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रामनाथ कोविंद की कहानी उनके भाई की जुबानी, मदद से किया इनकार

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कानपुर। राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं। बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद ने इस बार बड़ी जीत दर्ज की है। एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को 66 फीसदी वोट मिले हैं, वहीं यूपीए की उम्मीदवार मीरा कुमार के पक्ष में 34 फीसदी वोट पड़े हैं। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के बीजेपी ने जब उम्मीदवार बनाया तो परिवार वालों को यकीन नहीं हो रहा था कि उन्हें इतने बड़े पद के लिए उम्मीदवार चुना गया। कानपुर में रामनाथ कोविंद के बड़े भाई प्यारेलाल ने उनके एनडीए उम्मीदवार चुने जाने पर क्या कहा था पढ़िए...

बड़े भाई को नहीं हो रहा है यकीन

बड़े भाई को नहीं हो रहा है यकीन

प्यारेलाल के बेटे दीपक ने इस बात की पुष्टि के लिए दो बार बिहार राजभवन में फोन किया, लेकिन उनकी बात नहीं हो पाई है। प्यारेलाल कहते हैं कि हमे अभी तक राजभवन की तरफ से फोन नहीं आया है, रामनाथ दिल्ली में व्यस्त होगा, यह ना सिर्फ उसके लिए बल्कि हम सबके लिए बहुत बड़ा दिन है, हमारे गांव पारौख में जश्न का माहौल है। प्यारेलाल झिंझक में रहते हैं और यहां एक कपड़े की दुकान चलाते हैं।

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भाई को है गर्व

भाई को है गर्व

रामनाथ के बारे में बताते हुए प्यारेलाल कहते हैं कि वह काफी होनहार छात्र था, उसने कॉमर्स और कानून की पढ़ाई के लिए कानपुर का रुख किया था, वह सिविल सेवा की भी तैयारी कर रहा था, उसने पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी के साथ भी काम किया है, उसने राजनीति में आने के बाद बहुत मेहनत की है और वह भाजपा का समर्पित नेता है, हमें उसपर गर्व है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने खुद प्रेस कांफ्रेंस में यह बात कही थी कि कोविंद एक गरीब दलित परिवार से आते हैं।

पिता चलाते थे दुकान

पिता चलाते थे दुकान

प्यारेलाल बताते हैं कि उनके पिता मैकूलाल परौख गांव के चौधरी थे, वह एक वैद्य भी थे, जो गांव में ही परचून और कपड़े की दुकान चलाते थे। हमारा जीवन मध्यमवर्गीय परिवार के रूप में बीता है, हालांकि किसी चीज की कमी नहीं थी, हम सभी पांचों भाई और दो बहनों ने पढ़ाई की थी। एक भाई मध्य प्रदेश में अकाउंट अधिकारी के पद से रिटायर हुआ है, दूसरा सरकारी शिक्षक था। रामनाथ ने वकील बन गया बाकी भाई बिजनेस करने लगे। प्यारेलाल ने बताया कि जब उनके घुटने में चोट थी तो वह राजभवन में कुछ दिनों के लिए इलाज के लिए रुके थे।

राजनीति में आने के बाद जोड़ा कोविंद सरनेम

राजनीति में आने के बाद जोड़ा कोविंद सरनेम

रामनाथ के सरनेम कोविंद के बारे में बताते हुए कोविंद ने बताया कि यह सरनेम रामनाथ ने ही जोड़ा था, मुझे नहीं पता कि उनसे यह क्यों किया, लेकिन जब उसने राजनीति में जाने के बाद यह सरनेम जोड़ा तो सारे भाइयों ने भी इस सरनेम को अपना लिया। रामनाथ अखिरी बार दिसंबर 2016 में झिंझक और परौख आए थे, उनका परिवार बताता है कि जब वह राज्यसभा में थे तो उन्होंने झिंझक के विकास के लिए काफी प्रयास किए। रामनाथ कोविंद के भतीजे अनिल कुमार बताते हैं कि उन्होंने परौख में हमारे पैतृक घर को मिलन केंद्र में बदल दिया, यहां गांव के लोग शादी में अपने बारातियों को ठहराने और अन्य कार्यक्रमों के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। अनिल कुमार ही मिलन केंद्र की देखरेख करते हैं।

पूरे गांव में जश्न का मौहाल

पूरे गांव में जश्न का मौहाल

परौख में तकरीबन 4500 मतदाता है, जहां अधिकतर ठाकुर और पंडित हैं, यहां सिर्फ चार दलित परिवार हैं। अनिल बताते हैं कि रामनाथ जी के राष्ट्रपति पद पर नामांकित होने के बाद तमाम घरों में जश्न है, ठाकुरों के घर भी ढोल नगाड़े बज रहे हैं, सब लोग खुश हैं कि हमारे गांव का आदमी राष्ट्रपति बनने जा रहा है। उन्होंने बताया कि तमाम भाजपा नेता और जिला भाजपा अध्यक्ष राहुल अग्निहोत्री भी यहां आए थे और उन लोगों ने मिठाई बांटी थी ।

स्वयं मेहनत करो

स्वयं मेहनत करो

रामनाथ कोविंद का भतीजा दीपक एक सरकारी स्कूल में टीचर है, उनका कहना है कि रामनाथ अंकल के चार भाई और तीन बहनें हैं और उन सबके कुल 27 बच्चे हैं, कुछ लोगों ने उनसे मदद के लिए कहा था, ताकि उन्हें बेहतर नौकरी मिल जाए। इन लोगों ने कई बार उनसे बेहतर नौकरी की बात कही, लेकिन हर बार उन्होंने इनकार कर दिया, वह कहते थे मैंने जैसे स्वयं सफलता पाई है, वैसे ही तुम लोग भी मेहनतर करो।

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English summary
Story of Ramnath Kovind family and his village of Kanpur. He refused ti help his family members.
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