किसी से भी हाथ मिलाने को क्यों तैयार हुई मायावती, पांच वजहें
2012 में सत्ता गंवाने वाली बीएसपी सुप्रीमो को 2017 में यूपी की सत्ता में लौटने के लिए चुनावी रणनीति बनाई, हालांकि चुनाव नतीजों ने उनकी पूरी रणनीति को फेल कर दिया।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की करारी हार के बाद पार्टी की मुखिया मायावती ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए बीएसपी किसी भी पार्टी से गठबंधन के लिए तैयार है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने इस बयान के जरिए अपनी पार्टी को एक बार फिर से खड़ी करने की कोशिश की है। जिस तरह से यूपी चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा, उसके बाद ये कयास लगने लगे थे कि कहीं देश की इस राष्ट्रीय पार्टी का अस्तित्व ही खतरे में न पड़ जाए।
यूपी चुनाव में प्रदर्शन के बाद मायावती ने बदला अंदाज
यूपी चुनाव में बीजेपी की सुनामी के आगे दूसरे दलों की एक नहीं चली। भारतीय जनता पार्टी ने सहयोगियों के साथ मिलकर यूपी में 325 सीटें हथिया ली। इन नतीजों का सीधा नुकसान मायावती की पार्टी को हुआ। 2012 में सत्ता गंवाने वाली बीएसपी सुप्रीमो को 2017 में यूपी की सत्ता में लौटने की योजना बनाई हुई थी। उन्होंने अपनी चुनावी रणनीति भी इसी को ध्यान में रखते हुए बनाया। हालांकि चुनाव नतीजों ने उनकी पूरी रणनीति को फेल कर दिया। प्रदेश में अपनी पार्टी को जिंदा रखने के लिए आखिरकार मायावती को आखिरी दांव चलना पड़ा...आखिर उनके इस बयान की क्या वजहें हैं...पढ़िए आगे...
यूपी चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन
यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। 403 विधानसभा सीटों में से पार्टी को महज 19 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। बीएसपी सुप्रीमो मायावती को इतने खराब प्रदर्शन की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी। यही वजह है कि उन्होंने यूपी चुनाव सपा-कांग्रेस गठबंधन से दूरी बनाए रखी। यूपी चुनाव में वो अकेले उतरी तो इसके पीछे उनकी रणनीति यही थी कि यूपी की जनता कहीं न कहीं उनके साथ खड़ी होगी। सपा सरकार के खिलाफ लोगों के गुस्से का फायदा उन्हें मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
रणनीति हुई फेल
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने यूपी चुनाव में दलित-मुस्लिम गणित को साधने की कोशिश की। उन्होंने प्रदेश में पहली बार 99 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया। उन्हें इस बात की पूरी उम्मीद थी कि दलित वोटबैंक तो उनका है ही अगर मुस्लिम वोटरों को उन्हें समर्थन मिला तो यूपी की सत्ता में उनका आना तय है। हालांकि यूपी चुनाव में जो नतीजे आए वो बेहद चौंकाने वाले रहे। जिन सीटों पर पार्टी को जीतने का भरोसा था वहां भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। यही वजह है कि चुनाव के बाद उन्होंने वोटिंग मशीन में छेड़छाड़ का आरोप लगाया।
पार्टी का अस्तित्व बचाना अहम चुनौती
यूपी चुनाव में बीएसपी की हार के बाद अब बहुजन समाज पार्टी के सामने अस्तित्व बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है। पार्टी नेताओं को एकजुट रखने के लिए बीएसपी सुप्रीमो को अपनी रणनीति में बदलाव करना जरूरी हो गया। आखिरकार मायावती ने ऐलान किया कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए किसी से भी गठबंधन को तैयार हैं। अब देखना होगा कि उनके इस ऐलान का क्या असर होगा?
सपा पहले ही कर चुकी है गठबंधन की पहल
यूपी चुनाव में बीजेपी के शानदार प्रदर्शन का सीधा असर दूसरे दलों पर हुआ है। समाजवादी पार्टी का भी यूपी चुनाव में प्रदर्शन खास नहीं रहा। कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी गठबंधन में चुनाव मैदान में उतरी लेकिन जनता उनके साथ नजर नहीं आई। सपा-कांग्रेस गठबंधन को 54 सीटें मिली हैं। चुनाव नतीजों के तुरंत बाद ही समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने बीएसपी को गठबंधन का न्यौता दिया था। अब बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी गठबंधन का इशारा करके साफ कर दिया है कि आने वाले वक्त में यूपी की सियासत में बड़ा बदलाव नजर आ सकता है।
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी खतरे में
यूपी चुनाव में जिस तरह से बहुजन समाज पार्टी की करारी हार हुई है उसका असर पार्टी के राष्ट्रीय दर्जे पर भी दिख रहा है। बीएसपी के राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी खतरे में नजर आ रहा है। यूपी समेत पांच राज्यों के चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा। उत्तराखंड और पंजाब में पार्टी को जीत की उम्मीद थी लेकिन उसके हाथ खाली ही रहे। वहीं यूपी चुनाव में भी पार्टी की स्थिति थोड़ी ठीक होती तो भी राहत की बात होती, लेकिन उत्तर प्रदेश के मतदाता इस बार मायावती के साथ नजर नहीं आए।
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