यूपी का बुंदेलखंड- जहां सच में कारनामा बोलता है
बुंदेलखंड जहां विकास तो दूर की बात लोगों नर्क सा जीवन जीने को मजबूर, सरकार की अनदेखी खोलती है तमाम दावों की पोल
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रचार में समाजावादी पार्टी ने अपने विकास के कामों को काम बोलता है कि टैगलाइन से खूब प्रचार किया, लखनऊ मेट्रो, एक्सप्रेस वे, समाजवादी पेंशन सहित तमाम योजनाओं को सपा ने काम बोलता है के जरिए जमकर प्रचार किया, वहीं सपा के इस टैगलाइन पर विपक्षी पार्टियों ने भी जमकर हमला बोला, प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी तमाम रैलियों में कहा कि अखिलेश का काम नहीं कारनामा बोलता है। आज यूपी में चौथे चरण का मतदान हो रहा है और बुंदेलखंड के लोग आज अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। बुंदेलखंड पिछले कुछ सालों में जिस तरह से अवैध खनन, सूखा और पिछड़ेपन की मार झेल रहा है वह तमाम पार्टियों के लिए महज एक राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गया है, लेकिन बुंदेलखंड की हालत जस की तस बनी हुई है।
विकट स्थिति में बुंदेलखंड
बुंदेलखंड
की
कुल
19
सीटों
पर
आज
मतदान
हो
रहा
है,
यह
सभी
सात
सीटें
कुल
7
जिलों
में
हैं,
यहां
के
लोगों
को
आज
सपा-कांग्रेस,
बसपा
व
भाजपा
में
से
एक
विकल्प
को
चुनना
है
जोकि
प्रदेश
में
अहम
राजनीतिक
दल
हैं।
तमाम
राजनीतिक
दलों
ने
बुंदेलखंड
के
लोगों
से
तमाम
राजनीतिक
वायदे
किए
हैं।
बुंदलेखंड
में
मूलभूत
ढांचा
पिछली
सरकारों
को
आईना
दिखाता
है,
यहां
के
उद्योग
अपने
अस्तित्व
की
लड़ाई
लड़
रहे
हैं,
अवैध
खनन
ने
पूरे
इलाके
को
लील
लिया
है।
इन
हालातों
में
यहां
के
लोग
पलायन
करने
के
लिए
मजबूर
हैं।
सरकार
की
अनदेखी
के
चलते
यहां
नियमों
की
धज्जियां
उड़ाई
गई,
अवैध
खनन
के
चलते
यहां
का
पर्यावरण
काफी
दूषित
हो
चुका
है,
यही
नहीं
यहां
की
सड़कों
पर
चलना
बुरे
सपने
से
कम
नहीं
है,
सड़क
पर
उड़ने
वाली
खनन
की
धूल
यहां
की
विकट
समस्या
है।
इन
तमाम
विकट
परिस्थितियों
के
बीच
यहां
लगातार
कई
सालों
से
आएं
सूखे
ने
बुंदेलखंड
को
सबसे
नीचे
लाकर
खड़ा
कर
दिया।
बुंदेलखंड
में
कई
समस्याएं
हैं
लेकिन
इनके
अलावा
यहां
की
विरासत,
संस्कृति
और
ऐतिहासिक
धरोहर
भी
खतरे
में
है।
महोबा
जिले
से
होकर
जाने
वाला
हाईवे
जिसे
आल्हा
उदल
नगर
के
नाम
से
जाना
जाता
है,
अगर
इसपर
होकर
गुजरा
जाए
तो
कवराई
के
पास
आपको
सड़क
पर
देखना
काफी
मुश्किल
हो
जाएगा,
यूं
मानिए
जीरो
विजिबिलिटी।
खनन के चलते लोगों को कई बीमारी
कवराई को पत्थर को काटने के मुख्य स्थान के रूप में जाना जाता है, यह झांसी का एक बड़ा इलाका है। राज्य सरकार ने यहां के लोगों को रोजगार देने के उद्देश्य से कई लोगों को पत्थर और बालू खनन का लाइसेंस दिया है, लेकिन यहां नियमों का पालन दूर की कौड़ी है, आपको बता दें कि बुंदेलखंड में बालू और पत्थर के खनन का 900 करोड़ का उद्योग है। यहां के छोटे पहाड़ों और चट्टानों को काट दिया गया है, पत्थरों के काटे जाने से यहां होने वाला प्रदूषण लोगों के लिए बड़ी मुश्किल बन गया है, यह ना सिर्फ यहां के स्थानीय ग्रामीणों बल्कि फसल को भी भारी नुकसान पहुंचाती है। यहां रहने वाले ग्रामीण दमा और सांस लेने की बीमारी व टीबी से ग्रसित हैं।
नियमों को ताक पर रखकर होता है खनन
बुंदेलखंड के एक्टिविस्ट आशीष सागर का कहना है कि हालांकि जो लाइसेंस दिए गए हैं वह वैध हैं लेकिन इसे चलाने वाले नियमों का पालन नहीं करते हैं जिसके चलते यहां का पर्यावरण तहस-नहस हो गया है। यहां की उपजाऊ खेतों को बंजर घोषित कर दिया गया और यहां खदानों को शुरु कर दिया गया है। यहां खनन माफिया, स्थानीय नेता और स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत से खेती की जमीन को बंजर घोषित किया गया है। महोबा में रोजगार का कोई और साधन नहीं है जिसके चलते खनन का उद्योग यहां बढ़ता ही जा रहा है, यहां सिर्फ एक ही उद्योग है वह है पत्थर काटने का, जिसे पहाड़ों से काटकर लाया जाता है
भाजपा को छोड़ अवैध खनन किसी भी दल के लिए मुद्दा नहीं
आशीष का कहना है कि यहां लंबे समय से चल रहा अवैध खनन सरकार को भारी नुकसान पहुंचा रहा है, 2011 की सीएजी रिपोर्ट के अनुसार अवैध खनन के चलते कुल 205 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। वह समय दूर नहीं है जब हम उत्तराखंड की तरह यहां भी तबाही देखेंगे। भाजपा के अलावा किसी भी अन्य पार्टी ने बुंदेलखंड को लेकर अपने घोषणा पत्र में इसको लेकर कोई घोषणा नहीं की है। भाजपा अपने घोषणा पत्र में वायदा करती है कि सत्ता में आने के बाद वह अवैध खनन माफियाओं को खत्म करेगी, लेकिन तमाम भाजपा के उम्मीदवार जो मैदान में हैं वह खुद खनन में लगे हैं।
सरकार ने मूंदी आंखें
अवैध खनन के अलावा बुंदेलखंड में एक और बड़ी समस्या है वह यह कि यहां पान की खेती बिल्कुल चौपट हो गई है, महोबा को पान के पत्ते का गढ़ माना जाता है जिसे पूरे देश में पहुंचाया जाता है। लेकिन पिछले कई सालों सूखे की वजह से इसकी खेती पर बड़ा नुकसान पहुंचा है। किसानों के एक्टिविस्ट पंकज सिंह परिहार का कहना है कि यहां पत्तियों की रिसर्च का एक इंस्टीट्यूट है, लेकिन पानी की मकी के चलते और सरकार की अनदेखी की वजह से यह अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है। स्थानीय लोगों को यहां खनन उद्योग में नौकरी नहीं मिल रही है क्योंकि यह मशीनों से किया जाता है, लेकिन सरकार का निर्देश है कि यह मजदूरों को ही करना है, लेकिन इन सब परिस्थितियों के बीच सरकार ने अपनी आंखें मूद ली है