जानें कैसे चुनाव आयोग ने अखिलेश के हवाले कर दी समाजवादी पार्टी और साइकिल
मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र अखिलेश यादव के बीच महीनों से चल रही राजनीतिक खींचतान को आयोग सोमवार देर शाम अपना फैसला सुनाकर खत्म कर दिया।
लखनऊ। निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद अब समाजवादी पार्टी और उसकी साइकिल अखिलेश यादव की है। लेकिन ऐसा क्यों इसकी वजह भी सामने आई है। दरअसल मुलायम सिंह यादव अपने खेमे का संख्याबल की ताकत नहीं दिखा सके। बता दें कि आयोग ने विवाद के बाद 9 जनवरी को अखिलेश और मुलायम के समूह से समर्थन के संबंध में शपथ पत्र मांगा था।
'अखिलेश यादव को नहीं मिलती 'साइकिल' तो डूब जाते करोड़ों'
अखिलेश की ओर से 4716 विधायक ( विधानसभा और विधान परिषद ) सांसदों (राज्यसभा और लोकसभा ) के शपथपत्र दिए गए लेकिन मुलायम के समूह की ओर से सिर्फ मुलायम का शपथ पत्र ही दाखिल किया गया था। इसके बाद आयोग 1968 के इलेक्शन सिंबल ऑर्डर के अनुसार संख्या बल के आधार पर मु्ख्यमंत्री अखिलेश के पक्ष में अपना फैसला दिया। बता दें कि समाजवादी पार्टी में झगड़ा उस समय बढ़ा जब 1 जनवरी को राष्ट्रीय सम्मेलन में अखिलेश यादव को एक धड़े ने पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया।
इस
दौरान
समाजवादी
पार्टी
के
कई
बड़े
नेता
अखिलेश
यादव
के
समर्थन
में
आ
गए।
अखिलेश
यादव
गुट
की
ओर
से
दावा
किया
गया
कि
पार्टी
के
200
से
ज्यादा
विधायक
उनके
समर्थन
में
हैं।
दूसरी
ओर
अखिलेश
यादव
के
पिता
मुलायम
सिंह
यादव
ने
अखिलेश
यादव
के
राष्ट्रीय
अध्यक्ष
बनाने
का
विरोध
किया।
उन्होंने
इसे
पार्टी
विरोधी
करार
दिया।
हालांकि
इस
पूरे
हंगामे
को
खत्म
करने
के
लिए
कई
बार
मुलायम
सिंह
यादव
और
अखिलेश
यादव
के
बीच
बैठक
भी
हुई।
पार्टी
के
वरिष्ठ
नेताओं
ने
सुलह
की
कोशिशें
की।
हालांकि
मामला
नहीं
थमा।
गौरतलब
है
कि
आयोग
में
अखिलेश
के
समर्थन
में
205
विधायक,
में
से
56
विधान
परिषद
से
विधायक,
सांसदों
में
से
15
सांसद
(
राज्यसभा
और
लोकसभा
),
में
से
28
राष्ट्रीय
कार्यकारिणी
सदस्य,
4716
राष्ट्रीय
अधिवेशन
प्रतिनिधियों
ने
समर्थन
में
हलफनामा
दिया
था।
यह
बात
दीगर
है
कि
मुलायम
सिंह
यादव
ने
राष्ट्रीय
अधिवेशन
बुलाया
था,
जिसे
रद्द
कर
दिया
था।
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