Baikunth Chaturdashi 2018: जानिए कैसे करें बैकुंठ चौदस की पूजा?
नई दिल्ली। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चौदस के नाम से जाना जाता है। प्राचीन मान्यता है कि इस दिन हरिहर मिलन होता है। यानी इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु का मिलन होता है। इसलिए यह दिन शिव एवं विष्णु के उपासक बहुत धूमधाम और उत्साह से मनाते हैं। खासतौर पर उज्जैन, वाराणसी में बैकुंठ चतुर्दशी को बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। उज्जैन में भगवान महाकाल की सवारी धूमधाम से निकाली जाती और दीपावली की तरह आतिशबाजी की जाती है।
क्या है मान्यता
बैकुंठ चतुर्दशी के संबंध में हिंदू धर्म में मान्यता है कि संसार के समस्त मांगलिक कार्य भगवान विष्णु के सानिध्य में होते हैं, लेकिन चार महीने विष्णु के शयनकाल में सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। जब देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं तो उसके बाद चतुर्दशी के दिन भगवान शिव उन्हें पुन: कार्यभार सौंपते हैं। इसीलिए यह दिन उत्सवी माहौल में मनाया जाता है।
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कैसे मनाई जाती है
- शैव और वैष्णव दोनों मतों को मानने वालों के लिए यह दिन महत्वपूर्ण है। इस दिन दोनों देवों की विशेष पूजा की जाती है। उज्जैन महाकाल में भव्य पैमाने पर बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव का विभिन्न् पदार्थों से अभिषेक करने का बड़ा महत्व है। उनका विशेष श्रृंगार करके भांग, धतूरा, बेलपत्र अर्पित करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।
- बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करके उनका भी श्रृंगार करना चाहिए। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। विष्णु मंदिरों में भी इस दिन दीपावली की तरह जश्न मनाया जाता है।
- इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके दान-पुण्य करना चाहिए। इससे समस्त पापों का प्रायश्चित होता है।
- नदियों में दीपदान करने से विष्णु-लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। बैकुंठ चतुर्दशी को व्रत कर तारों की छांव में तालाब, नदी के तट पर 14 दीपक जलाने चाहिए। वहीं बैठकर भगवान विष्णु को स्नान कराकर विधि विधान से पूजा अर्चना करें। उन्हें तुलसी पत्ते डालकर भोग लगाएं।
- इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत करें। शास्त्रों की मान्यता है कि जो एक हजार कमल पुष्पों से भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन कर शिव की पूजा अर्चना करते हैं, वे बंधनों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम पाते हैं।
बैकुंठ चौदस का महत्व
प्राचीन मतानुसार एक बार भगवान विष्णु शिव की भक्ति करने के लिए काशी पहुंचे। वहां उन्होंने शिव को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प चढ़ाने का संकल्प लिया। जब अनुष्ठान का समय आया तो शिव ने विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर दिया। पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपनी एक आंख निकालकर शिव को अर्पित करने लगे। कमल पुष्प के बदले अपनी आंख अर्पित करने के कारण भगवान विष्णु 'कमल नयन" कहलाएं। भगवान शिव उनकी भक्ति देखकर प्रकट हुए और उन्हें उनकी आंख लौटाते हुए सुदर्शन चक्र भेंट किया।
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