
Gujarat Election 2022: पॉवरफुल पटेलों की प्रभावशाली पॉलिटिक्स
Gujarat Election 2022: गुजरात का पटेल समुदाय पहले भले ही खेतिहर किसान रहा हो, लेकिन वर्तमान में पटेल पॉवरफुल, प्रभावशाली और गुजरात के भाग्य विधाता के रूप में जाना जाता है। पटेल न केवल राजनीतिक रूप से, बल्कि सामाजिक, और आर्थिक रूप से भी प्रभावी हुए हैं। यही वजह है कि हर बार की तरह इस बार के विधानसभा चुनाव में भी पॉवरफुल पटेलों की पॉलिटिकल चर्चा हर तरफ है।

गुजरात की वर्तमान राजनीति में 25 फीसदी सांसद और विधायक इसी समुदाय के हैं। पैसा भी सबसे ज्यादा उनके पास है, जमीन भी उनके पास, खेती भी उनके पास और विदेशों में जाकर बस गए पटेलों की संख्या तो खैर इतनी ज्यादा है कि पासपोर्ट में पटेल सरनेम देखते ही इमीग्रेशन अधिकारियों में या तो सम्मान का भाव प्रकट होता है या फिर वे सीधे आंखें तरेरने लगते हैं।
इतिहास में देखें, तो दुनिया भर में गुजरात के पाटीदारों को पटेल के रूप में जाना जाता है, लेकिन पटेल शब्द, कहते हैं कि पाटीदार का ही अपभ्रंश है, जो जमीनों के पट्टों की मालिकी के कारण बना। लेकिन गुजरात में दबदबा रखनेवाले पटेल मूल रूप से गुजरात के नहीं, बल्कि पंजाब के क्षत्रिय थे और वहीं से सल्तनत काल में उन्हें खेती करने के लिए बड़े पैमाने पर गुजरात लाया गया था। सुल्तानों ने उन्हें गांव के गांव पट्टे पर दे दिए थे।
स्वाभाविक रूप से, गांव का केवल एक पटेल मुखिया था, और बाकी पटेल खेतों में हिस्सेदार के रूप में काम करते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, गुजरात बनने से पहले सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री उच्छंगराय ढेबर ने 'खेड़े तेनी ज़मीन' (जो जोत रहा है, उसी की जमीन) अधिनियम के तहत इन सभी हिस्सेदार पटेलों को रातों रात उन खेतों का मालिक बना दिया, जिन पर वे काम कर रहे थे।
लेकिन इससे भी बहुत पहले 1899 के अकाल में बरबाद हुई खेती के बाद से ही पटेलों को शैक्षणिक और व्यावसायिक विकास के लिए प्रेरणा मिली थी और कई लोग पेट पालने के लिए विदेश भी निकलने लगे थे।
पटेलों के वास्तविक चरित्र को समझने के लिए सरदार पटेल के लौहपुरुष वाले व्यक्तित्व को देख सकते हैं, जो स्वभाव से जुझारू और बेहद मेहनती होने के साथ पूरी हिम्मत व ताकत से अपने लक्ष्य को साधने के मामले में अत्यंत जिद्दी कहे जाते थे। आजादी के बाद 562 रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने के अलावा भी सरदार पटेल के पराक्रमों की सूची बहुत लंबी है।
ताजा उदाहरण के तौर पर महज 23 साल की उम्र में ही देश भर में चमके पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल को देख सकते हैं, जो अब भी हैं तो केवल 29 साल के, लेकिन गुजरात के किसी भी दिग्गज नेता की बराबरी में उनको स्थान हासिल हैं।
गुजरात में कोई भी राजनीतिक या सामाजिक हलचल हो और उसमें पटेलों की अग्रणी, महत्वपूर्ण और सक्रिय भूमिका न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। गुजरात में कुल 14 प्रतिशत पटेल आबादी है, और कई दशकों का राजनीतिक इतिहास कहता है कि है कि वे जिस पार्टी के साथ रहे हैं, वही चुनाव जीतती है। या यह भी कह सकते है कि पटेलों ने जिसका हाथ छोड़ा है, वह सत्ता से बाहर हो गया। उदाहरण के तौर पर लगातार 27 साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस को देख सकते हैं। इस तथ्य से तो कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि पटेलों के 80 से 85 फीसदी वोट थोक के भाव बीजेपी को मिलते हैं, जबकि कांग्रेस के हाथ केवल 15-20 फीसदी ही आते हैं।
गुजरात में पटेलों की ताकत देखनी हो, तो विधायक और सांसद गिन लीजिए। वर्तमान विधानसभा सदस्यों के कुल 182 विधायकों में से 44 विधायक पाटीदार हैं, और लोकसभा के 24 सदस्यों में से 6 सांसद भी पटेल हैं। इसका कारण केवल यही है कि गुजरात की 83 विधानसभा सीटों पर पटेल वोटर 35 प्रतिशत से अधिक होने के कारण उनके नतीजों को सीधे प्रभावित करते हैं।
अपने राजनीतिक बल पर गुजरात में चिमनभाई पटेल, बाबूभाई पटेल और केशूभाई पटेल दो - दो बार और आनंदीबेन पटेल व भूपेंद्रभाई पटेल अब तक एक - एक बार मुख्यमंत्री बने। हालांकि, दुनिया भर में पटेल चाहे कितने भी ताकतवर हों और गुजरात में भी राजनीतिक रूप से वे चाहे कितने भी मजबूत हों, और गुजरात में 5 पाटीदार नेता अब तक कुल 8 बार मुख्यमंत्री रहे हैं, लेकिन विडंबना यह है कि इनमें से कोई भी अपना पांच साल का पूरा कार्यकाल पूरा नहीं कर सका।
गुजरात में लगभग 1 करोड़ 10 लाख, अर्थात कुल 14 प्रतिशत आबादी पटेलों की है, जिनमें, लेउवा पटेल 60 प्रतिशत हैं, जबकि कड़वा पटेल 40 प्रतिशत हैं। पटेलों के सर्वाधिक चर्चित व सक्रिय नेता और पाटीदार आंदोलन के अग्रणी हार्दिक पटेल कडवा पटेल हैं, व पटेलों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था खोडलधाम के मुखिया नरेश पटेल लेउवा पटेल समाज के हैं। लेउवा पटेल सौराष्ट्र और मध्य गुजरात में ज्यादा हैं, तो कडवा पटेल उत्तरी गुजरात के निवासी रहे हैं।
कड़वा पटेलों का प्रभाव राजकोट, जूनागढ़, जामनगर, भावनगर, कच्छ, मेहसाणा, पाटन, पालनपुर आदि में ज्यादा है, तो लेउवा पटेलों की ताकतवाले सूरत, आनंद, खेड़ा, गोंडल (राजकोट), जेतपुर, जामनगर, मोरबी, सुरेंद्र नगर के कुछ इलाके हैं। इनके अलावा मेहसाणा, मोरबी, टंकारा, राजकोट पश्चिम, जेतपुर, धोराजी, जामनगर (ग्रामीण), भावनगर वेस्ट, वराछा रोड आदि में तो केवल पटेल मतदाता ही तय करते हैं कि सत्ता में कौन होगा।
हालांकि, सन 2017 के चुनाव में एक अनुमान के तहत 80 फीसदी पटेलों ने बीजेपी का समर्थन किया था, जबकि वह हार्दिक पटेल के नेतृत्व वाले बहुचर्चित पाटीदार आंदोलन के बाद का चुनाव था। फिर भी उस आंदोलन के बाद के चुनाव में सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में पटेलों का कांग्रेस को अच्छा समर्थन मिला था, जहां पटेल समुदाय की तादाद तुलनात्मक रूप से ज़्यादा है।
पटेलों का साथ लेने की कोशिशों में बीजेपी सबसे आगे है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सिपहसालार अमित शाह अब तक कई बैठकें कर चुके हैं। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल अब बीजेपी में हैं और उनका आरक्षण आंदोलन इस चुनाव में मुद्दा नहीं है। कांग्रेस भी पिछले चुनाव के मुकाबले बेहद कमजोर है। खोडलधाम के प्रमुख नरेश पटेल निरपेक्ष भाव से चुप हैं। लेकिन दुनिया के कई देशों के पटेल गुजरात में बीजेपी को जिताने के लिए संदेश भेज रहे हैं।
गुजरात में पटेलों की ताकत के तेवर धारदार हैं, और बीजेपी सहित कांग्रेस और आम आदमी पार्टी आदि सभी राजनीतिक दलों का भविष्य उन्हीं के वोटों पर टिका है। लेकिन पटेलों का साथ इस चुनाव में फिर बीजेपी को ही मिलेगा, क्योंकि बीते कुछेक सालों में पटेलों के साथ उसका नाता कुछ ज्यादा ही गहरा हुआ है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने भी पटेलों का गौरव बढ़ाने में कोई कसर नहीं रखी। सरदार सरोवर पर सरदार पटेल को लौहपुरुष की मुद्रा में संसार में सबसे ऊंचा बनाकर खड़ा कर ही दिया है। ऐसे में गुजरात के ताकतवर पटेलों का मोदी पर भरोसा बना रहेगा, ऐसा कहा जा सकता है।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)