क्या केजरीवाल गुजरात में मोदी का खेल बिगाड़ देंगे?
देश की राजनीति में इस समय यह सवाल चर्चा में है कि क्या केजरीवाल गुजरात में मोदी का खेल बिगाड़ देंगे? यह सवाल इस लिए बड़ा है, क्योंकि मोदी अगर गुजरात हार जाते हैं, तो देश पर शासन का उनका नैतिक बल ही टूट जाएगा। पंजाब विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद यह सवाल हास्यस्पद नहीं है। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाकर अपने बारे में धारणा बदली है।
यह कहना ठीक नहीं होगा कि आम आदमी पार्टी चुनावों की मार्केटिंग अच्छी कर लेती है, लेकिन जमीन पर कहीं नहीं है। पंजाब ने यह धारणा भी तोड़ी है कि आम आदमी पार्टी सिर्फ शहरी वोटरों को प्रभावित करती है। उत्तराखंड और गोवा दोनों राज्यों में ज्यादातर सीटें शहरी थीं, दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी की दाल नहीं गली। उत्तराखंड में उसे सिर्फ 3 प्रतिशत वोट मिले और सीट एक भी नहीं मिली। उधर गोवा में उसे सिर्फ 2 सीटें और 6 प्रतिशत वोट मिले। पंजाब की ज्यादा सीटें ग्रामीण हैं, पंजाब की 117 में से 77 सीटें ग्रामीण हैं इसलिए आम आदमी पार्टी ने शहरी वोटरों को प्रभावित करने वाली धारणा भी तोड़ी है।
आम आदमी पार्टी गुजरात के चुनाव को पंजाब की तरह लड़ रही है। पंजाब की तरह गुजरात में भी ग्रामीण सीटें ज्यादा हैं। 182 में से 143 सीटें ग्रामीण हैं। गुजरात में शहरी सीटें सिर्फ 39 हैं और पिछली बार कड़े मुकाबले में भी भाजपा 39 में से 35 शहरी सीटें जीतीं थी। इसका मतलब साफ़ है कि भाजपा का शहरी किला ज्यादा मजबूत है, जबकि 143 ग्रामीण सीटों में से सिर्फ 64 सीटें ही जीत पाई थी।
किसान और पाटीदार आंदोलन के कारण गुजरात के सौराष्ट्र के कुछ जिलों में भाजपा का सफाया हो गया था। विशेषकर अमरेली और गीर सोमनाथ में, जहां वह कांग्रेस से सभी सीटों पर हार गई थी। लेकिन अब स्थिति बदली है, पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल हो चुके हैं। भाजपा ने ग्रामीण क्षेत्रों की सीटें बढाने के लिए नरेंद्र मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर से गुजरात के सभी 16000 गाँवों में "नमो किसान पंचायत" अभियान शुरू किया है। आम आदमी पार्टी भी शहरी सीटों पर ज्यादा जोर लगाने की बजाए ग्रामीण सीटों पर ज्यादा जोर लगा रही है, जहां कांग्रेस की जड़ें ज्यादा मजबूत हैं।
कांग्रेस ने 2017 में भाजपा को कडा मुकाबला देते हुए 77 विधानसभा सीटें जीतीं थीं जिनमें से 74 ग्रामीण इलाकों की थीं। तो सीधा सीधा मतलब है कि आम आदमी पार्टी भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी। इसका सीधा फायदा भाजपा को होगा, और भाजपा 2017 से ज्यादा सीटें जीतने की स्थिति में आ जाएगी।
मोटे तौर पर जो तस्वीर बन रही है, वह यह है कि आम आदमी पार्टी सरकार बनाने के लिए नहीं, बल्कि प्रमुख विपक्षी दल का दर्जा हासिल करने के लिए चुनाव लड़ रही है। दिल्ली और पंजाब दोनों जगह उसने यही प्रयोग किया था। दोनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता छिनी है, इन दोनों ही राज्यों में उसे पहली बार ही पूर्ण सत्ता नहीं मिली थी। दिल्ली में जरुर आम आदमी पार्टी पहली बार ही सब से बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और कांग्रेस की मदद से सरकार बनाई थी। जबकि पंजाब में 2017 में 22 विधानसभा सीटें जीत कर और अकाली दल को पछाड़ कर प्रमुख विपक्षी पार्टी बनी थी।
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अब इसे दूसरे तरीके से देखते हैं। जो बड़ा सवाल है, वह यह कि क्या गुजरात में तीसरी पार्टी की गुंजाइश है, यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे पहले गुजरात के दिग्गज नेता चिमन भाई पटेल, केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला यह प्रयोग करके देख चुके हैं। लेकिन यह पहली बार है कि किसी अन्य राज्य में सत्तारूढ़ कोई पार्टी तीसरी ताकत के रूप में गुजरात में उभरने की कोशिश कर रही है।
पिछले तीन महीनों से केजरीवाल हर हफ्ते गुजरात जा रहे हैं। अब भगवंत सिंह मान, मनीष सिसोदिया और राघव चड्ढा ने भी गुजरात के दौरे शुरू कर दिए हैं। हवा ऐसी बनाई जा रही है कि पंजाब की तरह गुजरात में भी आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिलेगा। केजरीवाल दिल्ली में उनके खिलाफ हो रही हर कार्रवाई को गुजरात और मोदी के साथ जोड़ कर दिखा रहे हैं। एक तरह से उन्होंने गुजरात में मोदी बनाम केजरीवाल बना दिया है।
अभी हाल ही में उन्होंने कहा कि आईबी की एक रिपोर्ट में आम आदमी पार्टी का बहुमत और भाजपा को 65 से 70 सीटें बताई गई हैं। लेकिन इस के उल्ट पहले ओपिनियन पोल में भाजपा को 135 से 143, कांग्रेस को 36 से 44 और आम आदमी पार्टी को ज्यादा से ज्यादा 2 सीटें बताई गई हैं।
आम आदमी पार्टी को 17 फीसदी वोट और सिर्फ दो सीटों के अनुमान ने समर्थकों की हवा निकाल दी। अगर आम आदमी पार्टी को 10 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिलते हैं तो यह केजरीवाल की बड़ी उपलब्धि होगी। लेकिन यह कहना भी ठीक नहीं लगता कि आम आदमी पार्टी सिर्फ कांग्रेस के वोट ही खाएगी। अगर आम आदमी पार्टी को मिले वोटों का 70-75 प्रतिशत कांग्रेस का वोट होगा, तो 25-30 प्रतिशत भाजपा का वोट भी होगा।
2017 में कांग्रेस के चुनाव की बागडोर अशोक गहलोत के हाथ में थी, उन्होंने राहुल गांधी को मन्दिर मन्दिर घुमाकर कांग्रेस को सॉफ्ट हिंदुत्व पर ला कर खड़ा कर दिया था। साफ्ट हिंदुत्व की छवि, किसानों और पाटीदारों के आन्दोलन की बदौलत कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। 2012 के मुकाबले कांग्रेस की 18 सीटें और 2 प्रतिशत वोट बढा था। भाजपा का वोट तो 1.16 प्रतिशत बढा था, लेकिन सीटें 16 घट गईं थी।
पिछली बार गुजरात में सत्ता के बेहद करीब पहुंचने वाली कांग्रेस की इस बार रहस्यमयी सुस्ती कांग्रेस में भी कई नेताओं को हैरान कर रही है। लेकिन जो दिखता है, हमेशा वही सच नहीं होता। कांग्रेस इस बार माधव सिंह सोलंकी के फार्मूले पर चुनाव लड़ने की रणनीति बना रही है। सोलंकी ने 1981 में आरक्षण लागू करने के बाद 1985 चुनाव में क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासियों और मुसलमानों का जातीय गठबंधन बना कर रिकार्ड जीत हासिल की थी। इस गठबंधन को KHAM "खाम" नाम दिया गया था। तब कांग्रेस को 182 में से 149 सीटें मिलीं थी।
इस रिकार्ड को भाजपा कभी नहीं तोड़ पाई। गुजरात में कुल वोटरों का 14 प्रतिशत क्षत्रिय, 8 प्रतिशत दलित, 15 प्रतिशत आदिवासी और 10 प्रतिशत मुस्लिम हैं। अगर इन चारों जातियों को जोड़ दिया जाए तो इनकी संख्या 47 फीसदी तक पहुंच जाती है, जोकि सत्ता में आने के लिए पर्याप्त है।
इसी वजह से कांग्रेस इन चारों जातियों पर खास ध्यान दे रही है लेकिन पिछले 27 साल से सफल नहीं हो पा रही। इस बार तो केजरीवाल के कारण कांग्रेस की राह और कठिन हो गई है।
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