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ओवैसी-शिवपाल-चंद्रशेखर को क्या साध पाएंगे ओम प्रकाश राजभर, जानिए उनके सामने क्या है चुनौतियां

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लखनऊ, 22 सितंबर: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों की तरफ से गोटियां सेट करने की कवायद शुरू हो चुकी है। साथ ही एक दूसरे को शह और मात देने का खेल भी चल रहा है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और भागीदारी मोर्चा के कन्वीनर ओम प्रकाश राजभर ओवैसी, शिवपाल यादव और चंद्रशेखर से मुलाकात कर गैर बीजेपी मोर्चा बनाने में तो जुटे हैं लेकिन क्या वो चुनाव से पहले अपने मकसद में सफल हो जाएंगे या खुद की मोर्चा से अलग हो जाएंगे यह बड़ा सवाल है। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो जिन लोगों से वो मिल रहे हैं वो लोग उनपर भरोसा करेंगे या नहीं यह बड़ा सवाल है। क्योंकि खुद उनकी विश्वसनीयता ही संदेह के घेरे में रहती है।

राजभर

बीजेपी से बगावत करने के बाद मोर्चा बनाने में जुटे हैं राजभर
दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार से ओम प्रकाश राजभर को बर्खास्त किए जाने के दो साल बाद, ओबीसी नेता फिर से अपने पुराने सहयोगी की ओर बढ़ रहे हैं। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से मुलाकात की थी जिसके बाद उनके बीजेपी के साथ गठबंधन की अटकलें तेज हो गईं थीं। हालांकि एसबीएसपी प्रमुख ने एक घंटे की बैठक को शिष्टाचार भेंट बताया लेकिन स्वीकार किया कि राजनीति मेज पर थी। "मैं 'पिछड़ी जाति' से आता हूं। वह भी 'पिछड़ी जाति' से आते हैं। इसलिए हम अक्सर ये शिष्टाचार मुलाकातें करते हैं।"

हालांकि ओम प्रकाश राजभर ने इस बात को खारिज कर दिया था कि वह 2022 में भाजपा के साथ गठबंधन करेंगे, उन्होंने इसे एक चेतावनी के साथ रखा। उन्होंने कहा था कि वह भाजपा के साथ गठबंधन पर विचार करेंगे, अगर वह ओबीसी मुख्यमंत्री सहित उनकी पांच मांगों को पूरा करती है। उन्होंने कहा, 'भाजपा को इन्हें लागू करने दें। उसके बाद मैं इसके बारे में सोचूंगा। लेकिन उससे पहले नहीं। क्योंकि मैंने विश्वासघात का स्वाद चखा है।

स्वतंत्रदेव

2017 के चुनाव में किया था बीजेपी के साथ गठबंधन
उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव से महीनों पहले 2016 में भाजपा के साथ गठबंधन किया था। एसबीएसपी ने चार सीटें जीतीं, बदले में भाजपा को पूर्वांचल में कई सीटें जीतने में मदद की क्योंकि राजभर उस क्षेत्र में केंद्रित हैं। हालाकि, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ओम प्रकाश राजभर ओबीसी कोटे को लेकर मुखर हो गए थे, जिसे राज्य सरकार ने ठंडे बस्ते में छोड़ दिया।

सीटों के बंटवारा सबसे बड़ी चुनौती

इसके बाद से ही उन्होंने छोटे दलों, भागीधारी संकल्प मोर्चा के गठबंधन को एक साथ जोड़ दिया है, जिसमें असदुद्दीन ओवैसी के एआईएमआईएम और पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा और अन्य ओबीसी नेताओं के नेतृत्व वाले संगठन में शामिल हैं। राजभर ने अपनी कवायद तेज करते हुए सभी लोगों को एकजुट करना शुरू कर दिया है। हालांकि उनके सामने कई तरह की चुनौतियां हैं। जिन लोगों के साथ वो तालमेल करने की कोशिश कर रहे हैं उनके भी अपने अपने दावे और हित हैं। क्या सभी लोगों को राजभर संतुष्ट कर पाएंगे और सभी 403 सीटों पर सीटों का बंटवारा हो पाएगा यह बड़ा सवाल है।

बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि,

'' ओम प्रकाश राजभर व्यर्थ की कोशिश कर रहे हैं। इस तरह के मोर्चा का कोई मतलब नहीं है। ओबीसी समाज पूरी तरह से भाजपा के साथ खड़ा है। वो जिन लोगों की नुमाइंदगी का दावा करते हैं वो लोग भी मोदी और योगी को वोट देना चाहता है। वो लाख कोशिश कर लें लेकिन वो अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाएंगे। संजय निषाद हों, ओम प्रकाश राजभर हों या अनुप्रिया पटेल हों सबको पता है कि वो नेता तभी तक हैं जब तक वो बीजेपी के साथ जुड़े हैं। बीजेपी से अलग जाने के बाद उनको कौन पूछने वाला है।''

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English summary
Will Om Prakash Rajbhar be able to give a new look to the Joint Partnership Front, know what are the challenges before him
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