रत करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। इस एकादशी के दिन लौंग ग्रहण करने का विशेष महत्व होता है।
कैसे करें व्रत-पूजा
कामदा एकादशी व्रत पूजा के लिए सर्वप्रथम स्नानादि के बाद अपने पूजा स्थल को साफ-स्वच्छ करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। व्रत का संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा में भगवान विष्णु को फल, फूल, दूध, तिल और पंचामृत आदि सामग्री अर्पित करें। पूजा के बाद कामदा एकादशी व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। एक समय फलाहार ग्रहण कर सकते हैं। इस दिन लौंग विशेष रूप से ग्रहण करना चाहिए। अगले दिन द्वादशी के दिन ब्राह्मण भोज और दक्षिणा देकर इस व्रत का पारण करना चाहिए।
कामदा एकादशी व्रत कथा
धर्मराज युधिष्ठिर के आग्रह पर भगवान श्रीकृष्ण ने कामदा एकादशी व्रत का माहात्म्य बताया। प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुंडरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्न्र तथा गंधर्व सुख पूर्वक निवास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहां तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे।
स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया
एक समय पुंडरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा को बता दिया। तब पुंडरीक ने क्रोधित होते हुए कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अत: तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोगेगा।
उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया
पुंडरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी। उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी। सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे तथा भुजाएं अत्यंत लंबी हो गईं। उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया। इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दु:ख भोगने लगा।
ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विंध्याचल पर्वत पर पहुंच गई
जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तांत मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ और वह अपने पति के उद्धार का उपाय सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दु:ख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती। एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विंध्याचल पर्वत पर पहुंच गई, जहां पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और उनो विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी। उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले कि हे सुभगे! तुम कौन हो और यहां किस लिए आई हो?
मेरा पति राजा पुंडरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस बन गए
ललिता बोली हे मुने! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुंडरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। इसका मुझको महान दु:ख है। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए। श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा।
चैत्र शुक्ल एकादशी का व्रत
मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को दे दिया। एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए।वशिष्ठ मुनि कहने लगे कि हे राजन! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
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- कामदा एकादशी तिथि प्रारंभ 22 अप्रैल रात्रि 11.35 बजे
- कामदा एकादशी तिथि पूर्ण 23 अप्रैल रात्रि 9.47 बजे तक
- व्रत का पारण- 24 अप्रैल प्रात: 6.22 से 8.44 बजे तक