हनीमून से हनुमान पर आपत्ति नहीं
नुपुर शर्मा वाले मामले में यही मोहम्मद जुबैर है जिसने नुपुर के कहे को फैक्ट चेक करने की बजाय इसे एक समुदाय की धार्मिक भावना भड़काने वाला बताकर देश दुनिया में फैलाने का काम किया।
नई दिल्ली: एक फैक्ट चेक वेबसाइट चलाने वाले मोहम्मद जुबैर पर दिल्ली पुलिस ने धार्मिक भावना भड़काने का जो केस दर्ज किया है उसके मूल में एक फोटो है। इस फोटो में हिन्दी में एक होटल का नाम लिखा है हनुमान होटल। इसी फोटो को शेयर करते हुए जुबैर ने 2018 में ट्विटर पर लिखा था कि "2014 से पहले हनीमून होटल और 2014 के बाद हनुमान होटल।"
इसी फोटो पर कुछ लोगों ने धार्मिक भावना भड़काने का आरोप लगाकर मोहम्मद जुबैर पर केस कर दिया और दिल्ली पुलिस ने उसी केस पर कार्रवाई करते हुए मोहम्मद जुबैर को एक दिन पहले गिरफ्तार कर लिया। शिकायत करनेवालों का आरोप है कि जुबैर ने हनुमान जी का नाम हनीमून से जोड़कर हिन्दुओं की भावनाओं को आहत किया है।
असल में जुबैर ने परोक्ष रूप से मोदी सरकार पर हमला किया था लेकिन इसके लिए उसने जिस फोटो का इस्तेमाल किया वह हृषिकेश मुखर्जी की एक फिल्म "किसी से ना कहना" का है। हिन्दी फिल्मों के मशहूर डायरेक्टर हृषिकेश मुखर्जी की यह फिल्म जुलाई 1983 में रिलीज हुई थी। यह कैसा संयोग है कि फिल्म रिलीज होने के चालीसवें साल में इस बोर्ड वाले विवाद के कारण एक बार फिर चर्चा में आ गयी है।
हालांकि जिन लोगों ने इसे धार्मिक भावना भड़कानेवाला फोटो बताया, हो सकता है उन्होंने ये फिल्म न देखी हो लेकिन यह अपने समय की एक क्लासिक फिल्म थी। फिल्म के मुख्य पात्रों में उत्पल दत्त, फारुख शेख और दीप्ती नवल थीं। एक समय था जब सिनेमा के पर्दे पर फारुख शेख और दीप्ती नवल की जोड़ी बहुत मशहूर होती थी। उत्पल दत्त भी "गोलमाल" की जबर्दस्त सफलता के बाद कॉमेडी किरदार के रूप में स्थापित हो चुके थे।
"किसी से ना कहना" एक पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि की फिल्म है। कैलाशपति त्रिवेदी हालांकि स्वयं बहुत पढे लिखे आदमी हैं लेकिन वो चाहते हैं कि उनके घर में बहू गांव की आये। पत्नी का निधन होने के बाद बाप बेटे अकेले रहते हैं। लेकिन कुछ ऐसा संयोग बनता है कि बेटे को शहर में जिस लड़की से प्यार होता है वह एमबीबीएस डॉक्टर होती है। लेकिन दोनों मिलकर ऐसा नाटक खेलते हैं मानों वह लड़की गांव की है और उसे अंग्रेजी बिल्कुल नहीं आती।
कहानी के इसी क्रम में फिल्म का वह सीन भी आता है जिसमें "हनीमून होटल" का "हनुमान होटल" बन जाता है। होता यह है कि पिताजी से छुपकर दोनों किसी छोटे सी जगह पर हनीमून मनाने पहुंचते हैं। वहां जब होटल में जाते हैं तो "हनुमान होटल" का बोर्ड लगा पाते हैं जिसमें साफ दिख रहा है कि "हनीमून" को बदलकर "हनुमान" होटल कर दिया गया है। अंदर वो होटल के मालिक से पूछते हैं कि आपने होटल का नाम हनीमून से बदलकर हनुमान होटल क्यों कर दिया है? इस पर होटल का मालिक जवाब देता है कि हमारे जमाने में ये हनीमून वगैरह कुछ होता नहीं था। शादी होती थी, और अगले दिन से लड़की घर के काम काज में लग जाती थी। इसलिए हमने इसे हनीमून से हनुमान होटल कर दिया।
होटल का मालिक जब यह सब बोल रहा होता है तो उसके सिर के ऊपर लगी तस्वीरें दिखती हैं जिसमें राम और हनुमान की तस्वीरें साफ दिखाई देती हैं। मतलब फिल्म बनाने वाले लोगों का कम से कम कोई ऐसा उद्देश्य नहीं रहा होगा कि वो किसी की धार्मिक भावना को आहत करें। ये एक सामान्य सा हल्का फुल्का मजाक वाला सीन था जिसे दशकों तक दर्शकों ने देखा और आनंद लिया। लेकिन आज ऐसा क्या हो गया कि इस तस्वीर भर से "धार्मिक भावना" आहत हो गयी?
इतना तय है कि अगर आज भी कोई इस फिल्म को देखेगा तो इस सीन को देखकर मुस्कुरायेगा और हनीमून कल्चर पर की गयी चोट को महसूस भी करेगा। लेकिन इस भावना से न तो जुबैर ने इस बोर्ड को ट्विटर पर शेयर किया था और न ही आपत्ति करनेवालों ने असल में इस पर आपत्ति की है। जिन्हें शिकायत है, उन्हें शायद जुबैर से शिकायत है जो अपने पक्षपात के लिए बदनाम हैं। नुपुर शर्मा वाले मामले में यही मोहम्मद जुबैर है जिसने नुपुर के कहे को फैक्ट चेक करने की बजाय इसे एक समुदाय की धार्मिक भावना भड़काने वाला बताकर देश दुनिया में फैलाने का काम किया।
स्वाभाविक है मोहम्मद जुबैर एक संदिग्ध व्यक्ति है जो तथ्यों को तोड़-मरोड़कर उसे अपने किसी खास एजंडे के लिए इस्तेमाल करता है। इसका मतलब यह नहीं कि इस देश के हिन्दू इतने असहिष्णु हो गये हैं कि हनीमून से हनुमान होटल बना देने वाले बोर्ड को देखकर चिढ जाएं। जो विरोध है, उसका कारण हनुमान होटल वाला बोर्ड नहीं बल्कि मोहम्मद जुबैर है जो नुपुर शर्मा वाले मामले के बाद से ही राष्ट्रवादियों के निशाने पर है।
फिर भी यह समझ पाना थोड़ा मुश्किल है कि इसके लिए मोहम्मद जुबैर के 2018 के ट्वीट को क्यों इस्तेमाल किया गया जबकि उसने कुछ दिन पहले पूरे देश को दंगे की आग में झोंकने वाला काम किया था। नुपुर शर्मा वाले बयान पर उसने जिस तरह से तथ्यों को जांचने की बजाय तोड़ मरोड़कर पूरे देश को सांप्रदायिकता की आग में झोंकने का प्रयास किया था, असल शिकायत तो उस पर होनी चाहिए थी। फिर ऐसी शिकायत करके अपने ही केस को कमजोर करने का क्या फायदा? इस ट्वीट में ऐसा कुछ नहीं है कि अदालत उसको गंभीर रुप से दोषी मानेगी। जहां दोषी मान सकती है, वहां उसके खिलाफ शिकायत ही नहीं की गयी।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
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