नवरात्र स्पेशल: नैना देवी मंदिर, मानी जाती हैं उत्तराखंड की कुल देवी, जहां गिरे सती के नैत्र
नैनीताल जिले में स्थित नैना देवी मंदिर
देहरादून, 3 अक्टूबर। उत्तराखंड की कुल देवी नैना देवी को माना जाता है। जो कि नैनीताल जिले में स्थित है। नैना देवी मंदिर में सितंबर माह में नंदा देवी महोत्सव भी आयोजित होता है। पौराणिक मान्यता है कि यहां सती के नैन या आंखें गिरी थी, साथ ही ये भी माना जाता है कि नैना मंदिर में आकर आंखों की समस्याएं दूर हो जाती हैं।
नैनीताल में नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर
नैनीताल में नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थेए तब जहां.जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहांण्वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसी से प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गई है।
नयनों की अश्रुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया
पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह शिव से हुआ था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहां यज्ञ में बुलाया, लेकिन अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुंची। अपने पति और अपना निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दुखी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में कूद पड़ी जब शिव को पता चला कि कि उमा सती हो गयी, तो क्रोध में अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट भ्रष्ट कर डाला। देवताओं ने किसी तरह शिव के क्रोध के शान्त किया। सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर निकले, जहां जहां पर शरीर के अंग किरेए वहां वहां पर शक्ति पीठ हो गए। जहां पर सती के नयन गिरे थे ,वहीं पर नैना देवी के रूप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। नैनीताल वही स्थान है, मान्यता है कि जहां पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अश्रुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया।