फूलपुर उपचुनाव : भाजपा के खिलाफ क्या गुल खिला पाएगा सपा-बसपा समीकरण?
इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश की फूलपुर लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी को बहुजन समाज पार्टी ने समर्थन कर एक नये समीकरण को जन्म दिया है। यह सियासी चाल पहली नजर में तो मजबूत नजर आती है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह समीकरण गुल खिलाएगा? क्या सपा यहां जीत दर्ज कर पाएगी? मौजूदा समय में सपा और बसपा के साथ आ जाने से मुस्लिम-दलित और बैकवर्ड मतदाताओं की जातिगत गणित का ताना-बाना बुनता हुआ नजर आ रहा है। यह जातिगत गणित हर बार चुनाव में हार-जीत तय करती है इसमें कोई शक नहीं है, लेकिन बाहर से दिख रहा समर्थन का यह दावा क्या अंदर से भी उतना ही कारगर साबित होगा?
बिना सेनापति बसपा करेगी क्या
जब मऊआइमा इलाके में 25 साल बाद एक प्रचार वाहन पर सपा बसपा का झंडा लगा दिखा तो लगा बात में कुछ दम है, लेकिन अगले ही पल दो लोग बात करते नजर आये कि सपा का झंडा बड़ा लगाया गया और बसपा का जानबूझकर छोटा। यहां यह तो साफ था कि मजबूरी में साथ हैं लेकिन बगैर नेतृत्व के होगा क्या। यह निश्चित है अगर बसपा बॉस खुद सपा का चुनाव प्रचार कर दें तो उनका एक-एक वोट सपा को जा सकता है लेकिन बिना सेनापति के सेना आखिर करेगी क्या ? बसपाई खुद युद्ध में लड़कर अपनी बलि तो चढ़ायेगे नहीं।
ये पब्लिक है सब जानती है
चूंकि
सियासी
फायदे
के
लिये
दोस्ती
हुई
है
तो
सियासी
नजर
में
साथ
भी
दिख
रहा
है,
पर
जागरूकता
की
दौड़
के
बीच
जातिवाद
में
उलझे
वोटरों
को
अपनी
ओर
मोड़
लेना
यूं
आसान
न
होगा।
दोनों
दलों
के
कार्यकर्ता
व
समर्थक
के
जेहन
में
मतभेद
की
खाई
पट
जाना
राजनीति
की
नजर
में
बहुत
ही
आम
चीज
है,
लेकिन
जनता
को
यह
आम
चीजें
समझा
कर
वोट
हासिल
कर
पाना
संभव
नहीं
होगा।
वैसे
भी
अतीक
अहमद
के
आने
से
जिस
तरह
मुस्लिम
वोटों
में
कटौती
हुई
है,
उसका
नुकसान
भी
सपा
को
ही
झेलना
है।
अगर
सपा
कहीं
से
बढ़त
बनाती
हुई
सफल
नजर
भी
आएगी
तो
अतीक
अहमद
के
कारण
बैकफुट
पर
हो
जाएगी।
जुड़े
तो
पर
बिखरी
हैं
कड़ियां
फूलपुर
लोकसभा
में
बैकवर्ड-
मुस्लिम
वोटों
के
सहारे
सपा
अभी
तक
अपनी
गुणा-गणित
सेट
कर
रही
थी
लेकिन
ब्राम्हण
और
बैकवर्ड
की
पटेल
बिरादरी
में
भाजपा
ने
सेंध
लगा
दी।
मुस्लिम
वोट
पर
अतीक
का
जादू
दिखने
लगा
है
और
दलित
वोट
बिखरे
नजर
आ
रहे
थे।
बची-खुची
मतदाताओं
की
नजर
कांग्रेस
पर
थी।
ऐसे
में
बिखरी
हुई
कड़ियों
को
जोड़ने
की
पहल
सपा
के
लिए
बसपा
ने
करते
हुये
बिखराव
को
समेटने
का
काम
किया
है।
बसपा
के
जो
मूल
वोट
हैं
अगर
वह
सपा
की
ओर
मुड़ते
हैं
तो
निश्चित
तौर
पर
सपा
के
मतदान
प्रतिशत
में
बढ़ोतरी
होगी
।
यानी
पिछले
वर्ष
की
तुलना
में
इस
वर्ष
उसके
प्रत्याशी
का
मतदान
प्रतिशत
बढ़
जाएगा,
लेकिन
भाजपा
प्रत्याशी
के
मतदान
प्रतिशत
पर
नजर
डालें
तब
सारे
समीकरण
खुद
ही
ध्वस्त
नजर
हो
जाते
हैं
और
लगता
है
कि
आज
सपा
बसपा
का
जो
समीकरण
बना
है,
वह
गुल
नहीं
खिला
पाएगा।
भाजपा से मुकाबला आसान नहीं
दरअसल पिछले लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा प्रत्याशी दोनों के वोट मिलाने के बाद भी भाजपा के केशव प्रसाद मौर्य के वोटों के सामने बौने साबित हो रहे थे। केशव प्रसाद को 5 लाख से ज्यादा वोट मिले और वह ऐतिहासिक जीत मिली थी। सपा बसपा के अलग-अलग वोट संयुक्त रूप से भी संख्या में भाजपा से कहीं पीछे थे। ऐसे में जब आखिरी समय में बसपा ने सपा को मजबूती देने के लिए समर्थन दिया है तो सवाल वही है कि वोटों की संख्या आखिर कितनी बढ़ेगी? सपा-बसपा के पिछले चुनाव के बराबर भी अगर सपा प्रत्याशी वोट ले जाते हैं तब भी पिछले मुकाबले के आधार पर भाजपा से पीछे रह जाएंगे । इस चुनाव में अगर भाजपा को नुकसान होता है उसका वोट बिखरता है तब कहीं ना कहीं सपा बसपा का यह मिलन कुछ रंग ला सकता है।
25 साल बाद हाथी पर दिखा साइकिल का प्रचार
पिछले ढाई दशक हाथी और साइकिल का चुनाव चिन्ह हमेशा से धुर विरोधी नजर आया। 25 साल बाद ऐसा मौका आया है जब दोनों दलों के चुनाव चिन्ह एक साथ चल रहे हैं। हाथी पर साइकिल का प्रचार हो रहा है तो प्रचार वाहनों में साइकिल और हाथी वाले झंडे लगे हुए हैं। संयुक्त रैली को देखकर यह तो लगता है कि दोनों दल अपनी सियासी ताकत को बढ़ा रहे हैं, लेकिन जो लहर भाजपा की विधानसभा और लोकसभा चुनाव में थी अगर वही लहर इस उपचुनाव में भी बरकरार रही तो यह मिलन समीकरण बना कर भी गुल नहीं खिला पाएगा।
2014
की
स्थिति
2014
में
हुए
फूल
लोकसभा
चुनाव
के
दौरान
फूलपुर
में
भाजपा
ने
एकतरफा
जीत
हासिल
की
थी
।
इस
चुनाव
में
केशव
प्रसाद
मौर्य
की
वोट
संख्या
को
सपा-बसपा
और
कांग्रेस
की
वोट
संख्या
मिलाने
के
बाद
भी
बराबरी
पर
नहीं
लाया
जा
सकता।
वोट
संख्या
में
इस
तरह
का
फर्क
था
कि
भाजपा
प्रत्याशी
ने
आधे
मत
हासिल
किये
और
आधे
मतों
में
सभी
दल
रहे।
इस
चुनाव
में
भाजपा
के
केशव
प्रसाद
मौर्य
को
5,03,564
वोट
मिले।
सपा
के
धर्मराज
पटेल
को
1,95,256
वोट
मिले।
बसपा
के
कपिल
मुनि
करवरिया
को
1,63,710
वोट
मिले
और
कांग्रेस
के
क्रिकेटर
मो.
कैफ
को
58,127
वोट
से
ही
संतोष
करना
पड़ा।
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