बालों के निर्यात पर लगाम से बंगाल में हाहाकार, जानिए कितने करोड़ डॉलर का है कारोबार
कोलकाता, 6 फरवरी: इंसान के बालों का सालाना कारोबार करोड़ों अमेरिकी डॉलर का है, यह यकीन करना मुश्किल होता है। लेकिन, सैकड़ों परिवारों की रोजी-रोटी इंसानी बालों के भरोसे ही टिकी हुई है। जिस बाल को सलून या ब्यूटी पॉर्लर में लोग यूं ही कटवा कर छोड़ आते हैं, उसका एक पूरा व्यवस्थित व्यवसाय है। पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा लोग बालों के कारोबार में जुड़े हुए हैं, लेकिन अब केंद्र सरकार के एक फैसले से उनकी पहले से चली आ रही दिक्कतें और बढ़ने की आशंका पैदा हो गई है। केंद्र सरकार ने बालों के निर्यात पर सख्ती बढ़ा दी है, क्योंकि हाल के दिनों में बांग्लादेश और चीन में इसकी तस्करी होने की जानकारियां सामने आ रही थीं।
तस्करी रोकने के लिए बाल निर्यात पर सख्ती
पश्चिम बंगाल में बालों से जुड़ा कुटीर उद्योग लॉकडाउन के दौरान से ही मंदी से नहीं उबर पा रहा है। ऊपर से 25 जनवरी को केंद्र सरकार ने बालों के निर्यात पर कई तरह की पाबंदियां लगी दी हैं। ये प्रतिबंध बाल उद्योग की ओर से इसकी तस्करी रोकने की मांग पर लगाई है। अब बाल के निर्यातकों को इसे बाहर भेजने के लिए डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड की इजाजत या लाइसेंस की जरूरत पड़ेगी। केंद्र के इस कदम का स्वागत करते हुए भारतीय बाल एवं बाल उत्पाद विनिर्माण एवं निर्यातक संघ के सदस्य सुनील ईमानी ने कहा है कि तस्करी की वजह से स्थानीय उद्योगों और निर्यात को नुकसान पहुंच रहा था।
पश्चिम बंगाल में कुटीर उद्योग पर संकट
लेकिन, इसका एक दूसरा पहलू भी है। भारत से जितने भी बाल का निर्यात होता है, उसका लगभग आधा कारोबार पश्चिम बंगाल से जुड़ा है। वहां लोगों की एक बड़ी फौज इस पेशे में लगी हुई है। लेकिन, केंद्र के इस फैसले से वहां बाल से जुड़े कुटीर उद्योग को तगड़ा झटका लगा है, जो लॉकडाउन से ही लड़खड़ा रहा है। कई गांव ऐसे हैं, जो इंसान के बालों की प्रोसेसिंग के कार्यों में ही लगे हुए हैं। पहले ही वे दलालों और बिचौरियों से परेशान थे। कोलकाता से 60 किलोमीटर दूर हावड़ा के मलिकपोल गांव के सहाबुद्दीन मल्लिक ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है, 'लॉकडाउन तो बुरा सपना था। कारोबार अभी तक पटरी पर नहीं लौटा है और बिचौलिए और दलाल ऊपर से हैं। हमारा पूरा गांव इंसानों के बालों की प्रोसेसिंग पर ही निर्भर है, लेकिन सरकार का कोई सहयोग नहीं है।'ये इस कारोबार में 25 वर्षों से हैं और 20 युवाओं के अपने वर्कशॉप में काम दिए हुए हैं।
14 करोड़ डॉलर से भी ज्यादा का रहा बाल का कारोबार
मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल से लेकर नवंबर तक बालों का निर्यात 14 करोड़ डॉलर से भी ज्यादा का था। जिसमें कि साल 2020-21 के 1.528 करोड़ डॉलर के मुकाबले कई गुना बड़ा उछाल है। इसमें सबसे बड़ा योगदान पश्चिम बंगाल का है, जहां से कभी-कभी 50% से भी ज्यादा निर्यात होता है। राज्य के हावड़ा, मुर्शीदाबाद, मालदा और पूर्बा मेदिनीपुर बालों की प्रोसेसिंग वहां का कुटीर उद्योग है। अब यहां के छोटे कारोबारियों में इस बात को लेकर हड़कंप मचा हुआ है कि नए नियम से निर्यात का लाइसेंस रखने वाले को निर्यातकों का इस धंधे में एकाधिकार हो जाएगा, जो पहले से ही संकट झेल रहे उनकी कमाई को तबाह कर देगा। मल्लिक जैसे कारोबारी जगह-जगह से बाल इकट्ठा करते हैं और उसकी प्रोसेसिंग के बाद उसे बिचौलियों को बेच देते हैं, जो उसे आगे निर्यातकों तक सप्लाई करते हैं। मल्लिक ने कहा है, 'मैं हर महीने 200 पैकेट (प्रत्येक पैकेट करीब 1 किलो का) तैयार किया हुआ इंसानी बाल बेचता था। 2020 में लॉकडाउन की वजह से मेरी यूनिट करीब एक साल तक बंद हो गई और अपने वर्करों को रखने के लिए मुझे लोन लेना पड़ा। अब मेरी बिक्री घटकर 20 पैकेट महीने हो चुकी है।'
1 लाख रुपये किलो से भी महंगे बिक सकते हैं बाल
बालों को जमा करने से लेकर उसे प्रोसेस करने और छोटे-छोटे निर्यात करने के बीच एक पूरी चेन बनी हुई थी, जिसमें बड़ी तादाद में महिलाएं भी शामिल हैं। मसलन बालों को पहले घरों से या एजेंटों के जरिए जमा करके उसे वर्कशॉप तक लाया जाता है। इसमें बहुत बड़ी मात्रा मंदिरों से जुटाए गए बाल भी होते हैं। इस इलाके में कई महिलाएं भी रोजाना अपने बालों को इकट्ठा करके रखती हैं और चार-पांच महीनों पर एजेंट के हाथों बेच देती हैं। दक्षिण में मंदिरों में बाल कटवाने की भी परंपरा है। बच्चों के मुंडन आदि के संस्कार तो पूरे भारत में प्रचलित हैं। आप चौंक जाएंगे कि बाल की कीमतें 500 रुपये किलो से लेकर कई बार एक लाख रुपये किलो से भी ऊपर तक होती है। जैसे गुणवत्ता के आधार पर आमतौर पर ये बाल 500 रुपये से 5,000 रुपये प्रति किलो तक बिकते हैं। लेकिन, यदि बाल 50 इंच जितने लंबे और अच्छे हों तो यह 90,000 रुपये से लेकर 1.10 रुपये किलो तक बिक सकते है। प्रोसेसिंग अच्छी हो तो दोगुनी कीमत भी मिल सकती है।
स्थानीय स्तर पर एक्सपोर्ट हब बनाने की मांग
देश में बालों का बड़ा कारोबार विग उद्योग से जुड़ा हुआ है, जिसकी बॉलीवुड और टॉलीवुड से लेकर टीवी उद्योग में भी बहुत ज्यादा खपत होती है। बालों के धंधे में जुड़े लोगों को उनके कौशल के मुताबिक 2,000 रुपये से लेकर 18,000 रुपये तक सैलरी मिलती है। लेकिन, अब उन्हें डर है कि बड़े निर्यातक कहां उनके गांव तक बाल खरीदने आ पाएंगे, जिसका सीधा फायदा दलाल ही उठाएंगे। अब इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को सरकार से उम्मीद है कि वह कोलकाता जैसे महानगर के आसपास ही ऐसे हब तैयार करे, जहां पर वो बिना बिचौलियों को दिए सीधे निर्यातकों के हाथों बाल बेच सकें। कोलकाता के एक निर्यातक सुमांता चक्रवर्ती भी इस बात से सहमत हैं कि बांग्लादेश और चीन तक बालों की तस्करी एक मुद्दा रहा है। उनका कहना है कि 'इसलिए एक उचित नीति की आवश्यकता थी। रॉ हेयर की मांग ज्यादा है और तेजी से देश से निकलता है।' राज्य के एमएसएमई मंत्री चंद्रकांत सिन्हा ने कहा है कि छोटे निर्यातक उनसे मिले हैं। 'कच्चे बाल को एक्सपोर्ट लिस्ट में डालने के केंद्र के फैसले के बाद वो संकट में हैं। हम हालात की निगरानी कर रहे हैं।'(तस्वीरें- सांकेतिक)