कांग्रेस के बाद अब अखिलेश ने बीजेपी में लगाई बड़ी सेंध, जानिए स्वामी प्रसाद के सपा में जाने के सियासी मायने
लखनऊ, 11 जनवरी: उत्तर प्रदेश में चुनाव की शुरुआत होने में अभी एक महीने बाकी हैं लेकिन यूपी की सियासत में रोज बड़े बड़े उलटफेर हो रहे हैं। समाजवादी पार्टी के चीफ अखिलेश यादव पूरी तरह से अपनी गोटियां बिछाने में जुटे हुए हैं। एक तरफ जहां उन्होंने पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी यूपी तक गठबंधन कर बीजेपी की नाक में दम कर रखा है वहीं दूसरी ओर हर दिन वह बड़े शिकार कर रहे हैं। सोमवार को ही उन्होंने कांग्रेस के बड़े मुस्लिम चेहरे इमरान मसूद को सपा में शामिल कर पश्चिम की सियासी गणित के साथ ही कांग्रेस को जोरदार झटका दिया था। वहीं मंगलवार को उनके निशाने पर बीजेपी थी और उन्होंने ओबीसी सियासत के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले और योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को सपा में शामिल कराकर बीजेपी को अंदरखाने तक झकझोर दिया।
विधानसभा चुनाव से पहले, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को राज्य के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के अपने पद से इस्तीफा देने और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी में शामिल होने के बाद झटका लगा। मौर्य ने अपने त्याग पत्र में "दलितों, पिछड़े, किसानों, बेरोजगार युवाओं, छोटे और मध्यम व्यापारियों के प्रति लापरवाह रवैये" को अपने फैसले के पीछे के कारणों के रूप में बताया है।
मौर्य मायावती की बहुजन समाज पार्टी छोड़ने के बाद 2016 में भाजपा में शामिल हुए थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश के पडरौना निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने त्याग पत्र में लिखा, "विभिन्न विचारधारा के बावजूद, मैंने योगी आदित्यनाथ कैबिनेट में समर्पण के साथ काम किया। लेकिन दलितों, ओबीसी, किसानों, बेरोजगारों और छोटे व्यापारियों के घोर उत्पीड़न के कारण, मैं इस्तीफा दे रहा हूं।"
पत्र में कहा, "मैंने विपरीत परिस्थितियों और विचारधारा के बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद में श्रम, रोजगार, समन्वय मंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया।" उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य भाजपा सांसद हैं और लोकसभा में बदायूं का प्रतिनिधित्व करती हैं।
मौर्य के साथ तीन विधायकों ने भी छोड़ी बीजेपी
मौर्य का इस्तीफा सौंपने के लिए राजभवन पहुंचे उत्तर प्रदेश के भाजपा विधायक रोशन लाल वर्मा ने भी भाजपा छोड़ने का फैसला किया है। उत्तर प्रदेश के दो अन्य भाजपा विधायकों भगवती प्रसाद सागर और ब्रजेश प्रजापति ने भी अपना इस्तीफा सौंप दिया है। रोशन लाल वर्मा ने आरोप लगाया कि उनकी अनदेखी की जा रही है। उन्होंने कहा, "सुरेश खन्ना अपनी मर्जी से चीजें कर रहे थे। हमें हर समय नजरअंदाज किया जा रहा था।"
वर्मा ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री और अन्य वरिष्ठ नेताओं से बात की थी लेकिन कुछ नहीं हुआ। अखिलेश यादव ने ओबीसी वर्ग के शक्तिशाली नेता मौर्य का खुले दिल से स्वागत किया। अखिलेश ने ट्वीट किया, "लोकप्रिय नेता स्वामी प्रसाद मौर्य जी और पार्टी के अन्य नेताओं, कार्यकर्ताओं का हार्दिक स्वागत और बधाई जिन्होंने सामाजिक न्याय और समानता के लिए लड़ाई लड़ी! सामाजिक न्याय के लिए क्रांति होगी, बदलाव आएगा।"
वहीं उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने स्वामी प्रसाद से अपील की कि वे बैठ कर उन मुद्दों और शिकायतों पर चर्चा करें जो उनके पास सरकार के साथ हैं। उन्होंने कहा, "स्वामी प्रसाद मौर्य जी ने किन कारणों से इस्तीफा दिया है, मैं उनसे बैठकर बात करने की अपील करता हूं। आमतौर पर जल्दबाजी में लिया गया निर्णय हमेशा सही नहीं होता है।"
दिल्ली में चल रहा संभावित उम्मीदवारों के नाम पर मंथन
इस बीच, गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भाजपा की एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग लिया क्योंकि पार्टी ने नामों को अंतिम रूप देने के लिए अपनी केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक से पहले राज्य विधानसभा चुनाव के शुरुआती चरणों के लिए अपने संभावित उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट किया। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि पार्टी का अभियान, विशेष रूप से 15 जनवरी तक बढ़ते COVID मामलों के कारण रैलियों और रोड शो पर प्रतिबंध लगाने के चुनाव आयोग के फैसले के मद्देनजर, अपनी रणनीति के विभिन्न अन्य पहलुओं के अलावा चर्चा के लिए बुलाई गई थी।
सूत्रों ने बताया कि उत्तर प्रदेश में सात चरणों में होने वाले मतदान के पहले चरण के लिए 14 जनवरी से नामांकन दाखिल होने के साथ ही पार्टी के मुख्य चुनाव आयुक्त की इस सप्ताह के अंत में बैठक हो सकती है जिसमें उम्मीदवारों के नामों को अंतिम रूप दिया जाएगा। पहले चरण में 10 फरवरी को 58 सीटों पर और दूसरे चरण में 14 फरवरी को 55 सीटों पर मतदान होगा और बीजेपी जल्द ही इन सीटों के लिए अपने अधिकांश उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर सकती है।
बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने रायबरेली की डलमऊ सीट से 1996 में पहली बार चुनाव जीता और विधानसभा पहुंचे। वो मायावती सरकार में मंत्री बने। इस सीट से पहले ओबीसी विधायक ही नहीं बल्कि मंत्री बनने वाले पहले नेता बने। इसके बाद वो 2002 चुनाव में दोबारा विधायक चुने गए। 2007 में भी उन्होंने इस सीट से भाग्य आजमाया, लेकिन वो हार गए। साल 2008 में परिसीमन के बाद डलमऊ का नाम खत्म हो गया। डलमऊ का कुछ हिस्सा सरेनी विधानसभा सीट में चला गया और बाकी हिस्से को मिलाकर इस सीट को ऊंचाहार विधानसभा का नाम दे दिया गया।
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