यूपी: दैनिक वेतनभोगियों को हाईकोर्ट का झटका, नियमित किए जाने की मांग खारिज
इलाहाबाद। दैनिक वेतनभोगियों के नियमितीकरण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने प्रतियोगिता के माध्यम से चयन को सर्वोच्च विकल्प मानते हुये कहा है कि दैनिक कर्मियों को नियमित किए जाने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने यह भी साफ किया कि बिना विधिक प्रक्रिया के नियुक्त दैनिक कर्मी को सीधी भर्ती प्रक्रिया पर वरीयता भी नहीं दी जा सकती। दैनिक कर्मी को नियमित नियुक्ति की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुये न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी ने यह फैसला सुनाया।
क्या
था
मामला
1988
में
अविनाश
चंद्र
को
बतौर
दैनिक
कर्मी
एक
तय
समयावधि
के
लिये
पंजीकरण
विभाग
में
नौकरी
मिली
थी।
अवधि
खत्म
होने
के
बाद
अविनाश
ने
हाईकोर्ट
में
याचिका
दाखिल
की
और
खुद
को
नियमित
करने
की
मांग
की।
कोर्ट
में
सुनवाई
के
चलते
अविनाश
विभाग
में
काम
काम
करता
रहा।
इसी
बीच
दैनिक
कर्मियों
के
नियमितीकरण
का
मामला
सुप्रीम
कोर्ट
पहुंचा
तो
सुप्रीम
कोर्ट
ने
साफ
किया
कि
29
जून
1991
से
9
जुलाई
1998
के
बीच
नियुक्त
दैनिक
कर्मियों
को
ही
नियमित
करने
की
नियमावली
बनी
थी।
दैनिक
कर्मी
पहले
से
नियुक्त
थे
और
किसी
भी
वजह
से
इस
समयावधि
में
कार्य
कर
रहे
थे
उन्हें
इस
नियमावली
का
लाभ
नहीं
दिया
जा
सकता
यानी
उन्हें
नियमित
नहीं
किया
जा
सकता।
हाईकोर्ट
ने
सुनाया
फैसला
सुप्रीम
कोर्ट
के
आदेश
का
जिक्र
कर
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
ने
अविनाश
चंद्र
की
याचिका
खारिज
करते
हुये
कहा
है
कि
समयावधि
खत्म
होने
के
बाद
भी
पद
पर
बने
रहना
सही
नहीं
है
और
समयावधि
खत्म
होने
के
बाद
भी
कार्य
करते
रहने
से
नियमित
होने
का
अधिकार
नहीं
मिलता।
नियमितीकरण
विधिक
प्रक्रिया
से
होना
चाहिये
क्योंकि
खुली
प्रतियोगिता
के
बिना
नियुक्त
कर्मियों
को
नियमित
करने
से
योग्य
व्यक्तियों
को
अवसर
नहीं
मिलेगा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद नियमावली के सापेक्ष नियमित होने वाले दैनिक कर्मियों पर भी कार्रवाई की तलवार लटकने लगी है। क्योंकि हाईकोर्ट सुनवाई के दौरान यह माना है कि दैनिक कर्मियों के नियमितीकरण में नियमावली की अनदेखी की गई और मनमाने तरीके से नियुक्ति दी गई है।
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