चमोली आपदा पर GSI का नया खुलासा, बताया 50 मिनट में आई भारी तबाही हिमस्खलन का नतीजा थी
देहरादून, जून 30: देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में 7 फरवरी को हिमस्खलन की वजह से अचानक आए सैलाब ने जमकर कहर बरपाया था। इस आपदा में कम से कम 72 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। यही नहीं 200 लापता या लापता भी हो गए थे। रौंती गढ़ घाटी से एक बड़ी चट्टान और आइसबर्ग टूटकर ऋषिगंगा घाटी में गिरा, जिसके बाद ऋषिगंगा नदी में भीषण बाढ़ आई। अब इस पूरे मामले में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने एक रिपोर्ट के जरिए नया खुलासा करते हुए बताया कि आखिर तबाही की असली वजह क्या थी।
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दरअसल, इस अपदा ने भारत और विदेशों दोनों में वैज्ञानिकों के कई समूहों के साथ वैश्विक वैज्ञानिक रुचि जगाई थी, जो सैटेलाइट इमेजरी के साथ-साथ कुछ टीमों ने आपदा के कारण का पता करने के लिए साइट का दौरा भी किया था। इस महीने की शुरुआत में साइंस जर्नल की एक रिपोर्ट भी इसी तरह के निष्कर्ष पर पहुंची थी, जिसमें बताया गया था कि लगभग 27 मिलियन क्यूबिक मीटर चट्टान और बर्फ घाटी के तल में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
वहीं अब भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने मंगलवार को एक रिपोर्ट में बताया कि भारी तबाही हिमस्खलन का नतीजा थी। चट्टान और बर्फ के मिलने से रौंती गढ़ में बहाव आया और इसी बहाव के तेजी से प्रवाहित होने के कारण ऋषिगंगा घाटी ने बाढ़ का रूप धारण किया। इसकी चपेट में आकर 13.2 मेगावाट के ऋषिगंगा बिजली प्लांट पूरी तरह से नष्ट हो गया। साथ ही 520 मेगावाट की तपोवन-विष्णुगाड हाइड्रो पावर परियोजना को भी नुकसान पहुंचाया था, जिसकी सुरंगों में कई श्रमिक बुरी तरह फंस गए थे।
जीएसआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक सैबल घोष के अनुसार चमोली आपदा का एक कारक इस क्षेत्र में असामान्य रूप से गर्म मौसम भी था। 4 और 6 फरवरी, 2021 के बीच जल-मौसम संबंधी स्थितियों में देखे गए परिवर्तन (भारी बर्फबारी के बाद अचानक गर्म जलवायु) ने संभवतः इस विशाल हिमपात और चट्टानी हिमस्खलन/भूस्खलन को ट्रिगर किया, जिसके बाद यह भयानक आपदा का सामना करना पड़ा।
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इसके अलावा नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के एक अध्ययन से संकेत मिला है कि हिमस्खलन की शुरुआत और इसके विनाशकारी प्रभाव से जोशीमठ के पास तपोवन बैराज स्थल तक का समय मुश्किल से 50 मिनट था, जो किसी भी चेतावनी के बाद कुछ समझने और करने के लिए पर्याप्त नहीं था। वहीं नई रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि जलवायु परिवर्तन, जो हिमालय की ऊपरी पहुंच में उच्च तापमान को ट्रिगर कर रहा था, उसकी भूमिका थी और बर्फ के लगातार जमने और पिघलने से चट्टानों के हिस्से कमजोर हो गए थे, जिससे वे ढहने लगे।