2019 लोकसभा चुनाव : न नीतीश, न तेजस्वी, पासवान हैं Key फैक्टर
नई दिल्ली। मिशन 2019 को देखते हुए बिहार का दंगल महत्वपूर्ण हो गया है। यहां लोकसभा की 40 सीटें हैं जिनमें 31 एनडीए के पास थीं। उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के एनडीए छोड़ने के बाद यह घटकर 28 हो गयी है। सवाल यही है कि 2019 में क्या एनडीए 40 में से 31 सीटें बरकरार रख सकेगी? बीजेपी के लिए अच्छी बात ये है कि जेडीयू एनडीए में लौट आया है और बिहार में एनडीए की सरकार भी है। 2014 के मुकाबले परिदृश्य बिल्कुल अलग है। जनता दल यूनाइटेड यानी जेडीयू एनडीए में लौटा है तो राष्ट्रीय लोक समता पार्टी यानी आरएलएसपी एनडीए छोड़कर महागठबंधन में जा पहुंची है। दोनों ने अपने-अपने पाले बदल लिए हैं। मगर, दोनों दलों की हैसियत में बड़ा फर्क है। इसलिए इसे एक का जाना-दूसरे का आना यानी बात बराबर नहीं कह सकते। इतना जरूर है कि अगर आरएलएसपी की तरह लोकजनशक्ति पार्टी भी एनडीए छोड़कर आरजेडी-कांग्रेस खेमे में जा मिले, तो बड़ा फर्क जरूर देखने को मिलेगा। एलजेपी की यही अहमियत है। इसी वजह से पासवान पिता-पुत्र को मनाने के लिए नीतीश कुमार को दिल्ली आना पड़ा और अमित शाह को इनके घर जाना पड़ा।
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क्या पासवान के साथ समझौता ‘Lock’?
यह ख़बर जरूर है कि बिहार में सीट शेयरिंग पर बातचीत पूरी हो चुकी है। सभी 40 सीटों को बीजेपी, जेडीयू और लोकजनशक्ति पार्टी ने बांट लिया है, मगर यह चुनावी तालमेल अभी लॉक हुआ नहीं माना जा सकता। राम विलास पासवान राजनीति का तापमान मापने में महारथ हासिल रखते हैं। इस वक्त केंद्र में नरेंद्र मोदी और बिहार में नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ जबरदस्त एंटी इनकम्बेन्सी चल रही है। ऐसे में कहीं एलजेपी भी इसका शिकार न हो जाए, इसकी चिन्ता ही उन्हें परेशान कर रही है। इसलिए इस बात की पूरी सम्भावना है कि लोक जनशक्ति पार्टी अंतिम निर्णय करने में थोड़ा और वक्त ले।
बिहार में चुनावी समीकरण पर एक नजर
बिहार में चुनावी समीकरण को जरा आंकड़ों में भी समझने का प्रयास करते हैं :
* 2014 में जेडीयू ने अकेले चुनाव लड़ा था और यह महज 2 सीटों पर सिमट गया।
* आरजेडी-कांग्रेस गठजोड़ भी 4+2 ही हो सकी।
* एनडीए ने 40 में से 31 लोकसभा सीटें झटक लीं।
* बीजेपी 22, एलजेपी 6 और आरएलएसपी 3
2014 और 2019 में फर्क बिहार के संदर्भ में बड़ा है। तब त्रिकोणात्मक संघर्ष हुआ था। लालू की आरजेडी, नीतीश के जेडीयू और एनडीए में हुए इस संघर्ष में एनडीए को भारी जीत मिली। अगर दो ध्रुवों में लड़ाई होती, तो परिणाम ऐसे कतई नहीं होते।
वोट प्रतिशत पर एक नजर
आप वोट प्रतिशत पर गौर करें, तो एनडीए को मिला त्रिकोणात्मक संघर्ष का फायदा और साफ नज़र आता है।
* एनडीए को 36.38 फीसदी वोट मिले थे
* बीजेपी (29.86%), एलजेपी (6.5%) और आरएलएसपी (0.12%)
* जेडीयू को 16.04 फीसदी वोट मिले
* वहीं आरजेडी-कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को 30.22% वोट मिले
* आरजेडी (20.46%), कांग्रेस (8.56%) और एनसीपी (1.2%)
2014 के आम चुनाव में करारी हार के बाद मानो नीतीश कुमार की नींद टूटी हो। नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनते ही एनडीए छोड़ दी थी और जब अलग हटकर चुनाव लड़े, तो ऐसे भयावह परिणाम मिले। नरेंद्र मोदी भी उनकी इच्छा के विरुद्ध प्रधानमंत्री हो चुके थे। स्थिति इतनी शर्मनाक हो गयी कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया। मगर, तभी नीतीश ने बदला लेने की भी ठानी। कांग्रेस, आरजेडी के साथ वे आ मिले। बिहार विधानसभा चुनाव 2015 के लिए महागठबंधन खड़ा हो गया।
बिहार विधानसभा चुनाव 2015 : भारी पड़ा महागठबंधन
बिहार विधानसभा चुनाव 2015 : भारी पड़ा महागठबंधन
पार्टी------------------लड़े-------------------------जीते
आरजेडी---------------101------------------------80
जेडीयू-----------------101------------------------71
कांग्रेस------------------41------------------------27
महागठबंधन में जेडीयू और आरजेडी ने बराबर-बराबर 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा। आरजेडी 80 और जेडीयू 71 सीटें जीतने में कामयाब रहे। जबकि, कांग्रेस ने 41 सीटों पर चुनाव लड़कर 27 सीटों पर कब्जा जमाया।
पार्टी -------------------------- वोट प्रतिशत (%)
आरजेडी ------------------------- 18.35
जेडीयू --------------------------- 16.83
कांग्रेस -------------------------- 6.6
एनसीपी ------------------------- 0.49
वामदल ------------------------- 1.97
महागठबंधन -------------------- 43.29
अगर वोट प्रतिशत के हिसाब से देखें तो आरजेडी 18.35%, जेडीयू 16.83% और कांग्रेस 6.66% वोट अपनी झोली में कर सके। कुल मिलाकर 41.83% वोट यह तिकड़ी अपनी झोली में डाल चुकी थी। अगर एनसीपी 0.49%, वाम दल 1.97% को भी जोड़ लें तो महागठबंधन को 43.29 फीसदी वोट मिले। यानी बाजी पलट चुकी थी। महागठबंधन के फॉर्मूले के सामने बीजेपी-एलजेपी-आरएलएसपी ढेर हो गयी।
2015 में Bihar Assembly Election : पीछे रह गया NDA
पार्टी -------------------- वोट प्रतिशत (%)
BJP ---------------------- 24.42
LJP ----------------------- 4.83
RLSP --------------------- 2.56
NDA --------------------- 31.71
2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी (24.42%), एलजेपी 4.83% और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को 2.56% यानी एनडीए को 31.71% वोट मिले।
बीजेपी के पास 22 सांसद, पर लड़ेगी महज 17 सीटों पर !
यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं है कि वर्तमान में बीजेपी के पास 22 सीटें हैं लेकिन वह 17 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है। इसकी वजह हैं जेडीयू नेता नीतीश कुमार जो 2019 के जंग में मिलकर लड़ने के लिए एनडीए में दोबारा लौट चुका है। आम चुनाव में बीजेपी और जेडीयू ने बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ना तय किया है। दोनों 17-17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं। कारण साफ है कि मिलकर लड़ें तो सभी सीटें जीतने के आसार हैं और अलग-अलग लड़ें तो शायद सबकुछ लुट जाए जैसा कि विगत लोकसभा चुनाव में जेडीयू के साथ हो चुका है।
जेडीयू के एनडीए में आ जाने के बावजूद उपचुनाव का हाल
मगर, राजनीति कागज पर होने वाले गणित से कुछ अलग तरीके से अपनी चाल चला करती है। जेडीयू के एनडीए में आ जाने के बावजूद बिहार में उपचुनाव के नतीजे अलग कहानी बयां करते हैं। जेडीयू को अररिया में अपनी जीती हुई सीट भी तेजस्वी यादव की आरजेडी के हाथों गंवानी पड़ी। और, वह भी तब जबकि बीजेपी-जेडीयू ने मिलकर चुनाव लड़ा।
जीत गारंटी बनी दिख रही है एलजेपी
आज की तारीख में एनडीए के लिए जीत की गारंटी का नाम है लोक जनशक्ति पार्टी, जिसे 2014 के लोकसभा चुनाव में 6.5 फीसदी वोट मिले थे और 2015 के विधानसभा चुनाव में भी उसे 4.83 प्रतिशत वोट मिले। एलजेपी ऐसी पार्टी है जिसे इस वक्त मनमुताबिक सीटें एनडीए में भी मिल रहा है और यही आरजेडी-कांग्रेस भी देने को तैयार हैं। अगर लोकजनशक्ति पार्टी ने दोबारा आरजेडी के साथ गठबंधन का फैसला कर लिया, तो यह 5 से 6 प्रतिशत वोटों को इधर से उधर करने का करतब दिखला सकती है।
एंटी इनकम्बेन्सी पर भी है राम विलास पासवान की नज़र
नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के लिए जो एन्टी इनकम्बेन्सी है उस वजह से भी एनडीए का वोट कम हो जा सकता है। यानी तब एनडीए और महागठबंधन के बीच मुकाबला और कड़ा हो जाएगा।
अभी जरूर राम विलास पासवान एनडीए से 6 लोकसभा और एक राज्यसभा की सीट का वादा लेने में कामयाब रहे हैं। मगर, राम विलास पासवान वैसे चुनिन्दा नेताओं में हैं जो मौसम देखकर करवट बदलते हैं। अगर उन्हें ऐसा लगेगा कि वह आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर नीतीश कुमार की जगह वहां ले सकते हैं तो उन्हें पाला बदलते देर नहीं लगेगी।
जिधर होगी एलजेपी, पलड़ा उधर होगा भारी
हालांकि एनडीए ने एलजेपी को मना लिया है लेकिन जिस तरीके से चिराग पासवान आगे बढ़कर राहुल गांधी की तारीफ करते रहे हैं, उसे देखते हुए ये साफ है कि एलजेपी अभी एनडीए में भी लॉक नहीं हुई है। एलजेपी के रुख पर बिहार में एनडीए और महागठबंधन दोनों का भविष्य निर्भर करता है। जिस तरफ एलजेपी रहेगी, पलड़ा उधर ही भारी होता नज़र आएगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)