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RGV on Bollywood: बॉलीवुड के 'बदसूरत चेहरे' को आईना दिखाते रामगोपाल वर्मा

केरला स्टोरी को लेकर जिस तरह से मशहूर निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने पूरे बॉलीवुड को उसका बदसूरत चेहरा दिखाया है, उसके बारे में हर फिल्म प्रेमी को जरूर जानना चाहिए।

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film director Ramgopal Varma show the ugly face of Bollywood

RGV on Bollywood: रामगोपाल वर्मा बॉलीवुड के उन फिल्मकारों के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने हिन्दी सिनेमा को नया स्वरूप दिया। लेकिन कुछ समय से वो हिंदी सिनेमा छोड़कर तेलुगु सिनेमा में व्यस्त हो गये हैं। उनकी कही गयी बात का असर आज भी सिनेमा इंडस्ट्री पर होता है। "द केरला स्टोरी" को लेकर उन्होंने जिस तरह से बॉलीवुड को आईना दिखाया है उससे यह बात एक बार फिर उभरकर सामने आती है कि बॉलीवुड एक खास नैरेटिव का सिनेमा बनाने वाली जगह बनकर रह गया है।

रामगोपाल वर्मा ने ट्वीट करके कहा है कि "हम दूसरों से और खुद से झूठ बोलने में इतने सहज हैं कि जब कोई आगे बढ़कर सच दिखाता है तो हम चौंक जाते हैं। यह #TheKeralaStory की चहुंमुखी सफलता पर बॉलीवुड की मौत जैसी खामोशी की व्याख्या करता है।" रामगोपाल वर्मा यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने आगे लिखा है "केरला स्टोरी एक ख़ूबसूरत भूतिया आईने की तरह है जो मुख्यधारा बॉलीवुड के मृत चेहरे को उसकी पूरी बदसूरती में उसको दिखा रही है।"

रामगोपाल वर्मा ने यह भी लिखा है कि "केरला स्टोरी बॉलीवुड के हर स्टोरी डिस्कशन रूम और हर कॉरपोरेट घराने में हमेशा के लिए एक रहस्यमयी कोहरे की तरह छाई रहेगी"। हालांकि उन्होंने बॉलीवुड से यह उम्मीद नहीं है कि वह कुछ सीख सकेगा इसलिए अंत में उन्होंने लिखा है कि "केरला स्टोरी से सीखना मुश्किल है क्योंकि झूठ की नकल करना आसान है लेकिन सच की नकल करना बहुत मुश्किल होता है"।

रामगोपाल वर्मा न तो किसी विचारधारा के फिल्मकार रहे हैं और न ही फिल्मों को उन्होने विचाराधारा की लड़ाई का जरिया बनाया। सत्या और कंपनी जैसी उनकी फिल्में मुंबई के माफिया जगत की कहानी थी लेकिन उन फिल्मों में उन्होंने कभी हिन्दू मुस्लिम का भेदभाव नहीं किया। जैसा है, वैसा दिखाने में संकोच नहीं किया। इसलिए आज वो इतनी बेबाकी से यह बात बोल पा रहे हैं कि केरला स्टोरी की सफलता ने बॉलीवुड के चेहरे पर कालिख पोत दी है।

उनका निशाना और आरोप गलत नहीं है। पश्चिम की फिल्मों ने तमाम मनोरंजक फिल्में बनाते हुए भी चर्च के करप्शन, यहूदियों के नरसंहार, अमेरिकी फौजों की गलत हरकतों, अफ्रीका में गोरों की ज्यादतियों सारे संवेदनशील माने जाने वाले विषयों पर फिल्में बनाई। वहां के फिल्मकारों की हिम्मत की प्रशंसा होती है। वहां फिल्मों पर प्रतिबंध लगाना आसान नहीं है, जैसे की पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में 'द केरला स्टोरी' पर थोपा गया। लेकिन भारत में उलटा होता है, जब भी हिंदू मुस्लिम विषय पर कोई फिल्म बनती है और अगर उसमें इस्लाम के अनुयायियों का कोई नकारात्मक चित्रण होता है, भले ही वो सच्ची कहानी हो, निर्माता पैसा लगाने को तैयार नहीं होता। प्रोडक्शन कंपनियां फिल्म प्रोड्यूस नहीं करती और कोई अच्छा डायरेक्टर ऐसी सच्ची कहानियों को छूने से भी परहेज करता है।

भला शिवाजी और महाराणा प्रताप से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को क्या समस्या हो सकती है? लेकिन समस्या है। अगर इन दोनों पर फिल्में बनीं तो अकबर और औरंगजेब को खलनायक की तरह दिखाना पड़ेगा। सो शिवाजी पर आज तक कोई मुख्यधारा की मूवी देखने में नहीं आई। 'बाजीराव मस्तानी' या 'तान्हाजी' जैसी फिल्मों में शिवाजी का जिक्र या उनका किरदार दिखा, तो 'तान्हाजी' में भी औरंगजेब से ज्यादा सैफ अली खान अभिनीत हिंदू किरदार को ही खलनायक बनाया गया था। 'जय चित्तौड़' आखिरी मूवी थी, जिसे 60 के दशक में बनाया गया था, जिसमें महाराणा प्रताप का रोल पी जयराज ने किया था। उसके बाद आज तक कोई मूवी नहीं आई। लेकिन मुगल काल का महिमामंडन करने वाली 'मुगले आजम' से लेकर 'जोधा अकबर' तक तमाम बड़े बजट की मूवी मशहूर हिंदी फिल्म निर्देशक बनाते रहे।

मुंबई के फिल्म मेकर्स पर मुस्लिम तुष्टीकरण का खौफ इतना हावी है कि जब करण जौहर ने शाहजहां की मौत के बाद गद्दी के झगड़े पर 'तख्त' मूवी बनाने का ऐलान किया तो लोगों ने लिखना शुरू किया कि करीना कपूर शाहजहां की उस बेटी जहांआरा का रोल कर रही है, जिसने मथुरा जन्मभूमि मंदिर से श्रीकृष्ण की मूर्ति निकलवाकर आगरा की मस्जिद की सीढ़ियों पर चिनवा दी थी। ऐसी सच्चाई सामने आने पर करण जौहर ने वो प्रोजेक्ट ही बंद कर दिया।

दरअसल रामगोपाल वर्मा ही नहीं फिल्म इंडस्ट्री के ज्यादातर खिलाड़ी मान रहे हैं कि अब फिल्म की कामयाबी की एक बड़ी गारंटी हिम्मत है। आप ऐसे विषय पर फिल्म बनाइए, जिसको लेकर लोगों में फिल्में बनाने की हिम्मत या दम नहीं है। शुरूआत 'कश्मीर फाइल्स' से हुई थी। विवेक अग्निहोत्री के इस प्रयोग ने गालियां तो खूब दिलवाईं, धमकियां भी, लेकिन नाम और धन दोनों कमाने का मौका भी दिया। हमेशा फिल्म का तकनीकी पक्ष ही कामयाबी नहीं दिलाता, बल्कि कहानी का ओरिजनल होना और उसे कहने का तरीका ज्यादा असरदार साबित होता है। ऐसी कहानी जिसे लोगों ने दशकों तक दंगे होने के डर से, किसी की नाराजगी के खौफ से छुपा रखा हो, तो दर्शक भी खुले दिल से फिल्मकार की हिम्मत को टिकट खरीदकर प्रणाम करने आते हैं।

और ये बात 'द केरला स्टोरी' की बॉक्स ऑफिस कामयाबी भी साबित कर रही है। 15 से 20 करोड़ में बनी ये मूवी ये लाइनें लिखे जाने तक ओवरसीज बॉक्स ऑफिस की भी कमाई जोड़कर करीब 260 करोड़ रुपए कमा चुकी है। यानी लागत से 15-20 गुना अधिक। फिल्म से जुड़े लोगों को पहचान और शोहरत मिल रही है सो अलग। कमाई और शोहरत से भी ज्यादा समाज में संदेश भी जा रहा है कि देश में ये भी हो रहा है, सतर्क रहिए।

ये अलग बात है कि मूवी की इस कमाई में मूवी को मिलने वाली गालियां भी एक वजह हैं, टाइम मैगजीन कभी कभी ही किसी भारतीय फिल्म के बारे में लिखता है। 'द केरला स्टोरी' को लेकर इसी हफ्ते जो रिपोर्ट लिखी गई है, उसकी हैडिंग है, "How a low budget Hindi Film ignited deadly Religious Tension". इसमें महाराष्ट्र की हिंसा का जिक्र करके बिना तथ्यों की जांच किये पूरी कहानी को काल्पनिक बता दिया गया। इसी तरह पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु की सरकारों ने इस मूवी को एक तरह से खारिज ही कर दिया। अभी फिल्म्स एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट (एफटीटीआई) पुणे में फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग का ऐलान ही हुआ था कि एक थिएटर सोसायटी ने वहां के कुछ छात्रों को साथ लेकर विरोध ही करना शुरू कर दिया।

फिल्म विधा के छात्रों को तो देखना चाहिए था कि फिल्म में ऐसा क्या है, जो इतनी चर्चा हो रही है। विरोध या प्रतिबंध तो राजनीतिक पार्टियों का काम है। उन्हें तो एक दिन जब कामयाब होना होगा तो इस तरह के तमाम प्रयोग आजमाने होंगे अपने क्षेत्र में। लेकिन यहां तो पहले पॉलटिक्स, बाद में क्रिएटिवटी है। केवल भारत में ही नहीं बर्मिंघम में जब ये मूवी लगी तो तमाम मुस्लिम एक्टिविस्ट्स ने हॉल में घुसकर तोड़फोड़ कर डाली। नफरत का आलम यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अभी तक पश्चिम बंगाल में मूवी रिलीज नहीं हो पाई है। थिएटर्स के मालिकों की संस्था सरकार के दवाब में है, कह रही है कि तीन हफ्ते बाद फिल्म दिखाएंगे।

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यूं फिल्म के समर्थन में तमाम हिंदुत्ववादी दल आए हैं और उसका फायदा भी बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पर पड़ा है, लेकिन आमतौर पर राजनीति से जुड़े लोगों के समर्थन को उनके अपने हितों से जोड़कर देखा जाता रहा है। ऐसे में रामगोपाल वर्मा जैसे बिना राजनीतिक नजरिए वाले निर्देशक का इस तरह इस मूवी के समर्थन में चार ट्वीट करना सच्चे फिल्मकारों के लिए उत्साह बढ़ाने जैसा होगा।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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film director Ramgopal Varma show the ugly face of Bollywood
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