लोकसभा चुनाव से पहले सहयोगियों की नाराजगी से चिंतित बीजेपी, क्या होगी रणनीति?
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले बीजेपी को हिंदी बेल्ट के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हार का सामना करना पड़ा। दूसरी तरफ, एनडीए में शामिल कई राजनीतिक दल अब बीजेपी पर दबाव बनाने लगे हैं। बिहार में उपेद्र कुशवाहा ने साथ छोड़ा तो लोजपा के तेवर देखते हुए बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा की एक सीट पर उम्मीदवारी देने का वादा कर शांत कराया। टीडीपी पहले ही, एनडीए से बाहर हो चुकी है और बीजेपी के खिलाफ गठबंधन बनाने की कोशिश में जुटी है, तो अब यूपी में बीजेपी की भी परेशानी बढ़ती दिखाई देने लगी है।
महाराष्ट्र में शिवसेना ने बढ़ाई बीजेपी की मुश्किलें
महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी के बीच मतभेद सब के सामने है। आए दिन शिवसेना प्रमुख बीजेपी और पीएम मोदी पर निशाना साधते रहे हैं। हाल ही में राम मंदिर मुद्दे पर शिवसेना ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। जबकि बीजेपी भी पीएम मोदी पर की गई टिप्पणी को लेकर शिवसेना से नाराज है। पंजाब में SAD और बीजेपी के बीच माहौल बहुत अच्छा नहीं है फिर भी अकाली अभी खुलकर पार्टी के विरोध में नहीं बोल रहे हैं, जो बीजेपी के लिए राहत की बात हो सकती है।
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उत्तर प्रदेश में सहयोगियों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा
लोकसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियों के बीच बीजेपी को अब उत्तर प्रदेश में अपने सहयोगियों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश काफी महत्वपूर्ण है। बीजेपी के सहयोगी अपना दल ने अब सरकार के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया है। अपना दल का आरोप है कि बीजेपी उनसे किसी मुद्दे पर चर्चा नहीं कर रही है। अपना दल प्रमुख अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार में मंत्री हैं। इसी प्रकार सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी प्रमुख ओम प्रकाश राजभर बीजेपी के लिए लंबे समय से परेशानियों का कारण बने हुए हैं।
राजभर पहले से ही बीजेपी पर बोलते रहे हैं हमला
ओम प्रकाश राजभर लगातार बीजेपी सरकार पर हमला बोलते रहे हैं। वे योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। राजभर बीजेपी सरकार की नीतियों की आलोचना करने के अलावा और विभिन्न मुद्दों को लेकर सीएम योगी के खिलाफ भी बोलते रहे हैं। हालांकि बीजेपी ने अभी तक उनके खिलाफ कोई सख्त रवैया नहीं अपनाया है। पार्टी की कोशिश गठबंधन को बचाए रखना है। एनडीए में कुल 44 दल शामिल हैं। अधिकांश दलों का अपने-अपने राज्यों में ही प्रभाव है और वे केंद्र में उतने प्रभावी नहीं हैं। सहयोगी दलों द्वारा बनाए जा रहे दबाव के बीच बीजपी के रवैयै पर आगे बहुत कुछ निर्भर करता है।