'कानून का शासन' नहीं 'शासक का कानून'- बंगाल हिंसा पर NHRC रिपोर्ट, ममता बोलीं- राजनीतिक प्रतिशोध
कोलकाता, 15 जुलाई। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों के बाद हुई हिंसा के बारे में जांच कर रहे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम ने ममता बनर्जी सरकार के बारे में सख्त टिप्पणी है। आयोग के पैनल ने हाईकोर्ट को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बंगाल में स्थितियां बताती हैं कि यहां पर 'कानून का शासन' नहीं बल्कि 'शासक का कानून' है।
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पैनल ने बंगाल में चुनाव बाद हिंसा से जुड़ी अपनी जांच रिपोर्ट इसी 13 जुलाई को कलकत्ता हाईकोर्ट में जमा की है। 50 पेज की अपनी रिपोर्ट में आयोग ने विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस की जात के बाद होने वाली राजनीतिक हिंसा को न रोकने के लिए ममता बनर्जी सरकार की कड़ी आलोचना की है।
संगठित
हिंसा
का
जिक्र
रिपोर्ट
में
कहा
गया
है
कि
"बंगाल
में
हिंसक
घटनाओं
का
अनुपात
और
विस्तार
पीड़ितों
की
दुर्दशा
के
प्रति
राज्य
सरकार
की
भयावह
उदासीनता
को
दर्शाता
है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि हिंसा की बड़े पैमाने पर होने वाली घटनाएं ये बताती हैं कि कैसे संगठित हिंसा का इस्तेमाल उन लोगों को डराने के लिए किया गया जिन्होंने किसी दूसरी पार्टी को समर्थन देने की 'हिम्मत दिखाई' थी।
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हाल ही में हुए बंगाल विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी ने तीसरी बार सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखी जबकि राज्य में दावा ठोक रही बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर राज्य में प्रमुख विपक्षी की भूमिका में आ गई है। पैनल ने अपनी रिपोर्ट में ये भी कहा है कि सरकार के कुछ अंग इस राजनीतिक हिंसा पर मूक दर्शक बने रहे जबकि बहुत सारे हिंसा में स्पष्ट रूप में भागीदार थे।
ममता
बनर्जी
ने
बताया
राजनीतिक
प्रतिशोध
आयोग
की
रिपोर्ट
पर
प्रतिक्रिया
देते
हुए
पश्चिम
बंगाल
की
मुख्यमंत्री
ममता
बनर्जी
ने
राजनीतिक
प्रतिशोध
बताया
है।
एनएचआरसी
की
रिपोर्ट
पर
बोलते
हुए
ममता
बनर्जी
ने
कहा
"(एनएचआरसी
ने)
अदालत
में
रिपोर्ट
जमा
करने
के
बजाय
इसे
लीक
कर
दिया।
उन्होंने
कोर्ट
का
सम्मान
करना
चाहिए।
अगर
यह
राजनीतिक
प्रतिशोध
नहीं
है
तो
वे
रिपोर्ट
कैसे
लीक
कर
सकते
हैं।"
ममता
बनर्जी
ने
आगे
कहा
कि
वे
बंगाल
के
लोगों
को
बदनाम
कर
रहे
हैं।