इंडिया गेट से: नीतीश कुमार के यूपी प्लस बिहार से जाएगी मोदी की सरकार?
एक पुरानी कहावत है, बिल्ली थैले से बाहर आ गई। तो नीतीश कुमार की बिल्ली थैले से बाहर आ गई है। अब तक वह कह रहे थे कि वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होंगे लेकिन अब उन्हीं की पार्टी के अध्यक्ष लल्लन सिंह ने कह दिया है कि नीतीश कुमार अगला लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।
लेकिन वह बिहार से नहीं, उत्तर प्रदेश से लड़ेंगे। उत्तर प्रदेश से इसलिए क्योंकि उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ने से प्रधानमंत्री बनने की संभावना बढ़ सकती है। नरेंद्र मोदी भी इसीलिए गुजरात छोड़ कर यूपी से चुनाव लड़े थे। लल्लन सिंह ने नीतीश कुमार के चुनाव लड़ने की सीट भी बता दी है। यह सीट है फूलपुर।
नीतीश कुमार फूलपुर का दौरा भी कर चुके हैं। यह जो आरोप लगाया गया था कि भारतीय जनता पार्टी जेडीयू को तोड़ रही थी, इसलिए उन्होंने गठबंधन तोड़ा वह गलत था क्योंकि नीतीश कुमार काफी पहले से 2024 के चुनाव में विपक्ष की राजनीति करने का मन बना चुके थे। अब प्रधानमंत्री पद की मंशा बता दी गई है, लोकसभा चुनाव की सीट भी बता दी गई है।
नरेन्द्र
मोदी
से
बराबरी
की
कोशिश
नीतीश
कुमार
का
यूपी
से
लोकसभा
चुनाव
लड़ने
का
फैसला
नरेंद्र
मोदी
की
बराबरी
करने
के
लिए
है।
लेकिन
यूपी
से
चुनाव
लड़
कर
ही
कोई
प्रधानमंत्री
नहीं
बन
सकता।
यूपी
से
चुनाव
लड़ने
तो
केजरीवाल
भी
गए
थे।
नरेंद्र
मोदी
जब
2014
में
यूपी
से
चुनाव
लड़ने
गए
थे
तो
देश
भर
में
उनके
पक्ष
में
वातावरण
बन
चुका
था।
हिन्दू
वोट
बैंक
जातीय
राजनीति
से
ऊपर
उठ
कर
सोचने
लगा
था।
भारतीय
जनता
पार्टी
कांग्रेस
के
विकल्प
के
रूप
में
उभर
रही
थी।
अब
ऐसा
कुछ
दिखाई
नहीं
देता
कि
देश
में
भाजपा
विरोधी
लहर
है
और
जेडीयू
भाजपा
के
विकल्प
में
उभर
रही
है।
जेडीयू
की
अपनी
हैसियत
तो
अब
बिहार
में
भी
नहीं
रही
जहां
वह
तीसरे
नंबर
की
पार्टी
बन
चुकी
है।
2010
से
2020
तक
लगातार
उसकी
सीटें
घटती
गई।
नरेंद्र मोदी ने जब वाराणसी सीट चुनी थी तो उनका वहां कोई जातीय समीकरण नहीं था। नीतीश कुमार ने अपने चुनाव लड़ने के लिए अगर फूलपुर, मिर्जापुर या अंबेडकर नगर सीट चुनी है तो सिर्फ जातीय समीकरणों के कारण चुनी है। इन तीनों सीटों पर नीतीश कुमार की जाति के कुर्मी वोट मायने रखते हैं।
अब जब बिल्ली थैले से बाहर आ चुकी है तो आने वाले दिनों में नीतीश कुमार खुलकर जातीय राजनीति करेंगे। वह बिहार, झारखंड के अलावा महाराष्ट्र और छतीसगढ़ के कुर्मियों को इकट्ठा करते हुए देखे जाएंगे। वह एक नए तरह तरह की राजनीति करना चाहते हैं जिसमें किसान आन्दोलन की छाया में कृषक जातियों और पिछड़ों को अपने पीछे खड़ा करने की कोशिश करेंगे।
उनके समर्थकों ने दो तरह के नारे लगाना शुरू कर दिया है। एक नारा तो है जो काम सरदार पटेल नहीं कर सके, वह नीतीश कुमार करेंगे। गुजरात का पटेल या पाटीदार भी कुर्मी और कृषक समुदाय ही है। इसलिए 2015 में जब नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ा था तो गुजरात के पाटीदार आन्दोलन का समर्थन किया था। बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड के कुर्मी खुद को पटेल की तरह ही मानते हैं। गुजरात के अलावा मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी पटेल रहते है। बिहार में कुर्मी पिछड़े हुए तो हैं, पर उनकी आबादी पूरे राज्य की जनसंख्या की दो प्रतिशत भी नहीं है।
दूसरी ओर, पटेल गुजरात की कुल आबादी के लगभग एक चौथाई हैं। इसलिए नारा लगाया जा रहा है कि जो पटेल नहीं कर सके वह नीतीश करेंगे। यानी पटेल प्रधानमंत्री नहीं बन सके, लेकिन नीतीश कुमार बनेंगे। देशभर की कृषक जातियों कुर्मियों, पटेलों और जाटों को नीतीश कुमार के पीछे लामबंद करने की योजना है। इसमें वे आंध्र के रेड्डी, कापू, नायडू भी जोड़ते हैं लेकिन चंद्रबाबू नायडू उनके साथ आएँगे इसमें भारी संशय है, क्योंकि वह मोदी कैंप में लौटना चाहते हैं। इसलिए वह विपक्षी एकता में कहीं दिखाई नहीं देते। हालांकि फिलहाल मोदी उन्हें वापस लेते दिखाई नहीं देते।
मंडल
कमीशन
वाली
राजनीति
को
जिंदा
करने
की
कोशिश
नीतीश
समर्थकों
की
ओर
से
दूसरा
नारा
लगाया
जा
रहा
है-
यूपी+
बिहार,
गई
मोदी
सरकार।
तो
नीतीश
कुमार
का
इरादा
यूपी
बिहार
में
दोबारा
से
मंडल
राजनीति
को
जीवित
करने
का
है।
लेकिन
यह
संभव
नही,
क्योंकि
मंडल
आयोग
की
ज्यादातर
जातियां
अब
भाजपा
से
जुड़
चुकी
हैं।
भाजपा
अब
कमंडल
वाली
पार्टी
नहीं
रही,
उसके
नेता
नरेंद्र
मोदी
खुद
ओबीसी
है।
इसलिए
मंडल
आयोग
की
राजनीति
के
दोबारा
शुरू
होने
की
कोई
संभावना
नहीं।
जहां तक यूपी से चुनाव लड़कर प्रधानमंत्री बनने की बात है तो यह उनका भ्रम है, ऐसा ही भ्रम 2014 में केजरीवाल को भी हो गया था। पंजाब विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद उन्हें यह भ्रम दोबारा हो गया है। उन्होंने भी खुद को मोदी का विकल्प घोषित कर दिया है। केजरीवाल ने दिल्ली में नीतीश कुमार से मुलाक़ात तो की थी, लेकिन जैसे ही नीतीश कुमार दिल्ली से पटना लौटे केजरीवाल ने विपक्षी एकता की यह कह कर धज्जियां उड़ा दीं कि वह जोड़तोड़ की राजनीति में विश्वास नहीं रखते। नीतीश कुमार की राजनीति काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगी कि बाकी राज्यों के गैर भाजपा मुख्यमंत्री या क्षेत्रीय दलों के क्षत्रप उन्हें नेता मानते हैं या नहीं। केजरीवाल ने तो उन्हें नेता मानने से इनकार कर दिया है।
फूलपुर
की
सीट
और
नीतीश
की
मंशा
एक
बार
फिर
नीतीश
के
यूपी
से
चुनाव
लड़ने
की
बात
कर
लेते
हैं।
नीतीश
कुमार
यह
समझते
हैं
कि
वह
अखिलेश
यादव
से
गठबंधन
करके
फूलपुर,
मिर्जापुर,
या
अंबेडकर
नगर
से
चुनाव
लड़कर
यूपी
की
सियासत
बदल
देंगे।
लेकिन
यूपी
की
इन
तीन
सीटों
समेत
यूपी
की
सिर्फ
आठ
सीटों
पर
कुर्मी
मायने
रखते
हैं।
वह
शायद
यह
भी
समझते
है
कि
फूलपुर
से
चुनाव
लड़
कर
बनारस
के
ढाई
लाख
कुर्मी
वोटरों
को
भी
प्रभावित
कर
लेंगे।
लेकिन
यूपी
की
सियासत
पूरी
तरह
बदल
चुकी
है।
हाल
ही
में
मुस्लिम
बहुल
रामपुर
लोकसभा
सीट
के
उपचुनाव
में
भाजपा
का
यादव
जीत
गया।
मुलायम
परिवार
की
परंपरागत
आजमगढ़
सीट
से
भाजपा
जीत
गई।
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फूलपुर सीट का चयन नीतीश कुमार शायद इस गलतफहमी में भी कर रहे हैं कि फूलपुर ने देश का पहला प्रधानमंत्री दिया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1952 से 1967 तक सभी तीनों चुनाव इसी सीट से जीते। पंडित नेहरू के देहांत के बाद 1967 में उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित यहाँ से जीती। लेकिन इस दौरान गंगा में बहुत पानी बह चुका है।
नीतीश कुमार ने फूलपुर को इसलिए नहीं चुना, क्योंकि इस सीट ने देश को पहला प्रधानमंत्री दिया था बल्कि इस सीट से चुनाव लड़ने के संकेत इसलिए दिए हैं कि इस सीट पर उनकी कुर्मी जाति के वोट काफी हैं। फूलपुर का सामाजिक समीकरण नीतीश कुमार के मुफीद है लेकिन 2014 और 2019 दोनों ही बार यह सीट भाजपा ने जीती है। 2014 का लोकसभा चुनाव यहाँ केशव प्रसाद मौर्य जीते थे। 2017 में उन्हें उन्हें यूपी का उप मुख्यमंत्री बना दिया गया तो दिल्ली और लखनऊ में भाजपा सरकारों के बावजूद उपचुनाव में सपा का उम्मीदवार जीत गया था।
अब नीतीश कुमार समझते हैं कि आखिलेश यादव के समर्थन से वह फूलपुर सीट को आसानी से निकाल सकते हैं। हाल ही में उन्होंने अखिलेश यादव से मुलाक़ात भी है। उसी के बाद नारा लगा है "यूपी प्लस बिहार, गई मोदी सरकार"। पर यह नारा फिलहाल हकीकत से बहुत दूर है क्योंकि न बिहार नीतीश के साथ है, न यूपी अखिलेश के साथ।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)