जब भी उत्तराखंड में सीएम बदला वो पार्टी सत्ता में नहीं लौटी, बीजेपी इस बार तोड़ पाएगी मिथक ?
देहरादून। उत्तराखंड में पार्टी में मचे घमासान के बाद सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मंगलवार शाम राज्यपाल बेबी रानी मौर्या को अपना इस्तीफा सौंप दिया। त्रिवेंद्र के पद छोड़ने की चर्चा तो उसी समय तेज हो गई थी जब पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें दिल्ली तलब किया था। पार्टी अध्यक्ष से मुलाकात में ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को ये बता दिया गया था कि अब राज्य की कमान उनके हाथ से लेकर किसी और को देने का वक्त आ गया है। राज्य बीजेपी में त्रिवेंद्र सिंह रावत के काम करने के तरीके को लेकर अंसतोष था तो अफसरशाही भी कुछ नाराज ही थी। हाल में आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज ने भी इसके लिए और माहौल तैयार किया। त्रिवेंद्र सिंह रावत 4 साल से 9 दिन कम मुख्यमंत्री रहे और अब बाकी के एक साल पार्टी किसी और को मुख्यमंत्री बनाकर फिर से सत्ता का सपना देख रही है। लेकिन भाजपा की राह में एक मिथक बड़ी बाधा बन सकता है।
21 साल में 11 मुख्यमंत्री
नेतृत्व बदलकर पार्टी की नजर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर है लेकिन भाजपा के लिए पहाड़ की चढ़ाई मुश्किल है। तमाम अन्य चीजों के साथ ही एक मिथक, जो भाजपा के लिए बड़ी बाधा है, यह है कि अब तक जिस भी पार्टी ने अपना सीएम बदला वह दोबारा सत्ता में नहीं आई।
वैसे तो उत्तराखंड में सीएम की कुर्सी पर टिक पाना बड़ा मुश्किल रहा है। राज्य को बने 21 साल हो रहे हैं और अब 12वीं बार ऐसा होने जा रहा है जब मुख्यंमत्री पद की शपथ ली जाएगी। हरीश रावत ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिनके कार्यकाल में दो बार राष्ट्रपति शासन लगा और फिर कोर्ट के आदेश से वे बहाल हुए। इस तरह वे तीन बार मुख्यमंत्री बने जबकि खंडूरी एक ही पांच साल के कार्यकाल में दो बार बने। यही नहीं एनडी तिवारी के सिवा अब तक कोई भी मुख्यमंत्री कार्यकाल नहीं पूरा कर सका। जब भी पार्टियों ने चेहरा बदलकर चुनाव को जीतने की कोशिश की उन्हें हार ही मिली है।
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सबसे पहले भाजपा ने किया था परिवर्तन
इसकी शुरुआत राज्य बनने के बाद से ही हुई थी। जब 2000 में उत्तराखंड राज्य बना तो भाजपा ने नित्यानंद स्वामी को मुख्यमंत्री बनाया था लेकिन कुछ ही समय बाद नित्यानंद स्वामी को लेकर विरोध के स्वर उठने लगे। भाजपा ने भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया। ये वही कोश्यारी हैं जो वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। भगत दा के नाम मशहूर कोश्यारी को गद्दी पर बैठाने का दांव काम न आया और 2002 का चुनाव भाजपा हार गई।
अगली बार फिर 2007 में भाजपा को जीत मिली तो पार्टी ने मेजर जनरल (रि) भुवनचंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया। खंडूरी के हिस्से में भी कार्यकाल पूरा कर पाना नहीं था और 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद उनकी छुट्टी कर दी गई। उनकी जगह निशंक को मुख्यमंत्री बनाया गया। निशंक पर आरोप लगे तो पार्टी ने फिर से छवि सुधारने के लिए खंडूरी की वापसी करायी लेकिन 2012 के चुनाव में भाजपा चुनाव हार गई। यहां तक कि खंडूरी अपनी सीट भी नहीं बचा सके। वैसे कहने वाले तो कहते हैं कि खंडूरी हारे नहीं बल्कि पार्टी ने भितरघात करके उन्हें हरवा दिया।
विजय बहुगुणा को हटाकर रावत को बनाया सीएम
2012 में कांग्रेस की सरकार बनी और विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया। उनके काल में ही उत्तराखंड को दहला देने वाली आपदा आई जिसमें विजय बहुगुणा पर ठीक से प्रबंधन न कर पाने का आरोप लगा। इसमें हजारों लोग मारे या लापता हो गए। उस समय केंद्र में भी कांग्रेस की ही सरकार थी। राज्य में काफी विरोध होने के बाद आखिरकार कांग्रेस ने विजय बहुगुणा की जगह हरीश रावत को राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया लेकिन कहानी अभी बाकी थी।
हरीश रावत के कमान संभालने के बाद एक बार फिर राजनीति में बड़ा भूचाल आया जब कांग्रेस के कई विधायक, जिनमें मंत्री भी शामिल थे, पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गए। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और फिर से फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया गया। किसी तरह हरीश रावत ने वापसी तो की लेकिन अगले चुनाव में कांग्रेस की वापसी नहीं हो सकी। भाजपा ने राज्य की 70 में से 57 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया।
अब एक बार फिर लगभग चार साल के बाद भाजपा ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर नया मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया है। ऐसे में ये देखना दिलचस्प रहेगा कि क्या एक बार फिर ये मिथक भाजपा की राह रोकेगा या फिर भाजपा इससे पार पा सकेगी।
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