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“वचन वीर” कमलनाथ के 70 दिन और लोकसभा की चुनौती

By जावेद अनीस
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नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुयी है। ऐसे में नयी सरकार के सामने चुनौती सत्ता के चाल-चेहरे को बदलते हुये अपने आप को साबित करने की थी। मुख्यमंत्री के तौर पर कमलनाथ सरकार की प्राथमिकता वचन पत्र में किए गए वादों को पूरा करने की रही है। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले कमलनाथ ने अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करते हुये दावा किया है कि उनकी सरकार ने 70 दिनों में 83 वचनों को पूरा कर लिया है जिसमें वे कर्जमाफी को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं।जहाँ पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहचान "घोषणा वीर" मुख्यमंत्री के तौर पर थी वही अब कमलनाथ की पहचान "वचन वीर" मुख्यमंत्री के तौर पर बनती जा रही है। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र को 'वचन पत्र' का नाम दिया था। 112 पन्नों के इस दस्तावेज में 973 बिंदुओं को शामिल किया गया था। इसमें सबसे बड़ा "वचन" किसानों की कर्जमाफी का है जिसके तहत दो लाख तक के कर्ज को माफ़ करने का वादा किया गया था। कर्जमाफी के इस दायरे में प्रदेश के करीब 50 लाख किसान आ रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस के द्वारा अपने वचन पत्र में किसानों का बिजली बिल आधा करने, 7वां वेतनमान लागू करने, 1 लाख युवाओं को नौकरी देने और हर परिवार के एक बेरोज़गार युवा को 10000 प्रतिमाह भत्ता देने जैसी बातें की गयी थीं।

Kamal Naths 70 days and Lok Sabha challenge

कमलनाथ की सबसे बड़ी चुनौती 'वचन पत्र' में किये गये भारी-भरकम वादों पर खरा उतरना है। ऐसे स्थिति में यह और मुश्किल है जब नयी सरकार को विरासत में खाली खजाना और भारी-भरकम कर्ज का बोझ मिला हो। ऊपर से उसके सामने कुछ ही महीनों बाद उसे लोकसभा चुनाव के जैसे परीक्षा में भी खरा उतरने की चुनौती है।सरकार बनते ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सभी विभागों और सम्बंधित अधिकारियों के पास अपना "वचन पत्र" भेज कर इसपर प्राथमिकता के साथ काम करने का निर्देश दिया था। कांग्रेस सरकार की हर मुमकिन कोशिश थी कि किसी भी तरह से लोकसभा चुनाव से पहले तक कर्जमाफी की उपलब्धि उसके खाते में दर्ज हो जाये।70 दिन और 83 वचन पूरा करने का दावाअपनी सरकार के सत्तर दिन पूरा होने पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि '25 दिसंबर को पिछली भाजपा ने हमें ऐसा राज्य सौंपा था जिसकी तिजोरी खाली थी, जो किसानों की आत्महत्या और महिला अपराध के मामले में नंबर वन था ऐसे राज्य को हमने पटरी पर लाने का काम किया है।' उन्होंने कहा कि 'हमने जो वचन दिया था उसमें हम आगे बढ़े हैं।' मुख्यमंत्री ने दावा किया कि खराब वित्तीय परिस्थितियों के बावजूद उनकी सरकार ने करीब 70 दिनों के कार्यकाल में अपने वचनपत्र में शामिल 83 वचन पूरे कर लिये हैं। इस मौके पर कमलनाथ ने कहा कि 'सरकार में आते ही हमारी पहली प्राथमिकता किसानों का कर्जमाफ करने की थी।'

उन्होंने दावा किया कि 'उनकी सरकार में 24 लाख 84 हजार किसानों का कर्ज माफ हुआ है,किसानों का 10 हजार करोड़ का कर्जा माफ़ कर दिया है बाकी लगभग 25 लाख किसानों का कर्ज माफ़ी की प्रक्रिया में है जो लोकसभा चुनाव के बाद पूरी की जायेगी। इसको लेकर मुख्यमंत्री आश्वासन दे चुके हैं कि 'जिन किसान भाइयों ने ऋण माफी का आवेदन भरा है उन्हें योजना का लाभ अवश्य मिलेगा।' इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री के हवाले से किसानों को उनके मोबाइल फोन पर सन्देश भी भेजा गया है जिसमें लिखा गया है कि "जय किसान फसल ऋण माफी योजना में आपका आवेदन मिला है, लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के कारण आपकी ऋण माफी नहीं हो पाई है, चुनाव के बाद शीघ्र स्वीकृति की जावेगी।"

इसके अलावा कमलनाथ सरकार द्वारा इंदिरा किसान ज्योति योजना और इंदिरा गृह ज्योति योजन की शुरूआत की गई है। इंदिरा किसान ज्योति योजना के तहत किसानों को दस हॉर्स पावर तक के पंपों के लिए आधी दरों पर बिजली देने की बात की गयी है जबकि इंदिरा गृह ज्योति योजन में घरेलू उपभोक्ताओं को 100 यूनिट की खपत पर 100 रुपये बिल की सुविधा देने की बात की गयी है।लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कमलनाथ सरकार द्वारा प्रदेश में पिछड़ा वर्ग आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 फीसदी तक बढ़ाने का फैसला लिया गया था जिसमें सरकारी नौकरियों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण मिलने की बात थी। उम्मीद की जा रही थी कि लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को इसका फायदा मिलेगा लेकिन बाद में हाईकोर्ट द्वारा इसपर रोक लगा दी गयी।

कमलनाथ सरकार द्वारा युवा स्वाभिमान योजना की शुरुआत भी की गयी है जो 21 से 30 साल के शहरी युवा बेरोजगारों के लिए है जिसमें 100 दिन का रोजागर और प्रशिक्षण दिया जाना है। इसके लिये युवाओं को चार हजार रुपए प्रतिमाह स्टाइपेंड देने का प्रावधान भी किया गया है। इस योजना में फोटोग्राफर, बेल्डर, वीडियो ग्राफर,इलेक्ट्रीशियन, मैकेनिक, बढ़ई जैसे कार्यों की ट्रेनिंग के साथ पशु हांकने और बैंड बजने लिए भी प्रशिक्षण देने की बात की गयी है जिसको लेकर विपक्षी भाजपा ने इसे बेरोजगारों के साथ मजाक बताया है। कमलनाथ सरकार के इस रिपोर्ट कार्ड को लेकर भाजपा का कहना है कि कांग्रेस ने महज सत्ता में आने के लिए किसानों से दो लाख तक का कर्ज माफ करने युवाओं को रोजगार देने और बेरोजगारी भत्ते का वादा किया था, लेकिन उनकी मंशा ही ठीक नहीं थी इसलिए कमलनाथ सरकार ने आचार संहिता का बहाना लेकर कर्जमाफी टाल दी है और युवाओं को बेरोजगारी भत्ता भी नहीं मिला है।

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कमलनाथ सरकार के दावे पर हमला बोलते हुये कहते हैं कि 'जो पार्टी 70 साल में कुछ नहीं कर पाई उसने 76 दिनों अपने 83 काम करने का ढिंढोरा पीट दिया।' उन्होंने आरोप लगाया है कि 'मध्यप्रदेश में डकैतों की सरकार वापस आ गई है, इन बीते 76 दिनों में एक बार फिर बिजली की कटौती शुरू हो गई है, लालटेन युग की वापसी हुई है। सरकार थोक बंद तबादले में लगी रही, प्रशासन और ला एंड ऑर्डर की व्यवस्था चरमरा गई, 76 दिन में 7600 से ज्यादा तबादले हुये हैं।।।।प्रदेश में तबादला उद्योग खुल गया है और लेन-देन तबादले किये जा रहे हैं।" इतनी बड़ी तादाद में हो रहे तबादलों पर सवाल उठाये जाने पर मुख्यमंत्री कमलनाथ का कहना है कि 'नई सरकार बनने पर ट्रांसफर तो होते ही हैं। प्रदेश में कई अफसर/ अधिकारी पिछले 15 सालों से एक ही जगह जमे थे और भाजपा का बिल्ला लेकर काम कर रहे थे ऐसे में बड़े पैमाने पर प्रशासनिक सर्जरी जरूरी थी।'

कमलनाथ सरकार की चुनौतियां और लोकसभा चुनाव में कांग्रस की संभावनायें मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार की सबसे बड़ी चुनौती खाली खजाना है। प्रदेश की सरकार गंभीर कर्ज के संकट से जूझ रही है जो कि लगातार बढ़ता जा रहा है। 2014 में मध्य प्रदेश सरकार पर 77 हजार करोड़ रुपए का कर्ज था जो आज लगभग एक लाख 84 हजार करोड़ रुपए तक पहुँच गया है। अभी तक कांग्रेस सरकार 5000 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है। ऐसी स्थिति में कमलनाथ सरकार पर अपने भारी-भरकम वचनों को पूरा करने का दबाव है, जाहिर है ऐसी स्थिति में यह कर्ज और बढ़ेगा। ऊपर से केंद्र में भाजपा की सरकार है जहां से प्रदेश की कांग्रेस सरकार किसी खास मदद की उम्मीद नहीं कर सकती है। ऐसे में अगर एकबार फिर से केंद्र में मोदी सरकार वापस आ जाती है तो यही स्थिति बनी रहेगी।दूसरी बड़ी चुनौती कांग्रेस सरकार का कामचलाऊ बहुमत में होना है, सरकार बनाने के लिये उन्हें दूसरों पर निर्भर होना पड़ा है।

230 सदस्यों वाली विधानसभा में इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 114 सीटें मिली हैं जोकि बहुमत से दो कम हैं। दूसरी तरफ भाजपा को 109 सीटें मिली हैं, कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी के दो, समाजवादी पार्टी के एक और चार निर्दलियों की मदद से 121 सीटों के साथ किसी तरह से मध्यप्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब हो सकी है। सीटों का अंतर बहुत कम होने और बहुमत के लिये दूसरों पर निर्भरता की वजह से कमलनाथ सरकार की स्थिरता को लेकर लगातार अटकलें बनी रहती रहती हैं। कांग्रेस बदलाव के नारे के साथ सत्ता में आयी है, मुख्यमंत्री कमलनाथ की अगुवाई में धीरे-धीरे गवर्नेंस और शासन/प्रशासन की चाल-ढाल में बदलाव भी देखने को मिल रहा है। कमलनाथ की छवि तुरंत निर्णय लेवे वाले और परिणाम देने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है।

अभी तक के कार्यकाल में उन्होंने इस बात को स्थापित करने में मुख्य जोर लगाया है कि उनकी सरकार की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। वे काम करने वाली सरकार की छवि बनाने में काफी हद तक कामयाब हो गये हैं। कमलनाथ का प्रशासन पर नियंत्रण है और कांग्रेस के संगठन की गुटबाजी भी काबू में है। मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनकी निगाह लोकसभा चुनाव पर है इसलिए उन्होंने अपना पूरा जोर वचनपत्र में किये गये वादों पर लगाया। पिछले लोकसभा में कांग्रेस राज्य की 29 लोकसभा सीटों में से 2 सीटें ही जीत पायी थी। इस बार उसका लक्ष्य कम से कम 15 सीटें जीतने की है। अगर कांग्रेस इस लक्ष्य के आस-पास भी पहुँच जाती है तो यह कमलनाथ सरकार पर जनता का एक और मुहर होगा।

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(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

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Kamal Nath's 70 days and Lok Sabha challenge
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