उत्तराखंड में बलूनी पर लगा सकती है बीजेपी बड़ा दांव, बड़ी जिम्मेदारी मिलने के संकेत
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में अनिल बलूनी को मिल सकती है बडी जिम्मेदारी, दिल्ली में बढ़ी सक्रियता
देहरादून, 14 सितंबर। उत्तराखंड में बीजेपी विधानसभा चुनाव से पहले कई मास्टरस्ट्रोक मारने की फिराक में है। दूसरे दलों से बीजेपी के पाले में लाने की चुनौती हो या फिर उत्तराखंड का राष्ट्रीय स्तर को कोई मामला हो। दिल्ली में बैठकर राज्यसभा सांसद और बीजेपी मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी हर दांव को मजबूती के साथ चल रहे हैं। ऐसे में अब सवाल ये उठने लगा है कि क्या 2022 विधानसभा चुनाव में अनिल बलूनी को उत्तराखंड में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलने जा रही है। इसको लेकर उत्तराखंड बीजेपी के नेताओं में भी चर्चांए तेज हो गई है।
दिल्ली
में
एक्टिव
हुए
बलूनी
उत्तराखंड
में
विधानसभा
चुनाव
को
लेकर
सरगर्मी
बढ़ते
ही
एक
बार
फिर
अनिल
बलूनी
दिल्ली
में
एक्टिव
नजर
आ
रहे
हैं।
निर्दलीय
विधायक
प्रीतम
पंवार
और
कांग्रेस
विधायक
राजकुमार
को
बीजेपी
ज्वाइन
कराने
के
पीछे
अनिल
बलूनी
का
ही
पूरा
गेम
प्लान
नजर
आया
है।
इतना
ही
नहीं
विधायकों
को
दिल्ली
पार्टी
कार्यालय
से
लेकर
राष्ट्रीय
नेतृत्व
से
मिलवाने
तक
अनिल
बलूनी
की
मौजूदगी
बहुत
कुछ
इशारे
कर
रही
है।
उत्तराखंड
बीजेपी
में
चुनाव
से
पहले
अनिल
बलूनी
को
बड़ी
जिम्मेदारी
मिलने
के
कयास
लगाए
जाने
लगे
हैं।
चुनाव
अभियान
की
कमान
सौंपने
की
भी
चर्चांऐ
उत्तराखंड
में
बीजेपी
की
रणनीति
अब
तक
कांग्रेस
से
दो
कदम
आगे
चल
रही
है।
लेकिन
चुनाव
अभियान
समिति
को
लेकर
कांग्रेस
ने
बीजेपी
से
पहले
ही
कमान
हरीश
रावत
को
सौंपकर
मैनिफेस्टो
और
दूसरे
बड़े
निर्णय
लेने
शुरू
कर
दिए
हैं।
ऐसे
में
बीजेपी
के
सामने
अब
चुनाव
अभियान
की
कमान
किसी
बड़े
दिग्गज
नेता
को
सौंपने
की
है।
बीते
दिनों
राज्यपाल
बेबी
रानी
मौर्य
के
उत्तराखंड
से
इस्तीफा
देने
के
बाद
महाराष्ट्र
के
राज्यपाल
भगत
सिंह
कोश्यारी
के
उत्तराखंड
आने
की
चर्चांए
भी
तेज
हो
गई
थी।
भगत
सिंह
कोश्यारी
की
उत्तराखंड
में
बढ़ी
सक्रियता
इसका
कारण
माना
जा
रहा
था।
बीजेपी
के
अंदरखाने
भगत
सिंह
कोश्यारी
को
चुनाव
अभियान
की
कमान
सौंपने
की
चर्चा
भी
है।
इधर
अनिल
बलूनी
की
जिस
तरह
से
सक्रियता
बढ़ी
है।
उससे
अनिल
बलूनी
के
भी
चुनाव
अभियान
को
संभालने
की
चर्चांए
तेज
हो
गई
है।
अनिल
बलूनी
की
केन्द्रीय
नेतृत्व
में
जिस
तरह
की
पकड़
मजबूत
हुई
है।
उससे
अनिल
बलनूी
का
कद
बढ़ा
है।
अनिल
बलूनी
का
केन्द्रीय
नेतृत्व
में
भले
ही
कद
बढ़ा
है।
लेकिन
उत्तराखंड
में
संगठन
और
जमीनी
स्तर
पर
पकड़
कम
होना
अनिल
बलूनी
के
खिलाफ
भी
जा
सकता
है।
उत्तराखंड
में
जब
भी
सीएम
पद
के
लिए
नेताओं
में
रेस
हुई।
अनिल
बलूनी
हर
बार
सीएम
की
रेस
में
आगे
रहे।
लेकिन
उत्तराखंड
पार्टी
संगठन
और
जमीनी
स्तर
पर
कार्यकर्ताओं
से
दूसरी
उनका
पीछे
रहने
का
कारण
बना
है।
मोदी,
शाह
के
करीबी
है
बलूनी
अनिल
बलूनी
मूल
रुप
से
उत्तराखंड
के
पौड़ी
गढ़वाल
से
हैं।
वह
शुरुआत
से
ही
राजनीति
में
सक्रिय
रहे।
बलूनी
ने
भाजयुमो
के
प्रदेश
महामंत्री,
निशंक
सरकार
में
वन्यजीव
बोर्ड
उपाध्यक्ष
भाजपा
के
राष्ट्रीय
प्रवक्ता
और
राष्ट्रीय
मीडिया
के
प्रमुख
की
जिम्मेदारी
भी
निभाई
है।
2002
में
उत्तराखंड
में
हुए
पहले
विधानसभा
चुनाव
में
उन्होंने
कोटद्वार
सीट
से
नामांकन
कराया
था,
लेकिन
किसी
कारण
से
नामांकन
पत्र
निरस्त
हो
गया।
बाद
में
सुप्रीम
कोर्ट
के
आदेश
पर
2004
में
कोटद्वार
से
चुनाव
लड़ा
लेकिन
हार
गए।
दिल्ली
में
छात्र
राजनीति
और
पत्रकारिता
की
पढ़ाई
के
दौरान
उनकी
संघ
के
नेताओं
से
नजदीकियां
बढ़ी।
संघ
के
जाने-माने
नेता
सुंदर
सिंह
भंडारी
जब
बिहार
के
राज्यपाल
बने
तो
उन्होंने
बलूनी
को
अपना
ओएसडी
बना
दिया।
इसके
बाद
भंडारी
गुजरात
के
राज्यपाल
बने
तब
भी
बलूनी
उनके
ओएसडी
थे।
इस
दौरान
गुजरात
के
मुख्यमंत्री
नरेंद्र
मोदी
से
मिले
और
मोदी
शाह
के
करीबी
हो
गए।
इसके
बाद
अमित
शाह
के
2014
में
अध्यक्ष
बनने
के
बाद
वे
पार्टी
प्रवक्ता
और
मीडिया
प्रकोष्ठ
का
प्रमुख
बने।
अनिल
बलनी
अमित
शाह
के
सबसे
भरोसेमंद
लोगों
में
शामिल
हैं।
2018
में
अनिल
बलूनी
उत्तराखंड
कोटे
से
सबसे
युवा
सदस्य
बने।
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