नेहरू के कार्यकाल में भी सैन्य प्रशिक्षण योजनाएं बनी थीं
प्रधानमंत्री नेहरू के कार्यकाल में सैन्य प्रशिक्षण जैसी दो योजनायें पेश की गयी थी, लेकिन उन दोनों का देश के विकास में कोई लाभ नहीं मिल सका।
नई दिल्ली, 22 जून: अग्निपथ योजना भारत में लागू हो चुकी है। देश की तीनों सेनाओं ने इसके लिए अधिसूचना भी जारी कर दी है। अगले एक साल में अग्निवीरों का पहला दस्ता भारतीय सेना में अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार हो जायेगा। इस प्रकार वर्ष 2027 के आसपास देश में युवाओं का ऐसा वर्ग तैयार होगा जो देश की किसी भी प्रकार से सेवा करने में सक्षम होगा। इस योजना के माध्यम से न सिर्फ आजीविका के अवसर खुलेंगे बल्कि देश के युवाओं में अनुशासन, देशभक्ति और सामाजिक दायित्व का स्तर भी बढेगा।
वास्तव में भारत के विभाजन के बाद यह पहली बार है कि केंद्र सरकार ने इस प्रकार की एक महत्त्वाकांक्षी योजना को लागू किया है, जिसकी जरुरत तो 1947 के बाद से ही महसूस होने लगी थी। अतः इन बीते वर्षों में युवाओं के लिए अग्निपथ जैसे तो नहीं लेकिन उसके समकक्ष कई प्रयोग किये गए लेकिन तत्कालीन सरकारों की उपेक्षा के चलते कभी कोई सफलता नहीं मिल सकी। प्रधानमंत्री नेहरू के कार्यकाल में सैन्य प्रशिक्षण जैसी दो योजनायें पेश की गयी थी, लेकिन वह दोनों अनेक खामियों के कारण न तो युवाओं में लोकप्रियता हासिल कर सकी और न ही उनका देश के विकास में कोई लाभ मिल सका।
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनकी विदेश नीति पर रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी के एक प्रमुख अधिकारी यूरी नासेंको अपनी पुस्तक 'Jawaharlal Nehru and India's Foreign Policy' में लिखते है, "कांग्रेस के अध्यक्ष रहे आचार्य कृपलानी ने कांग्रेस पार्टी के समक्ष एक प्रस्ताव रखा था कि इसके सदस्यों को हथियार दिए जाए और उनकी सैन्य शिक्षा भी हो। जिससे प्रत्येक शहर और प्रत्येक गाँव में अनुशासित सैन्य-नागरिक होंगे जोकि शांतिकाल में सेवाओं के लिए सहायक बनेंगे और युद्ध के दौरान सुरक्षा के लिए जिम्मेदार भी होंगे।"
यूरी आगे लिखते है, "कांग्रेस के एक और प्रमुख नेता पुरुषोत्तम दास टंडन तो एक कदम आगे बढ़कर इस बात की वकालत करते थे कि कांग्रेस पार्टी को ही सैनिकों में परिवर्तित कर दिया जाए जिससे पाकिस्तान में चले गए इलाकों को वापस लाया जा सके।" कांग्रेस नेताओं के इस वैचारिक दवाब के कारण मई 1955 में 'नेशनल वालंटियर कार्प्स' नाम से नागरिकों को व्यवस्थित सैन्य प्रशिक्षण देने की एक अनौपचारिक शुरुआत की गयी। बाद में इसका नाम बदलकर 'लोक सहायक सेना' कर दिया गया। इस योजना को संवैधानिक रूप देने के लिए भारत के रक्षा मंत्री के.एन. काटजू ने लोकसभा और राज्यसभा में क्रमशः 28 अगस्त 1956 एवं 4 सितम्बर 1956 को 'लोक सहायक सेना 1956' विधेयक पेश किया। इसके अंतर्गत हर साल 18 से अधिक और 40 से कम आयु के 1 लाख नागरिकों को अगले पांच सालों में सैन्य प्रशिक्षण देने का प्रस्ताव रखा गया।
इस योजना में प्रशिक्षण की अवधि एक महीना और इसका स्वरुप एकदम स्वयंसेवकों की तरह था। राशन के अलावा प्रशिक्षण की समाप्ति पर 15 रुपए का कुल भत्ता भी देने का वादा किया गया था। मगर इन सैन्य प्रशिक्षित लोगों का भविष्य क्या होगा उसका कोई उल्लेख नहीं किया गया था। इस भ्रम की स्थिति में रक्षा मंत्री काटजू के भाषण में एक उद्देश्य बिलकुल स्पष्ट था, "इस विधेयक का उद्देश्य सैन्य प्रशिक्षण है। सैन्य प्रशिक्षण के बहुत सारे अर्थ है जैसे अनुशासन, आत्मनिर्भरता, देशभक्ति की भावना इत्यादि।"
दरअसल, यह विधेयक संसद में पेश करना एकतरह से रस्म-अदायगी थी, क्योंकि नेहरू सरकार इसे लेकर बिलकुल भी गंभीर नहीं थी। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब लोकसभा सदस्य एच.वी. कामथ ने सदन के अध्यक्ष से निवेदन कर विधेयक पर चर्चा का समय बढ़ाने की मांग की तो उसे नकार दिया गया।
तब सीमित संसाधनों और रोजगार की कमी के कारण देशभर से इस योजना में आवेदन आने शुरू हो गए। लोकसभा में 1 सितम्बर 1960 को तत्कालीन रक्षा मंत्री वी.के. कृष्णा मेनन ने बताया कि "लोक सहायक सेना में 5 लाख का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अभी 4 लाख 70 हज़ार लोगों को प्रशिक्षण दिया गया है। फिर भी यह संख्या तय लक्ष्य से 30 हजार कम है।"
दूसरी तरफ राज्यसभा में 30 मार्च 1965 को रक्षा राज्य मंत्री डीएस राजू ने स्पष्ट बताया कि "लोक सहायक सेना योजना के अधीन प्रशिक्षित असैनिकों के लिए सेना की कोई देयता नहीं थी। लोक सहायक सेना के प्रशिक्षक कर्मचारी-दलों के लिए भूतपूर्व सैनिक पांच वर्ष के लिए पुनः भर्ती किये गए थे यदि उनकी सेवाओं की उतने तक आवश्यकता रहती। न तो असैनिकों को, और न ही प्रशिक्षित कर्मचारीगण को किसी भी प्रकार का कोई बंध-पत्र (बांड) भरना आवश्यक था।"वैसे कुछ बंध-पत्र भरवाए गए थे लेकिन पांच साल की अवधि पूरी होने से पहले ही उन्हें निष्काषित कर दिया गया।
उस दौर में प्रधानमंत्री नेहरू ने इस प्रकार की यह कोई पहली योजना नहीं पेश की थी। इससे पहले 1953 में The Auxiliary Territorial Force नाम का एक विधेयक भी संसद के माध्यम से पारित करवाया था। इसमें कुल 15 हजार सैन्य प्रशिक्षुओं को बिना किसी हथियार के दस दिनों का प्रशिक्षण और राशन के अलावा 5 रुपए का भत्ता देने का प्रावधान किया गया था।
अब इन दोनों योजनाओं को देश के विकास और रक्षा दोनों से जोड़ने का कोई उद्देश्य नहीं था। दो बार लोकसभा के सदस्य रहे यूसी पटनायक का 28 अगस्त 1956 को दिया गया भाषण लोक सहायक सेवा की वास्तविकता को समझने के लिए सबसे सटीक है, उन्होंने कहा, "हमने स्काउट मूवमेंट, हिंदुस्तान सेवा दल, जेके भोंसले नेशनल डिसिप्लिन स्कीम जैसी बहुत सी योजनाओं को देखा है। इन सभी में जो जोश देखने को मिलता था, वह लोक सहायक सेना में बिलकुल नहीं है। इसके अंतर्गत किसी में भी नेतृत्व क्षमता नहीं पैदा पैदा की जाएगी। मैंने कई शिविरों का दौरा किया है। अपने अनुभवों से मैं बता रहा हूँ कि इस योजना में किसी को भी नेतृत्व करने का मौका नहीं दिया जायेगा। एक लाख लोगों को हर साल एक महीने के प्रशिक्षण पर एक करोड़ रुपए का खर्चा कर उन्हें वापस उनके गाँव भेज दिया जायेगा। उसके बाद चरणबद्ध तरीके से अनुवर्तनिय योजनाओं का कोई प्रावधान नहीं है।"
जबकि अग्निपथ योजना में कुल चयनित अग्निवीरों को हथियारों के साथ सैन्य प्रशिक्षण का सम्मान दिया जायेगा। लगभग एक करोड़ रुपए की बीमा राशि प्रत्येक अग्निवीर के लिए सुरक्षित रहेगी। वेतन के साथ सेवा निधी के अंतर्गत लगभग 11 लाख रुपए चार सालों के ब्याज सहित मिलेंगे। इन्ही में से जब 25 प्रतिशत अग्निवीर पारंपरिक सेना का हिस्सा बनेंगे तो वे पेंशन के भी हकदार हो जायेंगे। इसके अतिरिक्त, केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले अर्ध-सैनिक बलों में भी उन्हें वरीयता के साथ- साथ राज्यों की पुलिस में भी उनकी भर्ती को आसान बनाया जायेगा। कई निजी कॉर्पोरेट में भी उनके लिए नौकरियां देने की घोषणा हो चुकी है।
अतः आज कांग्रेस द्वारा विपक्ष के नाम पर अग्निपथ योजना का विरोध और युवाओं को भ्रमित करने का कोई मतलब नहीं है। जब उनके पास सरकार और समय दोनों थे, तो उन्होंने सैन्य प्रशिक्षण के नामपर देश के युवाओं को कुछ भी नहीं दिया।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
ये भी पढ़ें- अग्निवीर: आशंकाओं से परे व्यावहारिकता को समझने की जरुरत